भारत में किसानों की आमदनी का मामला हमेशा से ही गंभीर रहा है. इसके पीछे कई वजहें गिनाई जा सकती हैं. सरकार भी किसानों को इस स्थिति से निकालने के लिए कई योजनाएं चला रही है. इसके अलावा किसान खुद भी खेती के परंपरागत तरीकों को छोड़कर नए और कारगर तरीकों से खेती कर सकते हैं और अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं. यहां कुछ ऐसी ही फसलों के बारे में जानकारी दी जा रही है जिनसे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
खस की खेती
खस एक औषधीय फसल है. जिसकी जड़ों से प्राप्त तेल इत्र, साबुन, कॉस्मेटिक आदि पदार्थों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है. इसके अतिरिक्त तंबाकू, पान मसाला, शीतल पेय पदार्थ में भी इसका प्रयोग किया जाता है.
साधारण नाम : खस, वेटीवर
वनस्पतिक नाम : क्राईसोपोगान जिजैनियोइडिस
उन्नत किस्में : के. एस 1, धारिणी, केशरी, गुलाबी, सिमैप खस -15, सिमैप खस -22
जलवायु : इसकी खेती मुख्य रूप से समशीतोष्ण जलवायु में की जा सकती है.
भूमि : खस की खेती के लिए बलुई दोमट, भारी, बलुई भूमि उपयुक्त होती है. जल भराव व असिंचित क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है.
प्रवर्धन
खस मुख्यत : कल्लों (सिप्लस) द्वारा लगाई जाती है. 5 -6 माह पुराने खस के कल्ले को 25 -30 से.मी ऊपर से काट देते हैं. उसके बाद क्लम्प (मूंजड़ ) को खोदकर स्लिप को अलग कर देते है.
पौधा रोपण व भूमि की तैयारी
सामान्य तौर पर इसकी रोपाई जुलाई -अगस्त माह में करते हैं. किन्तु उत्तर भारत में खस की एकवर्षीय फसल के लिए स्लिप रोपण का उपयुक्त समय अक्टूबर- नवंबर एवं फरवरी -मार्च है. रोपाई 50 *50 से.मी. की दूरी पर करनी चाहिए. अंत : अधिक पैदावार के लिए रोपाई 60 *40 से.मी. की दूरी पर करें. भूमि की अच्छी तरह जुताई करके उसमें 10 -15 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद डालनी चाहिए.
अंत : फसल –
अक्टूबर-नवंबर में रोपी खस के साथ गेहूं या मसूर तथा जनवरी -फरवरी में रोपी खस के साथ मेंथा एवं तुलसी की फसल ली जा सकती है. इस प्रकार अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है.
खाद एवं उर्वरक –
खस की फसल में 10 -15 ट्रॉली सड़ी गोबर की खाद तथा 80- 100 कि.ग्रा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस 50-60 किग्रा एवं 40-50 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. रोपाई के क्रमश: 30, 60, 90 एवं 120 दिन बाद चार बराबर भागों में नाइट्रोजन की मात्रा दी जाती है.
सिंचाई
पौधा रोपण के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए और फिर आवश्यकता अनुसार 7 -8 सिंचाई करनी चाहिए.
कटाई –
जड़ो की खुदाई 11 -13 माह में करनी चाहिए 1 जड़ो की खुदाई दिसंबर एवं जनवरी माह में करना उचित रहता है.
उपज –
जड़ों की उपज 15 -25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर जिससे 18 -25 किग्रा तेल की प्राप्ति होती है. जड़ों से तेल आसवन द्वारा निकाला जाता है.
आमदनी
इसकी खेती पर प्रति हेक्टेयर 9 लाख रुपए की लागत आती है. जबकि प्रति हेक्टेयर कुल 3 लाख 25 हज़ार रुपए की आमदनी होती है. इस लिहाज से प्रति हेक्टेयर 2 लाख 35 हज़ार रुपए का शुद्ध लाभ ले सकते हैं. इस प्रकार खस की खेती से अच्छी आमदनी ली जा सकती है.
