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अब पौध उगाने का झंझट खत्म, धान की होगी सीधे बुआई; जानिए कैसे

Posted on December 11, 2020 By User No Comments on अब पौध उगाने का झंझट खत्म, धान की होगी सीधे बुआई; जानिए कैसे

विकासनगर(देहरादून), जेएनएन। हाईटेक युग में अब धान की बुआई और रोपाई के तरीके में भी बदलाव आया है। विज्ञानियों के किए गए प्रयोग में अब धान बोने के दो तरीके प्रचलन में आ गए हैं। परंपरागत तरीके में पहले धान की पौध तैयार की जाती है और फिर उसको पानी भरे खेतों में रोपा जाता है, लेकिन इस झंझट से बचने को अब सीड ड्रिल विधि से सीधे भी धान की बुआई की जा रही है। 

कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के विज्ञानी डॉ. संजय सिंह ने दोनों तरीकों के फायदे और नुकसान गिनाए, साथ ही किसानों को बीमारियों की रोकथाम के टिप्स भी दिए। ढकरानी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानी का कहना है कि आजकल किसान धान की सीधी बुआई भी कर सकते हैं। धान की सीधी बुआई करने से पानी और समय की बचत के साथ ही खेती में आने वाले खर्चे में कमी आने से संसाधनों की बचत होती है। लेकिन धान की सीधी बुआई करने के लिए बहुत ही प्रशिक्षित तरीका आवश्यक होता है। सीधी बुआई वाले धान में खरपतवारों की समस्या बहुतायत में होती है। खरपतवार, खाद और उर्वरक प्रबंधन में बहुत ही सतर्कता रखने पर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है, अन्यथा अगक सीधी बुआई करने पर धान खरपतवार की रोकथाम में हो तो ऐसी स्थिति में उपज बहुत ही कम प्राप्त होती है। फसल में हानि होने की संभावना बढ़ जाती है। विज्ञानी का कहना है कि धान की रोपाई से पहले देश में बहुत बड़े क्षेत्रफल में सीधी बुआई की जाती थी, आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में धान की सीधी बुआई किया जाना पूरी तरह से परंपरागत है, लेकिन नए युग की धान की खेती में अधिक पैदावार के लिए रोपाई किया जाना वर्तमान में प्रचलन में आ गया है। धान की सीधी बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा रोपाई की किए जाने वाले धान से लगभग डेढ़ गुना ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। तैयार खेत में नमी का होना अति आवश्यक है, इसके लिए खेत में पलेवा लगा लेना चाहिए। बीज को पंक्तियों में ट्रैक्टर चालित अथवा बैल चालित सीड ड्रिल से धान की बुआई की जा सकती है। जहां तक संकर धान और बासमती धान का प्रश्न है तो अभी तक शोध के आधार पर कहा जा सकता है कि सीधी बुआई से संकर धान और बासमती धान की उपज अपेक्षाकृत काफी कम हो जाती है, इसलिए इन प्रजातियों को रोपाई के माध्यम से ही बोना चाहिए।

पर्वतीय और मैदानों में उपज अलग अलग

खरीफ के मौसम में प्रदेश में धान लगभग सभी स्थानों पर उगाया जाता है। प्रदेश में धान की औसत उपज 20 कुंटल है, जो राष्ट्रीय औसत उपज के लगभग नजदीक ही है। पर्वतीय क्षेत्रों में औसत उपज 15 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर, जबकि मैदानी क्षेत्रों में 30 से 35 कुंतल प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादकता के साथ खेती की जा रही है। देहरादून जनपद में मुख्यत: पर्वतीय और घाटी में मैदानी क्षेत्रों में बासमती व मोटे धान की खेती की जाती है। विज्ञानी डॉ. संजय सिंह का कहना है कि परंपरागत व देहरादून की पहचान देहरादूनी बासमती टाइप 3 व बासमती 370 की खेती का क्षेत्रफल लगभग नहीं के बराबर रह गया है। इनमें कीट और बीमारियों का प्रकोप अधिक रहता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि किसान केवल अधिक उत्पादन वाली प्रजातियों को ही अपना रहे हैं। यह उचित नहीं है, क्योंकि बासमती धान की 1 कुंतल उपज का मूल्य लगभग 3000 आंका जा सकता है, जबकि मोटा धान अधिकतम 15 सौ रुपये प्रति कुंतल रहती है। 

प्रजातियों का सही चुनाव जरूरी 

कृषि विज्ञानियों की माने तो प्रजातियों का चुनाव धान की किस्मों को पकने की अवधि के अनुसार तीन वर्गों में विभाजित किया गया है। पहली लंबी अवधि वाली प्रजाति जिनकी बुवाई से लेकर कटाई तक के समय में 145 दिन से 155 दिन का समय लगता है। दूसरा मध्यम अवधि वाले धान जिनकी पकने में 130 से 135 दिन का समय लगता है और तीसरी जिनकी पकने की अवधि 100 से 105 दिन होती है। मोटे धान की किस्में नरेंद्र धान 359 पंत धान 4, पंत धान 18, 19, 22, 23, 24, 26, विवेक धान 85 विवेक 158 विवेक 156 विवेक 65 विवेक 68 विवेक 86 है, जबकि मध्यम एवं बारीक धान की किस्मों में पीआर 127,पीआर 121 पीआर 114, इंद्रासन और सुगंधित धान की किस्मों में पंत सुगंध धान 15 और 17, 21 , पूसा सुगंध 4, पूसा सुगंध 5, शरबती व कस्तूरी प्रमुख हैं। 

बासमती की किस्में पंत बासमती 1 व 2, टाइप 3 बासमती 370, पाक 386, सीएसआर 30, पूसा बासमती 1637 पूसा बासमती 1718 पूसा बासमती 1728 पूसा बासमती 1509 पूसा बासमती 1609 प्रमुख प्रजातियों में से किसी एक का चुनाव कर सकते हैं। संकर धान की किस्मों में लंबी अवधि वाली धान अराइज 6444, वर्षा गोल्ड वे 748 प्रमुख हैं, जबकि संकर धान में कम अवधि की प्रजातियां अराइज 6129 काफी अच्छी उत्पादन देने वाली प्रजाति है। पौधशाला डालने से पहले बीच का उपचार कर लेना चाहिए। बीज उपचार के लिए 10 लीटर पानी में 1 किलोग्राम नमक को घोलकर संपूर्ण बीज की मात्रा को इसमें डाल दें।

बीमारियों की रोकथाम के लिए रसायन जरूरी 

फफूंद जनित और जीवाणु जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए प्रति 10 किलोग्राम बीज में 20 ग्राम कार्बेंडाजिम 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लिन नामक रसायन का टीका अवश्य लगाएं, जिन कार्यों में पौध की बुआई करनी हो, वहां पहले से भली प्रकार तैयारी की जाए। एक किलोग्राम बीज को प्रति 25 वर्ग मीटर में बुआई करना चाहिए। इससे बहुत अच्छी पनीरी या पौध रोपाई के लिए तैयार होती है। पौधशाला में खाद व उर्वरक प्रबंधन भी अति आवश्यक है। गोबर की खाद को बुआई से पूर्व खेत में अवश्य मिला दें, जब पौध 10 से 15 दिन की अवस्था की हो, तब खड़ी फसल में यूरिया की टॉप ड्रेसिंग कर देनी चाहिए। इस प्रकार से तैयार पौध को खेत में रोपाई करने पर अच्छी उपज होने की संभावना बढ़ती है।

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