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अंगूर की खेती के लिए मिट्टी की आवश्यकताएं और तैयारी

Posted on December 10, 2020 By User No Comments on अंगूर की खेती के लिए मिट्टी की आवश्यकताएं और तैयारी


मिट्टी का विश्लेषण और पीएच मिट्टी की तैयारी की दिशा में सबसे शुरूआती कदम हैं। मिट्टी के नमूने हर साल सर्दियों के दौरान एकत्रित किये जाते हैं। कई किसान खेत के 4 अलग-अलग स्थानों से मिट्टी इकट्ठा करते हैं, और उनका अच्छा मिश्रण बनाते हैं। इसके बाद इस नमूने को विश्लेषण के लिए प्रयोगशाला में भेजा जाता है। मिट्टी के विश्लेषण से किसी भी पोषक तत्व की कमी का पता चल जाएगा जिससे किसान किसी स्थानीय लाइसेंस प्राप्त कृषि विज्ञानी के मार्गदर्शन में सुधारात्मक कार्रवाई सकते हैं। कई मामलों में, प्रति हेक्टेयर 8-10 टन अच्छी तरह से सड़ा हुआ मुर्गियों का खाद को डालना और रोपाई से कुछ महीने पहले अच्छी तरह से जुताई करना फायदेमंद होता है। गंभीर पोषक तत्वों की कमी के मामलों में, किसान रोपाई के कुछ हफ्ते बाद या रोपाई के समय ही धीमी गति से निकलने वाला मिट्टी का उर्वरक N-P-K 20-20-20 (प्रति हेक्टेयर 400 पाउंड या 180 किलोग्राम) डाल सकते हैं और छोटे पौधों की अच्छे से सिंचाई कर सकते हैं। ध्यान रखें कि 1 टन = 1000 किग्रा = 2.200 पाउंड और 1 हेक्टेयर = 2,47 एकड़ = 10.000 वर्ग मीटर।
आमतौर पर, कई विभिन्न किस्में उपलब्ध होने के कारण अंगूर की बेलें कई मिट्टियों में पनप सकती हैं। अंगूर की बेलों में सूखा सहने की बहुत अधिक क्षमता होती है। दरअसल, कुछ उच्च गुणवत्ता वाले वाइन उत्पादक अपने अंगूरों को बिल्कुल भी सींचना पसंद नहीं करते, बशर्ते कि उगने की अवधि के दौरान कई बार बारिश हुई हो।

अंगूर उगाने के लिए मिट्टी की सबसे अच्छी स्थिति के रूप में, कई किसान बजरी के छोटे प्रतिशत के साथ अच्छी जल निकासी की व्यवस्था वाली मिट्टी के प्रकारों का सुझाव देते हैं। ऐसी मिट्टी के प्रकारों में, बेल के लिए अपनी जड़ों को लंबवत के साथ-साथ क्षैतिज रूप से विकसित करने में भी आसानी होती है। इस प्रकार की मिट्टियों में उचित जल निकासी और वायु संचार की भी अच्छी व्यवस्था होती है। सामान्य तौर पर, 25% से अधिक चिकनी मिट्टी की मात्रा से बचना चाहिए। CaCO3 और कार्बनिक पदार्थों की उचित मात्रा से भी बेहतर परिणाम मिलता है, हालाँकि, ऐसी दूसरी किस्में भी हैं जिनकी जरूरतें बिल्कुल अलग होती हैं। अधिकांश किस्में 6.5-7.5 के पीएच स्तर में सबसे अच्छी तरह बढ़ती हैं, हालाँकि ऐसी किस्में मौजूद हैं जो विशेष प्रबंधन के अंतर्गत 4,5 से 8,5 तक का पीएच स्तर सहन कर सकती हैं। लवणता के स्तर में सहिष्णुता काफी हद तक किस्म पर निर्भर करती है।
वर्तमान में, रासायनिक मिट्टी विश्लेषण, साथ ही साथ जीपीएस और जीआईएस सिस्टम का प्रयोग करके तकनीक मिट्टी की विशेषताओं की जांच करने का अवसर प्रदान करती है। अद्वितीय तकनीकी क्षमताओं का लाभ उठाकर, हम खेत की स्थलाकृति, मिट्टी की संरचना और जड़ों की संभावित गहराई के स्तरों की विस्तृत रिपोर्ट पाने में सक्षम होते हैं। हम CaCO3 और कार्बनिक पदार्थ की मात्रा, मैक्रो और माइक्रो पोषक तत्वों, पीएच और लवणता के स्तर और सभी कृषि तकनीकों के संबंध में तथ्य-आधारित निर्णय लेने के लिए सभी आवश्यक जानकारी पा सकते हैं।

