Skip to content
  • उत्तराखंड सरकार
  • Government of Uttarakhand
Rajya Kisan Ayog

Rajya Kisan Ayog

राज्य किसान आयोग, उत्तराखण्ड

  • Home
  • About Us
  • Blog
  • Contact Us
  • Ayog Meeting
  • Meeting With Farmers
  • Scheme Exclusion
  • Guidelines
  • FAQ
  • अन्य लिंक
  • Toggle search form

परम्परागत बीज भण्डारण

Posted on December 10, 2020 By User No Comments on परम्परागत बीज भण्डारण

अनाज, दालों व बीजों के भण्डारण के परम्परागत तरीके निश्चित तौर से रसायनों के दुष्प्रभावों से रहित है| बीजों के भण्डारण के कुछ परम्परागत तरीके निम्न प्रकार से हैं:

नीम, डैंकण की पत्ती:  बीजों के भण्डारण के लिए मिट्टी, बांस या रिगाल के बर्तनों को नीम की पत्ती या खली की लुगदी से लीप दें| बीजों के भण्डारण के लिए उन्हें बर्तनों में भरें व भण्डारण से पहले उसे अच्छी तरह सुखाकर जिस बर्तन में अनाज रखें उस बर्तन की तली में नीम या डैंकण की सुखी पत्तियों की एक परत बिछाकर फिर बीज या अनाज डालें व बीच-बीच में इनकी एक और परत बिछाकर अनाज में सबसे ऊपर इन्हीं पत्तियों को बिछाकर तथा बर्तन का मुँह बंद कर मिट्टी या गोबर से लीप कर बंद कर दें|

नीम, डैंकण का आलावा अखरोट, आडू, टेमरू, कपूर व निर्गुड़ी (सिरोली) के पत्तों का भी प्रयोग किया जा सकता है| इन सभी पत्तियों के पाउडर को सुखाकर व बारीक़ पीसकर अच्छी तरह सूखे अनाज में मिलाने से बीज सुरक्षित रहते हैं|

नीम, डैंकण की गिरी व तेल: पत्तियों के बजाय तेल को उपयोग में लाना सरल है| दालों को सुरक्षित रखने के लिए नीम अथवा डैकण के तेल का प्रयोग करें| नीम व डैंकण के सक्रिय अवयव या तत्व, उसके बीजों अथवा गिरी में उपस्थित रहते हैं| नीम व डैंकण के बदले करंज की सुखी पत्तियों या तेल का प्रयोग कर सकते हैं|

सरसों व आरंडी के तेल सभी प्रकार के दालों के बीजों को सुरक्षित रखने के लिए प्रयोग किया जा सकता है| बीजों को तेल के साथ तब तक मिलाएं जब तक सभी दानें तेल से चमकते दिखें|

टेमरू (मिस्वाक) : टेमरू की सुखी पत्तियों का प्रयोग किसी भी तरह के अनाज को संरक्षित करने के लिए किया जा सकता है| इनकी खुश्बू से चूहे भी दूर भागते हैं व कीड़े मर जाते हैं|

हल्दी का पाउडर : इसको सूखे अनाज में मिलाने से अनाज, तिलहन व दालें सुरक्षित रहती हैं|

धान या झंगोरे के पराल का ढेर (पराल खुंभ)

पहाड़ों में धान, मडुवा या झंगोरे के सूखे पराल के ढेर को पेड़ के सहारे ऊंचाई पर बांधकर इस घास को संरक्षित करने को पराल खुंभ  कहा जाता है| ककड़ी या माल्टा के फलों को पराल के ढेर के बीच में रखकर संरक्षित किया जाता है| फलों व गुड़ को भूसे के ढेर में सुरक्षित रखा जाता है|

मसूर, चना, लोबिया की दालों एवं संतरा, माल्टा व ककड़ी आदि फलों को कोदा, झंगोरे व चौलाई के भूसे के बीच रखकर सुरक्षित रखा जा सकता है|

लकड़ी की राख या कोयला : बीजों को नमी से बचाने के लिए डिब्बे में चौथाई भाग तक लकड़ी का कोयला या राख डालकर उसे कागज से ढक दें व उस के ऊपर बीज डालें अथवा कोयले या राख की पोटली बनाकर बीजों के ऊपर से रखें| जब भी डिब्बे को खोलें राख या कोयला बदल दें| गेंहूँ व दालों के 1 कोलो ग्राम बीज को संरक्षित रखने के लिए 500 ग्राम सुखी लकड़ी की राख को बीजों के साथ मिलाएं|

लाल चिकनी मिट्टी का पाउडर:- इसे गेंहूँ के बीज में मिलाया जाता है| किसी भी बर्तन में बीज भरने के बाद लगभग 1 इंच मोटी लाल मिट्टी की परत से ढककर बर्तन के मुहं को बंद करें|

