आयुर्वेद के बढ़ते महत्व को देखते हुए औषधीय पौधों की मांग भी लगातार बढ़ रही है। इन पौधों की छाल, बीज, फूल, जड़, कंद, पत्तियां, लकड़ी, गोंद आदि का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाएं बनाने में होता है। बढ़ती मांग के कारण औषधीय पौधों के उत्पादों के दाम अच्छे मिलने लगे हैं। किसान इन पौधों की खेती कर अच्छी आमदनी कर सकते हैं। राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत औषधीय पौधों की खेती के लिए अनुदान व सहायता देने का प्रावधान है। राजस्थान की जलवायु के अनुसार 40 से ज्यादा औषधीय पौधों की खेती की जा सकती है। इनमें मुख्य रूप से आंवला, अशोक, अश्वगंधा, अतिस, बेल, भू आमलकी, ब्राह्मी, चिरायता, गिलोय, गुड़मार, गूगल, ग्वारपाठा, ईसबगोल, कलिहारी, कालमेघ, कटुका, मकोय, मुलेठी, सफेद मूसली, पत्थर चूर, पीपली, सर्पगंधा, सताय, शतावरी, तुलसी, वायविडंग, वत्सनाभ, सदाबहार, रतनजोत, लेमनग्रास, निगुंडी, मेहंदी, चित्रक सफेद, वांसा, शिकाकाई, माल कांगनी, हड़जोड़, दमाबेल, बाचची, चंद्रसुर, अमलतास, अर्जुन व अरीठा आदि शामिल हैं। प्रदेश में करीब 350 हैक्टेयर में अश्वगंधा का उत्पादन होता है। इसकी पैदावार मुख्यत: कोटा, नागौर, चित्तौड़गढ़ व झालावाड़ में होती है। ग्वारपाठा नागौर, चूरू, जयपुर व बीकानेर इलाके में ज्यादा होता है। इसकी पैदावार में प्रदेश में करीब 600 हैक्टेयर में की जाती है। गूगल का उत्पादन नागौर व करौली इलाके में तथा सफेद मूसली का उदयपुर इलाके में उत्पादन होता है।
प्रमुख औषधीय पौधों की बुआई और फसल का समय
पौधे का नाम बिजाई/बुआई फसल का समय
अश्वगंधा अगस्त 6 माह
गूगल जुलाई से अगस्त 10 साल बाद से 60 साल तक
ईसबगोल अक्टूबर से नवंबर 100 से 130 दिन
कलिहारी जून 5 साल तक हर 6 माह में
कालमेघ वर्षा ऋतु में 5 माह
मकोय वर्षा ऋतु में एक साल
मुलेठी जुलाई 3 साल तक
सफेद मूसली जून 9 माह
पीपली वर्षा ऋतु में एक साल बाद
सर्पगंधा जून 18 माह
शतावरी जून 2 साल
तुलसी फरवरी से अक्टूबर 3 माह
रतनजोत जून 3 से 50 साल तक
लेमनग्रास बीज से अप्रैल-मई 5 साल तक हर तिमाही
नर्सरी लगाने पर भी मिलती है सहायता : औषधीय पौधों की नर्सरी स्थापित करने के लिए सरकार की ओर से वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाती है। नर्सरी दो तरह की हो सकती हैं। छोटी नर्सरी और मॉडल नर्सरी। छोटी नर्सरी का न्यूनतम क्षेत्रफल एक हैक्टेयर होना चाहिए। इसमें हर साल कम से कम 60-70 हजार पौधे उत्पादित करने होंगे। इस नर्सरी की लागत 6.25 लाख रुपए प्रति इकाई होगी। इसके लिए सार्वजनिक व स्वयं सहायता दलों को सौ फीसदी वित्तीय सहायता दी जाएगी जबकि निजी क्षेत्र में यह लगभग 50 प्रतिशत होगी। मॉडल नर्सरी का क्षेत्रफल 4 हैक्टेयर होगा। इसमें हर साल लगभग दो-तीन लाख पौधे उत्पादित करने होंगे। नर्सरी के बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए अनुमानित लागत करीब 25 लाख रुपए होगी। मॉडल नर्सरी की स्थापना के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में सौ प्रतिशत तक प्रति इकाई सहायता दी जाएगी जबकि निजी क्षेत्र में यह लगभग 50 फीसदी होगी। नर्सरी स्थापना के लिए राजस्थान हार्टिकल्चर डवलपमेंट सोसायटी जयपुर को परियोजना के प्रस्ताव प्रस्तुत करने होंगे।
