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किसानों की किस्मत बदल रही है हर्बल खेती, एक एकड़ से 3 लाख तक की कमाई

Posted on December 15, 2020December 15, 2020 By User No Comments on किसानों की किस्मत बदल रही है हर्बल खेती, एक एकड़ से 3 लाख तक की कमाई

गेहूं या धान की खेती के मुकाबले जड़ी-बूटियों की खेती से 10 गुना तक कमाई

नई दिल्ली. किसानों की खुशहाली से देश की तरक्की का रास्ता निकलता है. लेकिन, शायद ही कभी सुनने को मिलता है कि देश का अन्नदाता खुशहाल हो रहा है. अब कुछ किसान परंपरागत खेती से दूरी बनाकर तरक्की का रास्ता निकाल रहे हैं. इसकी एक बानगी देखिए. अतीश, कुठ, कुटकी, करंजा, कपिकाचु और शंखपुष्पी जैसे हर्बल पौधों की खेती से किसानों का एक छोटा समूह 3 लाख रुपये प्रति एकड़ तक की कमाई कर रहा है.

गेहूं के मुकाबले 10 गुना कमाई
किसान जब गेहूं या धान की खेती करते हैं तो महज 30,000 रुपये प्रति एकड़ से कम कमाई होती है. हर्बल पौधों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों और पर्सनल केयर उत्पाद बनाने में होता है. इन आयुर्वेदिक दवाओं और पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स को डाबर, हिमालया, नेचुरल रेमिडीज और पतंजलि जैसी कंपनियां बेचती हैं इनमें से कई जड़ी-बूटियों के नाम काफी आकर्षक हैं. शहरी उपभोक्ताओं के लिए अतीश, कुठ, कुटकी, करंजा, कपिकाचु और शंखपुष्पी जैसे पौधों की शायद ही कोई अहमियत हो. लेकिन ये पौधे किसानों की जिंदगी बदल रहे हैं.

50 हजार करोड़ का है बाजार
एक आकलन के मुताबिक, देश में हर्बल उत्पादों का बाजार करीब 50,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें सालाना 15 फीसदी की दर से वृद्धि हो रही है. जड़ी-बूटी और सुगंधित पौधों के लिए प्रति एकड़ बुआई का रकबा अभी भी इसके मुकाबले काफी कम है. हालांकि यह सालाना 10 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में कुल 1,058.1 लाख हेक्टेयर में फसलों की खेती होती है. इनमें सिर्फ 6.34 लाख हेक्टेयर में जड़ी-बूटी और सुगंधित पौधे लगाए जाते हैं.

अतीश की खेती से प्रति एकड़ 3 लाख तक कमाई
अतीश जड़ी-बूटी को उगानेवाले एक किसान को आसानी से 2.5 से 3 लाख रुपये प्रति एकड़ की आमदनी हो जाती है. अतीश का ज्यादातर इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं में होता है. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाके में किसान इसकी खेती कर रहे हैं. लैवेंडर की खेती करने वाले किसानों को आसानी से 1.2-1.5 लाख रुपये प्रति एकड़ मिल जाते हैं. लैवेंडर से तेल निकाला जाता है. इनसे कई तरह के सुंगधित उत्पाद बनाए जाते हैं.

मक्के से मिला 4 गुना ज्यादा रिटर्न
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में सांगला गांव के एक किसान विजय करन का कहना है कि वह अतीश, रतनजोत और कारू से प्रति एकड़ सालाना डेढ़ लाख से 3 लाख रुपये तक की कमाई कर लेते हैं. जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के खेल्लानी गांव में रहनेवाले भारत भूषण ने बताया कि इसी कमाई के चलते उन्होंने मक्के की खेती छोड़कर लैवेंडर की खेती शुरू कर दी. भूषण ने 2 एकड़ से इसकी शुरुआत की थी. उनका कहना है कि नवंबर तक वह और 10 एकड़ में इसकी बुआई करेंगे. उन्होंने बताया, ‘मैंने पहली बार 2000 में इसकी बुआई की थी. इस पर मिलने वाला रिटर्न मक्के से मिलने वाले रिटर्न से चार गुना है.

पतंजलि और डॉबर जैसी कंपनियां बढ़ा रहीं खरीद
करन इन फसलों की खेती का एक और बड़ा फायदा बताते हैं. वे कहते हैं, “जड़ी-बूटियों को बहुत अधिक पानी या खाद की जरूरत नहीं पड़ती है. कम पानी में भी ये फसलें लगाई जा सकती हैं.” पहले कम वर्षा के कारण सालाना एक फसल भी कठिन थी. डाबर इंडिया राजस्थान के बाड़मेर में शंखपुष्पी जैसे औषधीय पौधों की खेती के लिए किसानों के साथ काम करती है. नैचुरल रेमेडीज के निदेशक अमित अग्रवाल कहते हैं, “अतीश, कुठ, कुट्टी जैसी जड़ी बूटी की सप्लाई कम होने से काफी अच्चे दामों पर बिक जाती है.”

वह कहते हैं कि एक किसान जड़ी बूटी बेचकर औसतन 60,000 रुपये प्रति एकड़ कमा सकता है. बशर्ते वहां उन उत्पादों की मांग हो. नैचुरल रेमेडीज करीब 1,043 एकड़ भूमि पर जड़ी बूटियों से जुड़ी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर रही है.

पतंजलि के सीईओ आचार्य बालकृष्ण का कहना है कि कंपनी किसानों को 40,000 एकड़ जमीन पर जड़ी-बूटियों की खेती करने में मदद कर रही है. कुट्टी, शतावरी, और चिरायत कमाई में सबसे ऊपर हैं. उनका कहना है कि भारत में इस व्यवसाय को बढ़ाने की काफी संभावना है, क्योंकि चीन के बाद भारत ही सबसे ज्यादा इन फसलों का उत्पादन करता है. इनकी घरेलू और वैश्विक मांग काफी ज्यादा है.

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