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जाने वर्टिकल फार्मिंग तकनीक और यह कहां की जा रही है

Posted on December 24, 2020December 24, 2020 By User No Comments on जाने वर्टिकल फार्मिंग तकनीक और यह कहां की जा रही है

वर्टिकल फार्मिंग (खड़ी खेती) एक बहु-सतही (मल्टी लेवल) प्रणाली है. वर्टिकल ढांचे के सबसे निचले हिस्से में पानी से भरा टैंक रख दिया जाता है, और टैंक के ऊपरी खानों में पौधों के छोटे-छोटे गमले रखे जाते हैं. पाइप के द्वारा इन गमलों में उचित मात्रा में पानी पहुंचाया जाता है जिसमें पोषक तत्व (Nutrients) मिलते रहें. जो पौधों को जल्दी बढ़ने में मदद करते हैं. एलइडी बल्ब के माध्यम से कृत्रिम प्रकाश किया जाता है. वर्टिकल तकनीकी (Vertical technology) से खेती में मिट्टी की जरूरत नहीं होती, बल्कि मिट्टी के बजाय एरोपोनिक (Aeroponic), हाइड्रोपोनिक/ जल से (Hydroponic) या एक्वापोनिक से पौधों को उगाया जाता है.

वर्टिकल फार्मिंग से कम जमीन पर अधिक उत्पादन (Higher production) लिया जा सकता है. इसमें सबसे अच्छी बात ये भी है कि इसमें रासायनिक खाद (Chemical fertilizer) और कीटनाशक (Insecticides) दवाओं का उपयोग नहीं किया जाता. यह खेती से कम जमीन वाले किसान को काफी लाभ दिला सकती हैं, वर्टिकल फार्मिंग के द्वारा किसानों की आय को भी बढ़ाया जा सकता है.

क्या है हाइड्रोपोनिक्स तकनीक (What is hydroponics technology)
हाइड्रोपोनिक्स पौधे उगाने की एक प्रमुख प्रणाली है, जिसका उपयोग खड़ी खेती में किया जाता है. यह तकनीक तेजी से देश अपनी पहचान बना रही है. इसमें मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता बल्कि पोषक तत्वों से भरे पानी से पौधे बढ़ते है और पौधों की जड़ें जलमग्न (Submerged roots in water) रहती हैं. पानी में पोषक तत्व का घोल सही तरह से हो इसके लिए समय समय पर निगरानी (Supervision) की जाती है.

कृषि योग्य जमीन नहीं होने पर भी इसे इनडोर के रूप में पौधों को विकसित किया जा सकता है.

इसमें कम जमीन पर अधिक पौधे उगाये जा सकते है.

वर्टिकल फार्मिंग में रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का उपयोग नहीं होता है. जिससे प्राप्त उपज पूरी तरह से जैविक (Organic) होती है.

वर्टिकल फार्मिंग से किसानों की आय बढ़ेगी और उनके जीवन स्तर में सुधार आएगा.

वर्टिकल फार्मिंग में मजदूर की आवश्यकता कम होती है क्योंकि ये स्वचालित तकनीकी पर आधारित खेती है.

वर्टिकल फार्मिंग भारत में अभी एक दम नया है, कुछ कृषि विश्वविद्यालयों में इन पर शोध चल रहा है और कुछ या बहुत कम प्रोफेशनल वर्टिकल फार्मिंग कर रहे हैं. इस तरह की खेती को एक बिजनेस के रूप में भी देखा जा सकता है.

आम लोग अपनी छतों पर भी अपने उपयोग लायक सब्जियाँ पैदा कर सकते है. इसके लिए न तो मिट्टी की जरूरत होगी और न तेज धूप की. यानि कि यहाँ खीरा, घीया, शिमला मिर्च, तोरई, करेला, ऑफ सीजन धनिया, टमाटर, मिर्च, फूलगोभी, ब्रोकली, चीनी कैबेज, पोकचाई, बेसिल, रेड कैबेज का उत्पादन किया जा सकता है.

वर्टिकल फार्मिंग को लगाने के लिए अधिक पूंजी की जरूरत पड़ती है.

कृत्रिम रोशनी के माध्यम से और आसपास के वातावरण से ही पौधों की बढ़वार निर्भर होती है जिससे लागत भी अधिक आती है.

अधिक कुशल व्यक्तियों की आवश्यकता होती है क्योंकि पोषक तत्वों की मात्रा और तापमान और पौधों का चयन करना महत्वपूर्ण है.

गर्मी के दिनों में तापमान को नियंत्रित (Temperature control) रखना एक बड़ी चुनोती है जिसके लिए एयर कडीशन का अतिरिक्त खर्चा आता है.

देश में वर्टिकल फार्मिंग का भविष्य (Future of vertical farming in the country)

वर्टिकल फार्मिंग से अधिक उपज, जैविक उत्पाद और कम जमीन में कर सकने के कारण निश्चित रूप से अच्छी है मगर अधिक लागत, वर्टिकल फार्मिंग की अधिक जानकारी और कोशल व्यक्तियों का होना इसमें जरूरी है. इसलिए भारतीय किसान द्वारा इसे स्वीकार कर पाना इतना भी आसान नही होने वाला.

कृषि संस्थानों में वैज्ञानिक इसे अधिक प्रभावी बनाने में और कम लागत करने में लगे है. इसके साथ ही काफी स्टार्ट अप इस क्षेत्र में किए जा रहे है. जिसका लाभ भी धीरे-धीरे किसानों और आम जन को मिलेगा.

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