लीफ माइनर-मटर की फसल में इस कीट की अधिकता फरवरी तथा अप्रैल महीने में रहती है. यह कीट मटर के फूल, शिशु पत्तियों और फलियों में सुरंग बनाते हैं.
रोकथाम- इस कीट की रोकथाम के लिए पंचगव्य को 5 से 10 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.
फली छेदक- फली छेदक सुंडियां पहले मटर की पत्तियों पर पलती है, फिर यह फली के अंदर जाकर उसे नुकसान पहुंचाती है.
जैविक उपाय- इस कीट की रोकथाम के लिए मेथी के एक किलो आटे को 2 लीटर पानी में घोलकर रख देते हैं. 24 घंटे के बाद इसे 10 लीटर पानी में डालकर छिड़काव कर देते हैं. जिससे यह कीट मर जाता है.
फफूंद जनित रोग- यह रोग सबसे पहले मटर की हरी पत्तियों पर लगता है जिसके कारण सफेद धब्बे पड़ जाते हैं. इसके बाद तने और फलियों को प्रभावित करता है. इस रोग के कारण पत्तियों और फलियों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं. वहीं पत्तियां सिकुड़ जाती है.
जैविक उपाय- इस रोग की रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करना चाहिए. वही रोग लगने के बाद अदरक के चूर्ण को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
एस्कोकाइटा ब्लाइट-इस बीमारी के कारण मटर का पौधा कमजोर होकर मुरझा जाता है. वही जड़े भूरी हो जाती है तथा पत्तों और तनों पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं.
जैविक उपाय- इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीज को पंचगव्य से उपचारित करके बोना चाहिए. वही बीमारी लगने के बाद गोमूत्र का 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.
सफेद विगलन- इस बीमारी के कारण मटर की फलियां अंदर से सड़ने लगती है. पौधे के उपर बदरंगी धब्बे दिखाई देते हैं.
जैविक उपाय- बुवाई से पहले मिट्टी को ट्राइकोडर्मा हारजिएनम से उपचारित करना चाहिए. पुराने रोगग्रस्त पौधों को नष्ट कर देना चाहिए.
रस्ट बीमारी- पौधे की पत्तियां और तना पीला पड़ जाता है वहीं कभी कभी यह फलियों पर दिखाई देता है.
उपाय- इसके उपचार के लिए रोगप्रतिरोधी किस्में ही बोना चाहिए.
जीवाणु अंगमारी- इस रोग का प्रकोप पत्तियों और फलियों पर पड़ता है. इस बीमारी के कारण पत्तियों को रंग भूरा पड़ जाता है.
उपाय- बुवाई से पहले बीज को ट्राइकोडर्मा एवं बीजामृत से उपचारित करना चाहिए.
मोजेक-इस बीमारी के कारण पौधे पर फूल कम आते हैं जिसके कारण फलियां कम लगती है. इससे फसल की कम पैदावार होती है.
उपाय-रोग प्रतिरोधी किस्मों को चयन करना चाहिए. नीम तेल का 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.
अगेता भूरापन-इस रोग के कारण पौधे पर लगने वाली फलियां विकृत हो जाती है. इसके कारण फलियों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है. यह विषाणुजनित रोग है.
उपाय-इस बीमारी की रोकथाम के लिए बुवाई से पहले मिट्टी को ट्राइकोडर्मा से उपचारित करना चाहिए.
