उत्तराखण्ड को जैविक कृषि प्रदेश बनाने के लिए प्रदेश में मंत्रिमंडल ने उत्तराखण्ड जैविक कृषि विधेयक 2019 को मंजूरी दे दी है। आगामी विधानसभा सत्र में विधेयक सदन के पटल पर रखा जाएगा।
विधेयक लागू होने के बाद प्रदेश के 10 ब्लॉकों को जैविक खेती के लिए अधिसूचित किया जाएगा। इन ब्लॉकों में रासायनिक और सिथेंटिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार नाशक, रासायनिक पशुचारा की बिक्री निषेध की जाएगी। अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर एक वर्ष का कारावास और एक लाख रुपए के जुर्माने का भी प्रावधान है। पायलट स्तर पर प्रयोग के बाद इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में प्रस्तुत 30 प्रस्तावों में से 28 को मंजूरी मिली है। कैबिनेट मंत्री और शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने बताया कि कैबिनेट ने जैविक कृषि विधेयक को मंजूरी दी है। पहले चरण में चिन्हित ब्लॉकों में रासायनिक खाद्य और अन्य कृषि में इस्तेमाल होने वाले रसायन भी प्रतिबंधित रहेंगे। जैविक प्रमाणीकरण के लिए किसानों को हर तरह की सुविधाएँ मुहैया करवाई जाएगी। किसानों को प्रमाणीकरण, बीज, प्रशिक्षण, विपणन से लेकर हर तरह की मदद मिलेगी।
उत्तराखण्ड फल पौधशाला विधेयक को मंजूरी
प्रदेश में हार्टिकल्टर को बढ़ावा देने के लिए मंत्रिमंडल ने उत्तराखण्ड फल पौधशाला (नर्सरी) विधेयक को मंजूरी दी है। इसमें पौध नर्सरी खोलने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं। नर्सरी के पौधे की गुणवत्ता के लिए संचालक जिम्मेदार होगा। राज्य के बाहर से आने वाले पौधों को बेचने के लिए नियम कड़े रहेंगे। नए फलदार पौधों को पेटेंट करवाने की व्यवस्था रहेगी। तय मानकों के अनुसार पौधे नहीं पाए जाने पर 50 हजार रुपए जुर्माने और छह माह के कारावास का प्रावधान रहेगा।
स्टोन क्रशर लगाने की नीति में बदलाव
मंत्रिमंडल ने स्टोन क्रशर, स्क्रीनिंग प्लांट, मोबाइल स्क्रीनिंग प्लांट, हाट मिक्स प्लांट और मोबाइल स्टोन क्रशर की नीति में संशोधन प्रस्ताव को मंजूरी दी है। अब उन्हीं व्यक्तियों या फर्मों को स्टोन क्रशर आदि लगाने की इजाजत होगी, जिनके नाम पर खनन पट्टा होगा या उन्होंने पट्टाधारक से एमओयू हस्ताक्षरित कर रखा हो। वहीं, स्टोन क्रशर या प्लांट लगाने की अनुमति अब पाँच वर्ष के स्थान पर 10 वर्ष के लिए दी जाएगी। इसके लाइसेंस शुल्क में भी बढ़ोत्तरी कर दी गई है।
जैविक खेती के लिए बना सुरक्षा कवच
प्रदेश में आर्गेनिक एक्ट को मंजूरी देकर सरकार ने जैविक खेती को सुरक्षा कवच दिया है। इस एक्ट को पहले चरण में प्रदेश के 10 ब्लाकों में लागू किया जाएगा। जहाँ पर रसायनिक, सेथेंटिक उर्वरकों, कीटनाशक, खरपतवार नाशक, पशुचिकित्सा,दवाइयों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। इसका उल्लघंन करने पर एक लाख का जुर्माना व एक साल के कारावास का प्रावधान किया गया है। एक्ट में किसानों के लिए जैविक उत्पाद के प्रमाणीकरण और उत्पाद क्रय करने वाली कम्पनियों के पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल किया गया है। वहीं, जैविक उत्तराखण्ड ब्रांड के रूप में प्रदेश के आर्गेनिक उत्पादों की राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग को बढ़ावा दिया जाएगा।