रिंगाल की बनी ऊँची टोकरी (ढक्वलि, घेल्डा): इस टोकरी को गोबर व लाल मिट्टी से लीपकर उसके छेद बंद कर दें| सूखने के बाद इसे कीटाणु रहित करने के लिए गौमूत्र व लकड़ी के धुंए की राख (कीरे) से लीपें| इस टोकरी में धान के बीजों के साथ टेमरू, अखरोट व डैकण की पत्तियाँ मिलाकर रखें व ढक्कन बंदकर उसे गोबर व गोमूत्र से लीप कर बंद कर दें| इसे बुवाई के समय ही खोलें| टोकरी की लगातार धुएं में रखने से वह मजूबत होती है| रिंगाल के अलावा बेंत की टोकरी का प्रयोग बीज भंडारण के लिए किया जाता है| टोकरी को गाय के गोबर व रेत में नीम का तेल मिलाकर लिपाई करने के बाद उसे अच्छी तरह सुखायें व फिर उसमें बीज संरक्षित करें|

लकड़ी के कोठार (बक्सा) पहाड़ों में लकड़ी की कोठार में बीज को सबसे ज्यादा सुरक्षित माना जाता है| सबसे पहले कोठार को गोबर, लाल मिट्टी व गोमूत्र से लीपकर सुखाएँ व गोबर जलाकर इसे कीटाणु रहित करें| फिर इसमें बीज भरकर टेमरू, अखरोट, नीम आदि पौधों की सुखी पत्तियों से ढककर बंद कर दें|

कचनार (मालू) के पत्तों की टोकरी: मालू के हरे पत्तों की टोकरी बनाकर इसे सुखा दें तथा इसमें बीज रखकर मालू की रस्सियों से कस कर बांध दें व इस टोकरी को चूल्हे की ऊपर टांग दें|

तोमड़ी (सुखी लौकी): लौकी को धूप में सुखाकर उसका गुदा निकालकर खोखला करें| अच्छी तरह सुखाने के बाद इसमें बीज रखकर उसके मुंह को साफ कपड़े से बंद कर उसके ऊपर से गोबर-गोमूत्र का लेप कर दें|

मालू की रस्सी व गेंहू के पराल की चटाई: मालू की रस्सी व गेंहू के पराल की चटाई बनाकर उसे एक ओर से सिल दें, जिससे उसका मुहं दोनों तरफ से खुला रहे| जितना बड़ा चटाई का मुहं होता है कमरे के अदंर उतनी जगह में गोबर, मिट्टी, गोमूत्र की मेंढ़ बना लें| मेंढ़ सूखने के बाद इसे मिट्टी व गोमूत्र से लीपकर बंद कर दें|

सब्जियों व फलीदार बीजों जैसे बैंगन, लोबिया की फलियों व मक्का के संरक्षण हेतु उसकी गुच्छी बनाकर रस्सी के सहारे घर में ऐसी जगह टांग दें जहाँ, धूप, हवा लगती रहे पर साथ ही बारिश से भी बचाव हो| यह तरीका सब्जियों के बीजों को संरक्षित करने के लिए प्रयोग किया जाता है| इसके लिए अतिरिक्त प्याज, लहसुन को संरक्षित करने के लिए इनकी गट्ठियां बनाकर हवादार स्थान पर टांगने से सुरक्षित रहते हैं| इन्हें से ऊँचा उठाकर अँधेरे कमरे में रखने से ये सड़ते नहीं हैं|

अदरक, अरबी व हल्दी के संरक्षण हेतु खेत के एक कोने में गड्ढा खोदकर उसके अंदर बीज रखकर उसे घास-फूस व मिट्टी से ढक दें| ध्यान रहे की इस गड्ढे में वर्षा या अन्य पानी नहीं भरना चाहिए|

चावल सुरक्षित रखने हेतु नमक, मिर्च व मेथी की पोटली बनाकर कोठार में चावलों के बीच अलग-अलग सतहों पर रखें|

परम्परागत तौर पर धुंआ बीज संरक्षण के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता रहा है व धुएं वाली जगह ही बीज संरक्षित किये जाते रहें हैं| माना जाता है कि इससे बीजों में नमी नहीं आती और बीज खराब नहीं होते| सामान्यतः गोबर के उपले का धूँआ किया जाता है| इसके अतिरिक्त नीम व डैकण की सूखी पत्तियां भी जलाई जाती हैं|

Post

Post navigation

Previous Post: जैविक या पारंपरिक खेती? मात्रा चुनें या गुणवत्ता?
Next Post: भंडारण सुविधाओं और लॉजिस्टिक्स – परिवहन का निरीक्षण करना

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

News & Updates

The First Meeting is being conducted on 02/08/2021.

National Website

  •  National portal of India
  •  Ministry of Comm. & IT
  •  Portal for Public Grievances
  •  Government Web Guidelines
  •  National Knowledge Network

Uttarakhand Govt. Websites

  •  Election Commission of India
  •  Chief Electoral Officer – Uttarakhand
  •  Uttarakhand Tourism Development Board
  •  Uttarakhand Government Orders
  •  Uttarakhand Transport Corporation (UTC)

Citizen Services

  •  e-District Jan Seva Kendra
  •  Tax Department
  •  e-Tendering System
  •  Court Cases
  •  MDDA

State at a Glance

  •  Governor
  •  Chief Minister
  •  Raj Bhawan
  •  uttarakhand vidhan sabha
  •  Uttarakhand State AIDS Control Society

Copyright © 2025 Rajya Kisan Ayog.

Powered by Uttarakhand Rajya Kisan Ayog

Complaint
Enquiry
Suggestion Box
Subscribe

If you opt in above we use this information send related content, discounts and other special offers.