हरे मोतियों जैसी मूंग भारत व दक्षिणपूर्व एशिया की एक खास फसल है. इस में प्रोटीन बहुत मात्रा में पाया जाता है. इस के अलावा इस में कार्बोहाइड्रेट, खनिज तत्त्व व विटामिन भी होते हैं. कम समय में ही पकने के कारण इसे बहुफसली चक्र में आसानी से रखा जा सकता है. मूंग की फसल से फलियों की तोड़ाई के बाद पौधों को खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से पलट कर मिट्टी में दबा देने से यह हरी खाद का काम करती है. मूंग की खेती करने से मिट्टी की ताकत में भी इजाफा होता है.
मूंग को खरीफ, रबी व जायद तीनों मौसमों में आसानी से उगाया जा सकता है. उत्तरी भारत में इसे बारिश व गरमी के मौसम में उगाते हैं. दक्षिणी भारत में मूंग को रबी मौसम में उगाते हैं. इस फसल के लिए ज्यादा बारिश नुकसानदायक होती है. ऐसे इलाके, जहां पर 60 से 75 सेंटीमीटर तक सालाना बारिश होती है, मूंग की खेती के लिए मुनासिब हैं. मूूंग की फसल के लिए गरम जलवायु की जरूरत पड़ती है. इस की खेती समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है. पौधों पर फलियां लगते समय और फलियां पकते समय सूखा मौसम व ऊंचा तापमान बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है.
मिट्टी : मूंग एक दाल वाली फसल है, जो कम समय में पक कर तैयार हो जाती है. सिंचाई व बिना सिंचाई दोनों रकबों में इस की खेती आसानी से की जा सकती है. इस की सफलतापूर्वक खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट जमीन सब से मुनासिब मानी गई है. उत्तरी भारत में अच्छी जल निकासी वाली दोमट मटियार मिट्टी और दक्षिणी भारत के लिए लाल मिट्टी मुनासिब है.
खेत की तैयारी : बारिश शुरू होने के बाद खेत में 1 बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर के 2 से 3 बार कल्टीवेटर या देशी हल से जुताई करनी चाहिए और पाटा चला कर खेत को बराबर बना लेना चाहिए. खेत से खरपतवार व पुरानी फसल के ठूठों को बाहर निकाल देना चाहिए. आखिरी जुताई के समय खेत में गोबर या कंपोस्ट खाद 50 क्विंटल प्रति हेक्टयर की दर से मिट्टी में मिला देनी चाहिए. दीमक से बचाव के लिए क्लोरोपायरीफास 15 फीसदी चूर्ण 20 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना फायदेमंद होगा.
फार्मिंग
मूंग की आधुनिक विधि से खेती
नए पौधे से फली निकलने की दशा में इस कीट के शिशु व वयस्क पौधों की पत्तियों पर पाए जाते हैं.
डा. ऋषिपाल | December 2, 2020
हरे मोतियों जैसी मूंग भारत व दक्षिणपूर्व एशिया की एक खास फसल है. इस में प्रोटीन बहुत मात्रा में पाया जाता है. इस के अलावा इस में कार्बोहाइड्रेट, खनिज तत्त्व व विटामिन भी होते हैं. कम समय में ही पकने के कारण इसे बहुफसली चक्र में आसानी से रखा जा सकता है. मूंग की फसल से फलियों की तोड़ाई के बाद पौधों को खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से पलट कर मिट्टी में दबा देने से यह हरी खाद का काम करती है. मूंग की खेती करने से मिट्टी की ताकत में भी इजाफा होता है.
मूंग को खरीफ, रबी व जायद तीनों मौसमों में आसानी से उगाया जा सकता है. उत्तरी भारत में इसे बारिश व गरमी के मौसम में उगाते हैं. दक्षिणी भारत में मूंग को रबी मौसम में उगाते हैं. इस फसल के लिए ज्यादा बारिश नुकसानदायक होती है. ऐसे इलाके, जहां पर 60 से 75 सेंटीमीटर तक सालाना बारिश होती है, मूंग की खेती के लिए मुनासिब हैं. मूूंग की फसल के लिए गरम जलवायु की जरूरत पड़ती है. इस की खेती समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है. पौधों पर फलियां लगते समय और फलियां पकते समय सूखा मौसम व ऊंचा तापमान बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है.
