बीन का बीटल –
लक्षण – यह कीट सेम के पौधें के कोमल भागों को खाता है। इसके कारण सेम के पौधे विकास विकास नही कर पाते सूख जाते हैं। इस कीट का रंग ताँबे जैसा होता है। शरीर के कठोर आवरण पर 16 निशान होते हैं ।
रोकथाम – इस कीट की रोकथाम के लिए 625 मिलीलीटर मैलथियान 50 E.C. को 625 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से सेम की खड़ी फ़सल पर छिड़काव करें ।
चैपा या माहू –
लक्षण – वायुमंडल में बादल के आने अथवा धुँध होने पर इस कीट का प्रकोप बढ़ जाता है। पौधें के पूरे भाग में इस माहू फैल जाती है। व पौधों का रस चूसते हैं। नमी की कमी के चलते पौधा अंत में सूख जाता है ।
रोकथाम – इस कीट की रोकथाम के लिए 625 मिलीलीटर मैलथियान 50 E.C. को 625 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से सेम की खड़ी फ़सल पर छिड़काव करें ।
फली छेदक –
लक्षण – फली छेदक का कीट सेम की फली में छिद्र कर घुस जाता है। और पौधें के कोमल भागों को खाता है। जिससे फलियाँ खोखली हो जाती हैं।
रोकथाम – इस कीट से बचाव हेतु 0.2 % सेवन 50% पाउडर का फ़सल पर प्रति हेक्टेयर की दर से 10-15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें ।
पादप रोग प्रबंधन (फ़सल रोग प्रबंधन) –
फ़सल की तुड़ाई –
सेम की तुड़ाई का समय उसकी क़िस्म व उसकी बुवाई के समय के अनुसार निर्भर होती है। वैसे सेम की फलियों के पूर्ण विकसित व कोमल अवस्था में तुड़ाई कर लें। तुड़ाई देर से करने पर फलियाँ कठोर हो जाती है व रेशे आ जाते हैं। जिसके कारण बाज़ार मूल्य उचित नही मिल पाता है। इसलिए समय से सेम की तुड़ाई करना ना भूलें।
उपज –
किसी भी फ़सल की उत्पादकता मिट्टी,जलवायु,फ़सल की क़िस्म व सिंचाई की उपलब्धता, पादप सुरक्षा प्रबंधन आदि पर निर्भर करती है। वैसे सेम की फ़सल से प्रति कुन्तल 100 – 150 प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