सामान्य मिट्टी की तैयारी जुताई के साथ शुरू होती है। ज्यादातर उत्पादक बेलों की रोपाई से कई हफ्ते पहले पिछली खेती के कोई भी अवशेष और जंगली घास हटा देते हैं। जुताई से मिट्टी के वायु संचार और जल निकासी में सुधार होता है। साथ ही, जुताई के कारण मिट्टी से पत्थर और अन्य अनचाही चीजें भी निकल जाती हैं। हालाँकि, मुख्य रूप से ढलान वाले खेतों में, जुताई के अप्रिय परिणाम भी हो सकते हैं। यदि हम इस प्रकार के खेतों में गहराई से जुताई करते हैं, तो इसकी वजह से क्षरण प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा, बहुत ज्यादा जुताई से सतह पर अनुपयुक्त अवभूमि घटक आ सकते हैं। अंगूर के पौधों के लिए मिट्टी तैयार करने के महत्वपूर्ण चरण में ढलान वाले खेत का समाधान शामिल है। खड़ी ढलान वाले खेतों में अंगूर की खेती की वजह से ऊपरी स्तरों से पानी बह सकता है और निचले स्तरों पर इकट्ठा होकर जलजमाव की समस्या पैदा कर सकता है। सामान्य तौर पर, ज्यादा ढलान वाले क्षेत्रों (20% या अधिक) के मामलों में, मेड़ बनाने का सुझाव दिया जाता है।

ज्यादातर किसान ट्रैक्टरों और रिपर का प्रयोग करके, रोपाई वाले दिन जमीन पर खाद बिछा देते हैं। कुछ उत्पादक केवल उन पंक्तियों पर खाद डालना पसंद करते हैं जहाँ वो रोपाई करने वाले हैं, जबकि अन्य उत्पादक पूरी मिट्टी पर खाद बिछा देते हैं। जाहिर तौर पर, पहली विधि ज्यादा किफायती है।

अंगूर के खेतों में आवरण फसल

अंगूर की खेती में आवरण फसलें एक विवादास्पद मुद्दा है। आपको इस तरीके के कट्टर समर्थक और कट्टर विरोधी मिल सकते हैं। सिद्धांत से हम जानते हैं कि सामान्य तौर पर, आवरण फसलें भारी बारिश या तूफान के दौरान मिट्टी का क्षरण कम करती हैं। ये जंगली घास को दबा देती हैं, मिट्टी के वायु संचार और बाग की स्थिरता में सुधार करती हैं, जबकि उनमें से कुछ नाइट्रोजन ठीक करती हैं। अंत में, ये फसल की सिंचाई के लिए एक फिल्टर के रूप में काम करती हैं, और खेत के तापमान को समायोजित करती हैं। कुछ बागों और खेतों में रिजका, वेच, फलियां, ल्यूपिन, बाजरा, मटर और ट्राइफोलियम फ्रेजीफेरम (स्ट्रॉबेरी क्लोवर) आवरण फसलों के रूप में लगाए जाने पर फायदेमंद पाए गए हैं। हालाँकि, कुछ मामलों में, अंगूर के किसानों ने आवरण फसलों की वजह से कीड़ों की संख्या में वृद्धि, विभिन्न बीमारियों का खतरा बढ़ने, और मिट्टी की नमी में कमी आने के बारे में सूचना दी है। प्रत्येक अंगूर के किसान को आवरण फसलों की आवश्यकता के साथ-साथ आवरण फसल की बुवाई के समय पर विस्तृत शोध करना चाहिए। कई किसान बेलें लगाने के 4-6 साल बाद आवरण फसलों की बुवाई शुरू करते हैं।

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