संक्षेप में, जैविक खेती में फसल उगाने की उन तकनीकों और तरीकों को शामिल किया जाता है, जो सतत कृषि के माध्यम से पर्यावरण, मनुष्यों और जानवरों की रक्षा करने का प्रयास करते हैं। जैविक खेती के उत्पादकों को उर्वरीकरण और फसल की सुरक्षा दोनों के लिए जैविक पदार्थों के अलावा कोई और चीज प्रयोग करने की अनुमति नहीं होती है।
उर्वरीकरण विधियों के रूप में, वे मुख्य रूप से गोबर की खाद, कम्पोस्ट, या विशेष जैविक सिंथेटिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। फसल सुरक्षा उपायों के रूप में, वे ज्यादातर जालों और शिकारियों का प्रयोग करते हैं। इस खेती की विधि में बहुत मेहनत और पैसों की आवश्यकता होती है और पारंपरिक खेती की तुलना में इसकी पैदावार काफी कम होती है।
हालाँकि, जैविक उत्पादक पारंपरिक उत्पादकों की तुलना में अपने उत्पादों को ज्यादा दामों पर बेच सकते हैं। दूसरी ओर, पारंपरिक खेती में कृषि रसायनों या सिंथेटिक उर्वरकों का केवल तभी प्रयोग किया जा सकता है, अगर वे GAP के मानकों के अनुसार प्रयोग किए जाते हैं।
जैविक और पारंपरिक खेती के बीच चुनाव करना आसान नहीं है। यह निश्चित है कि नया किसान लागत में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता। उसके पास सभी लागतों को नियंत्रित करने और आकर्षक दाम पर एक औसत उत्पाद उत्पादित करने का अनुभव नहीं होता है। इसलिए, कई नए किसान जैविक खेती का चयन करते हैं। इस तरह, वे गुणवत्ता पर दांव लगाते हैं। वे छोटी मात्रा में उच्च-गुणवत्ता वाले उत्पाद के उत्पादन की योजना बनाते हैं जिसे बहुत अधिक कीमतों पर बेचा जा सकता है। उनमें से कुछ इसमें सफल होते हैं, जबकि दूसरे नहीं। किसी भी मामले में, सफल होने के लिए जैविक किसानों को विशेष प्रबंधन, मार्गदर्शन, और थोड़े अनुभव की जरूरत होती है।
आधुनिक मानव के उदभव व उसके विकास की कहानी बीजों के संरक्षण व रखरखाव से सीधे रूप से जुडी है| मनुष्य को जीवित रखने के लिए अन्न आवश्यक है जिसका उत्पादन बीजों के बिना असम्भव है| आज खेती के आधुनिकीकरण के कारण बीजों के लिए उत्पादन बीजों कम्पनियों पर निर्भर होते जा रहे हैं व साथ ही बीजों के रखरखाव के लिए विविध प्रकार के रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं| बीजों के लिए किसान की बीज कम्पनियों पर स्थिति में आनेवाले समय में अपने बीजों के आभाव व बाजार में बढ़ती बीजों की कीमतों की वजह से गरीब किसान बीज नहीं खरीद पायेगा या फिर वह कर्जें के दुशचक्र में फंसता चला जायेगा| इस तरह चीरे-धीरे स्वतः ही बीजों का संवर्धन किसान के हाथों से निकल कर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों में चला जा रहा है|
इस दुशचक्र में किसान को फंसने से बचाने के लिए हमें पारंपरिक देसी बीजों को बचाकर रखने व अन्न भंडारण की नई तकनीकों की इजाद करने की आवश्यकता है| किसान व बीजों को अपने पारम्परिक, प्राकृतिक तौर तरीकों व संसाधनों से अपने ही खेत खलियानों व घरों में बचा सकता है| गरीब किसानों के उज्वल भविष्य के लिए बीज बचाव के रासायनिक तौर तरीकों को बंद करना होगा| किसानों द्वारा बीज संग्रहण, संरक्षण व अन्न भंडारण के कुछ जैविक व प्राकृतिक तरीके द्वारा किसानों ने सदियों से बीजों को बचाया है, यहाँ पर प्रस्तुत किये गये हैं|
स्वस्थ एवं अच्छे बीजों का चयन
बीजों की गुणवत्ता, उनके एकत्रित करने के समय व तौर तरीकों पर निर्भर करती है| बीजों को एकत्रित करते समय यह ध्यान में रखना अति आवश्यक है कि अच्छी बढ़त वाले स्वस्थ पौधों की पहचान कर उनके ही बीज बचाए जाएँ| खड़ी फसल में निरोगी पौधों को पहचान आकर उनके ही बीज एकत्रित करें क्योंकि ऐसे बीजों में रोग से लड़ने की प्राकृतिक ताकत होती है| फल तथा सब्जियों के बीजों के लिए फल चुनाव करते समय यह ध्यान रखें की पौधा रोग ग्रसित न हो | पौधे पर फलों या फलियों की संख्या अन्य पौधों से अधिक हो व फलों का आकार बड़ा हो या फली पुर्णतः पकी हुई हों|
बीजों का संरक्षण
बीजों को साफ करके 3-4 दिन तक हल्की धुप में सुखाएं व ठंडा होने पर भण्डारण करें| सामन्यतः किसी भी प्रकार के बीज में 14% से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए, अन्यथा बीज कीड़ों या फुफंद से ग्रसित हो जाते हैं| एक जैसे आकार के बीजों को संरक्षित करें| टूटे हुए तथा रोगग्रस्त बीजों को चुगकर व छानकर अलग करें| बीजों से कंकर-पत्थर, खरपतवार व अन्य फसलों के बीजों को अच्छी तरह साफ कर लें| बीजों में थोड़ा सा भूसा रहने दें| बीजों का भण्डारण कमरे में सूखे, ठन्डे व अंधरे स्थान पर नमी रहित, ठीक से बंद होने वाले शीशे, रिंगाल की टोकरी या टीन के डिब्बों अथवा मिट्टी के बर्तनों में करें ताकि बाहर के वातावरण का प्रभाव बीजों पर न पड़े| डिब्बों पर फसल का नाम, बीज कहाँ से कब एकत्रित किया गया है जरुर लिखें|
