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अरहर की खेती- किस्में, रोकथाम और पैदावार !

Posted on December 18, 2020December 18, 2020 By User No Comments on अरहर की खेती- किस्में, रोकथाम और पैदावार !

अरहर (Arhar) खरीफ की मुख्य फसल है| यह कम सिंचाई और बरानी क्षेत्रों के लिए उत्तम फसल मानी जाती है| अरहर (Arhar) को मिश्रित फसल के रूप में अन्य किसी फसल के साथ उगाकर अतरिक्त लाभ लिया जा सकता है| दलहनी फसल होने के कारण यह मिटटी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ती है| इसमें कार्बोहाइड्रेट, कैल्सियम, लोहा और खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है| अरहर की दीर्घकालीन किस्मे मिटटी में 200 किलोग्राम तक वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर मिटटी उर्वरता और उत्पादकता में वृद्धि करती है| इस लेख में अरहर की खेती- किस्में, रोकथाम और पैदावार का विस्तार से उल्लेख है| 

अरहर हेतु जलवायु

अरहर आर्द्र और शुष्क दोनों ही प्रकार के गर्म क्षेत्रों में भली प्रकार उगाई जा सकती है| लेकिन शुष्क भागों में इसे सिंचाई की आवश्यकता होती है| फसल की प्रारंभिक अवस्था में पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है| इसे 75 से 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है|

उपयुक्त भूमि

भूमि का चयन करते समय ध्यान रखना चाहिए कि खेत ऊंचा और समतल हो एवं उसमें जल निकास अच्छा हो| अरहर को अधिकांश प्रकार की मिटटी में उगाया जा सकता है| उत्तर भारत में अरहर को मटिमार दोमट मिट्टी से लेकर रेतीली दोमट मिट्टी में उगाया जाता है| अरहर की फसल के लिए बलुई-दोमट या दोमट मिट्टी जिसका पी एच मान 6.5 से 7.5 के बीच हो तथा भूमि जल का तल गहराई पर हो, सर्वोत्तम रहती है|

फसल चक्र

अरहर की शीघ्र पकने वाली किस्मों जो 130 से 160 दिनों में पक जाती है, उनके विकास होने से अरहर के बाद रबी की फसल की बुवाई संभव हुई है| इन किस्मों की बुवाई जून के प्रथम पखवाड़े में की जाती है और दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक फसल की कटाई कर ली जाती है| अरहर के साथ बहुत से फसल चक्र अपनाए जाते हैं, जैसे-

1. अरहर + बाजरा/ज्वार/मक्का/तिल/सोयाबीन/उडद/मूंग आदि

अरहर की उन्नत किस्में

बांझपन रोग प्रतिरोधी किस्में- बी आर जी- 2, टी जे टी- 501, बी डी एन- 711, बी डी एन- 708, एन डी ए- 2, बी एस एम आर -853, पूसा- 992 और बी एस एम आर- 736 मुख्य है|

शीघ्र पकने वाली किस्में- पूसा- 855, पूसा- 33, पूसा अगेती, पी ए यू- 881, (ए एल- 1507) पंत, अरहर- 291, जाग्रति ( आई सी पी एल- 151) और आई सी पी एल- 84031 (दुर्गा) आदि प्रमुख है|

मध्यम समय में पकने वाली किस्में- टाइप- 21, जवाहर अरहर- 4 और आई सी पी एल- 87119 (आशा) इत्यादि प्रमुख है|

देर से पकने वाली किस्में- बहार, एम ए एल- 13, पूसा- 9 और शरद (डी ए- 11) आदि है|

हाईब्रिड किस्में- पी पी एच- 4, आई सी पी एच- 8, जी टी एच- 1, आई सी पी एच- 2671 और  आई सी पी एच- 2740 आदि|

उकटा प्रतिरोधी किस्में- वी एल अरहर- 1, बी डी एन- 2, बी डी एन- 708, विपुला, जे के एम- 189, जी टी- 101, पूसा- 991, आजाद (के- 91-25), बी एस एम आर- 736 और एम ए- 6 आदि प्रमुख है| 

खेत की तैयारी

मिट्टी पलट हल से एक गहरी जुताई के बाद 2 से 3 जुताई देशी हल या हैरो या कल्टीवेटर से करना उचित रहता है| खेत में जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था आवश्यक है|

बुआई का समय और विधि

शीघ्र पकने वाली किस्मों की बुआई जून के प्रथम पखवाड़े में पलेवा करके करना चाहिए और मध्यम तथा देर से पकने वाली किस्मों की बुआई जून से जुलाई के प्रथम पखवाड़े में करना चाहिए|

खाद एवं उर्वरक 

मिटटी परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अन्तिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीज की सतह से 5 सेंटीमीटर गहराई तथा 3 से 5 सेंटीमीटर साइड में देना सर्वोत्तम रहता है| बुआई के समय 20 से 25 किलोग्राम नत्रजन, 40 से 50 किलोग्राम फास्फोरस, 20 से 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टर कतारों में बीज के नीचे दिया जाना चाहिए|

सूक्ष्म पोषक तत्व

गंधक (सल्फर)- काली और दोमट मिटटी में 20 किलोग्राम गंधक (154 किलोग्राम जिप्सम या 22 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के समय प्रत्येक फसल के लिये देना पर्याप्त होता है| कमी होने पर लाल बलुई मिटटी के लिए 40 किलोग्राम गंधक (300 किलोग्राम जिप्सम या 44 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए|

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