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मिट्टी : मूंग एक दाल वाली फसल है, जो कम समय में पक कर तैयार हो जाती है. सिंचाई व बिना सिंचाई दोनों रकबों में इस की खेती आसानी से की जा सकती है. इस की सफलतापूर्वक खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट जमीन सब से मुनासिब मानी गई है. उत्तरी भारत में अच्छी जल निकासी वाली दोमट मटियार मिट्टी और दक्षिणी भारत के लिए लाल मिट्टी मुनासिब है.
खेत की तैयारी : बारिश शुरू होने के बाद खेत में 1 बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर के 2 से 3 बार कल्टीवेटर या देशी हल से जुताई करनी चाहिए और पाटा चला कर खेत को बराबर बना लेना चाहिए. खेत से खरपतवार व पुरानी फसल के ठूठों को बाहर निकाल देना चाहिए. आखिरी जुताई के समय खेत में गोबर या कंपोस्ट खाद 50 क्विंटल प्रति हेक्टयर की दर से मिट्टी में मिला देनी चाहिए. दीमक से बचाव के लिए क्लोरोपायरीफास 15 फीसदी चूर्ण 20 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना फायदेमंद होगा.
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मूंग की प्रजातियों का चयन : उम्दा प्रजातियों का चुनाव करने से उत्पादन में हर हाल में इजाफा होगा. मौसम के मुताबिक मुनासिब प्रजातियां नीचे दी गई?हैं:
रबी मौसम के लिए : टाइप 1, पंत मूंग 3, एचयूएम 16, सुनैना और जवाहर मूंग 70.
खरीफ मौसम के लिए : पूसा विशाल, मालवीय ज्योति, एमएल 5, जवाहर मूंग 45, अमृत, पीडीएम 11 और टाइप 51.
रबी व खरीफ दोनों मौसमों के लिए : टाइप 44, पीएस 16, पंत मूंग 1, पूसा विशाल, के 851 और शालीमार मूंग 2.
बीज की मात्रा : खरीफ मौसम में 12 से 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टयर की दर से डालना फायदेमंद होगा और बोआई कतारों में 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए. रबी व गरमी के मौसम में मूंग के लिए बीज दर 20 किलोग्राम प्रति हेक्टयर रखनी चाहिए और बोआई कतारों में 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए.
खाद व उर्वरक : मूंग एक दाल वाली फसल है, इसलिए इस में ज्यादा नाइट्रोजन की जरूरत नहीं पड़ती है, फिर भी 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश की मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से बोआई के समय देना फायदेमंद होगा. गंधक की कमी वाले रकबों में गंधकयुक्त उर्वरक 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए. सभी चारों तरह के उर्वरकों की पूरी मात्रा बोआई से पहले या बोआई के समय ही देनी चाहिए. यदि संभव हो तो हर तीसरे साल में 1 बार 10 से 15 क्विंटल अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद आखिरी जुताई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालनी चाहिए.
सिंचाई व जल निकास : खरीफ में मूंग की फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन फूल आने की दशा में सिंचाई करने से उपज में काफी इजाफा होता है. अधिक बारिश की दशा में खेत से पानी निकालना बेहद जरूरी होता है. पानी न निकालने से पद्गलन रोग हो जाता है, जिस से फसल को भारी नुकसान होता है. गरमी में मूंग की फसल में खरीफ की तुलना में पानी की ज्यादा जरूरत होती है. गरमी के मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतर पर 4 से 6 सिंचाई करनी चाहिए. ज्यादा गरमी होने पर सिंचाई का अंतर 8 से 10 दिनों का रखना चाहिए.