पिछले डेढ़-दो साल से चल रही प्रक्रिया के बाद आखिरकार उत्तराखण्ड जैविक कृषि विधेयक पर बुधवार को कैबिनेट की मुहर लग गई है। पहली बार प्रदेश में इस एक्ट के लागू होने से जैविक खेती में सरकार को अच्छे संकेत मिलने की उम्मीद है। आर्गेनिक एक्ट में प्रमाणीकरण से लेकर मार्केटिंग और किसानों को उन्नत जैविक बीज उपलब्ध कराने का प्रावधान है। किसानों को उत्पाद के प्रमाणीकरण के लिए ऑनलाइन और ऑफ लाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। उत्पादों को खरीदने वाली कम्पनियों को पंजीकरण करना अनिवार्य होगा। इसके लिए कोई फीस नहीं ली जाएगी। बता दें कि आर्गेनिक कृषि योजना के तहत प्रदेश में 3900 जैविक क्लस्टर विकसित करने पर काम चल रहा है। इसके लिए केन्द्र सरकार की ओर से 400 करोड़ की राशि भी स्वीकृत की जा चुकी है।
जैविक राज्य मिशन के प्रयोग में लगे 13 वर्ष
सिक्किम देश का पहला जैविक राज्य है। छोटे से क्षेत्रफल के बावजूद इस मुकाम तक पहुँचने में राज्य को 13 वर्ष लगे। इस दौरान वहाँ किसानों ने कई दुश्वारियाँ झेली। कृषि उत्पादन गिरना बड़ी समस्या रही, वहीं दावों के अनुरूप ऊँचे दाम नहीं मिले। किसानों के सामने विपणन और स्टोरेज सबसे बड़ी समस्या पूर्ण जैविक राज्य बनने के बाद भी खत्म नहीं हुई। उत्तराखण्ड को पूर्ण जैविक प्रदेश बनने में नीति निर्धारकों को सिक्किम से सीख लेनी होगी।
सिक्किम ने वर्ष 2013 में जैविक मिशन शुरू किया। वर्ष 2016 में सिक्किम को पूर्ण जैविक प्रदेश घोषित किया गया। जैविक खेती की दिशा में बढ़ने वाले उत्तराखण्ड के अलावा नौ प्रदेश हैं। कर्नाटक, मिजोरम, केरल, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात में जैविक खेती को लेकर नीति या कानून है। उत्तराखण्ड ने काफी हद तक सिक्किम का मॉडल अपनाया है। सिक्किम के जैविक प्रदेश में तब्दील होने पर सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट ने वहाँ के चारों जिलों का सर्वेक्षण कर अपनी रिपोर्ट दी थी। यह रिपोर्ट जैविक खेती की ओर बढ़ रहे राज्यों के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकती है। इस रिपोर्ट में सबसे बड़ी समस्या किसानों के सामने कृषि उत्पादन गिरने के बताई गई है। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को खत्म करने से किसानों का उत्पादन तेजी से गिरा। कई जगह एक तिहाई रह गया।
विशेषज्ञ मानते हैं कि शुरूआती चरण में ऐसी समस्या होती है, लेकिन समय के साथ उसमें सुधार आ सकता है अगर सही तरीके से प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल किया जाए। सिक्किम सरकार ने इसके लिए पूरी व्यवस्था बनाई और किसानों के प्रशिक्षण दिया। उत्तराखण्ड को भी ऐसा करना होगा, लेकिन फसलों की उत्पादकता गिरने पर भरपाई के लिए कोई फार्मूला भी देना होगा। किसानों को भूमि प्रमाणिकता में दिक्कतें आई। इसके लिए भी ट्रेनिंग बेहद जरूरी है। सिक्किम ने चरणबद्ध तरीके से रसायनिक उर्वरक कम किए।
मिशन को शुरू करने के 11 वर्ष बाद 2014 में पूर्ण प्रतिबंध लगाया। इसके बाद बेचने पर दंड और सजा का प्रावधान किया। प्रदेश ने 10 हजार से अधिक केचुआ खाद और प्राकृतिक खाद के गड्ढे बनवाए। किसानों के सामने दूसरी समस्या कीटनाशकों का उपयोग नहीं होने से खेती पर लगने वाला कीट और खरपतवार रही। इसके अलावा विपणन की ठोस प्रणाली विकसित करने के लिए सिक्किम से सबक लेना होगा, जहाँ विपणन को लेकर किसान अब तक समस्याएँ झेल रहे हैं।