निराईगुडाई व खरपतवार नियंत्रण : बोआई के 15 से 20 दिनों बाद पहली और 40 से 45 दिनों बाद दूसरी निराई करनी चाहिए. घास व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को रासायनिक विधि द्वारा खत्म करने के लिए फ्लूक्लोरिलिन 45 ईसी की 2 लीटर मात्रा 800 से 1000 लीटर पानी में घोल कर बोआई से पहले खेत में छिड़काव करें. बोआई के बाद बीज जमने से पहले पेंडिमेथिलीन 30 ईसी की 3.3 लीटर मात्रा 800 से 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
बोआई का समय व तरीका : जायद मूंग की बोआई जहां सिंचाई की सुविधा हो वहां फरवरी में ही कर देनी चाहिए. खरीफ मौसम में मूंग की बोआई मानसून आने पर जून के दूसरे पखवाडे़ से जुलाई के पहले पखवाडे़ के बीच करनी चाहिए. उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, बिहार व पश्चिम बंगाल में मूंग की खेती गरमी के मौसम में की जाती है. इन राज्यों में मूंग को गन्ना गेहूं, आलू आदि की कटाई के बाद बोते हैं. मूंग की बोआई कतारों में करनी चाहिए. 2 कतारों के बीच की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. बीजों को 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. मूंग के बीजों को
पहले कार्बेंडाजिम से उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए.
मूंग के खास कीड़े
काला लाही माहूं : नए पौधे से फली निकलने की दशा में इस कीट के शिशु व वयस्क पौधों की पत्तियों पर पाए जाते हैं. ये बसंतकालीन फसल की मुलायम टहनियों, फूलों व कच्ची फलियों से रस चूसते हैं.
रोकथाम : माहूं का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें, ताकि माहूं ट्रैप पर चिपक कर मर जाएं. परभक्षी काक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर के 50000-100000 अंडे या सूंडि़यां प्रति हेक्टयर की दर से छोडे़ं. नीम का अर्क 5 फीसदी या 1.25 लीटर नीम का तेल 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़कें. बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. इस के बावजूद रोकथाम न हो तो मेटासिस्टाक्स 25 ईसी या डाइमेथोएट 30 ईसी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या थायोमेक्जाम 25 ईसी 1 मिलीमीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़कें.
हरा फुदका (जैसिड) : फसल की शुरुआती दशा से ले कर पौधों की पत्तियां व फलियां निकलने तक इस के शिशु व वयस्क हमला कर के रस चूसते हैं. रोगी पौधों की
बढ़वार सामान्य से काफी कम हो जाती है.
रोकथाम : अकेली फसल की बजाय मिश्रित खेती करनी चाहिए. खासकर ज्यादा लंबाई वाली फसलों जैसे गन्ना, ज्वार व सूरजमुखी वगैरह में से किसी एक को मूंग के साथ 6:1 या 6:2 के अनुपात में लगाना चाहिए. इस से रोशनी पसंद करने वाले हरा फुदका जैसे कीड़ों की संख्या पर बहुत हद तक नियंत्रण हो जाता है. इस के बाद भी रोकथाम न हो तो मेटासिस्टाक्स 25 ईसी या डाइमेथोएट 30 ईसी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या थायोमेक्जाम 25 ईसी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़कें.
सफेद मक्खी : इस इस कीट के द्वारा फसल को कई तरह से नुकसान पहुंचाया जाता है. यह पौधों से रस चूसती है और पत्तियों पर स्रावित मधु छोड़ती है. द्रव पर काला चूर्णी फफूंदी (शूटी मोल्ड) के पनपने व फैलने से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में रुकावट होती?है और पीला चितकबरा रोग (पीला मोजैक) के विषाणु तेजी से फैलते हैं. रोगी फसल पूरी तरह से बरबाद हो जाती है.
रोकथाम : सफेद मक्खी से बचाव के लिए बोआई से 24 घंटे पहले डायमेथोएट 30 ईसी कीटनाशी रसायन से 8.0 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए. शुद्ध फसल के बजाय मिश्रित खेती करना ज्यादा लाभप्रद है. खासकर ज्यादा लंबाई वाली फसलों जैसे गन्ना, ज्वार व सूरजमुखी वगैरह में से किसी 1 को मूंग के साथ 6:1 या 6:2 अनुपात से लगाने से रोशनी पसंद करने वाले सफेद मक्खी जैसे कीड़ों की संख्या पर बहुत हद तक नियंत्रण हो पाता है.
पीला मोजैक रोग के विषाणु को फैलाने वाली सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए मिथाइल डेमीटान (मेटासिस्टाक्स) 25 ईसी का 625 मिलीलीटर या मैलाथियान 50 ईसी या डायमेथोएट 30 ईसी का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरत के मुताबिक छिड़काव करना चाहिए.
