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कृषि क्षेत्र में मोदी सरकार के अच्छे दिनों का लेखा-जोखा

Posted on December 11, 2020 By User No Comments on कृषि क्षेत्र में मोदी सरकार के अच्छे दिनों का लेखा-जोखा


केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किसानों के कल्याण के लिए चलाए गये बहुत सारे कार्यक्रमों के सकरात्मक परिणाम आने लगे हैं। मोदी सरकार बनने के बाद लगातार दो साल तक औसत से काफी कम मानसून रहने के बावजूद भारत में अनाज के उत्पादन में कोई कमी नहीं आई. आंकड़ो के अनुसार वर्ष 2014-15 में भारत में 252.02 मिलियन टन अनाज का उतादन हुआ जबकि अगले वर्ष यानि 2015-16 में यह उत्पादन मामूली वृधि के साथ 252.23 मिलियन टन रहा लेकिन ये स्थितियां तब थी जब देश के बहुत से कोने सूखे की मार झेल रहे थे और कभी कभी तो देश के कई भागों में ओला वृष्टि से भी काफी फसलों का नुक्सान हुआ. अगर इन आंकड़ो की तुलना हम यू.पी.ए. सरकार के सामान्य वर्ष के मानसून से करें तो वर्ष 2013-14 में अनाज का उत्पादन 264.38 मिलियन टन था जबकि सराकर द्वारा सूखा घोषित वर्ष 2009-10 में यह उत्पादन मात्र 218.10 मिलियन टन था. इन आंकड़ो से एक बात स्पष्ट होती है की विपरीत परिस्थितियों में भी मोदी सरकार ने अपनी नीतियों और बेहतर प्रबंधन के कारण स्थिति पर काफी हद तक काबू पाया. इस प्रक्रिया में बहुत से निर्णय महत्वपूर्ण थे जैसे कि सही समय पर पानी, बीज, खाद, बिजली और आवश्यकता अनुसार ऋण उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी मोदी सरकार ने सफलता पूर्वक निभाई.

सरकार के बहुत से नए प्रयासों में से स्वाइल हेल्थ कार्ड केंद्र सरकार की एक बहुत ही महत्वपूर्ण योजना है. इसका योजना का मकसद मृदा की उचित जांच को बढ़ावा देना है ताकि मिट्टी की उत्पादकता के बारे में सही जानकारी किसान के आस उपलब्ध हो सके. इससे किसान कम लागत पर उच्च उत्पादन दर हासिल कर सकेंगे. इसके साथ ही, मिट्टी के स्वास्थ्य में निरंतरता कायम की जा सकती है. मृदा स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए मोदी सरकार ने 2014-15 में स्वाइल हेल्थ कार्ड स्कीम की शुरुआत की थी. योजना के तहत दो साल के अंतराल में किसानों को 14 करोड़ कार्ड मुहैया कराए जाने हैं जिसमे अभी तक 1.84 करोड़ कार्ड किसानो को वितरित किये जा चुके हैं. पूरी योजना को मार्च 2017 तक पूर्ण किया जाना है.

मोदी सरकार ने खाद्य सुरक्षा से एक कदम और आगे बढ़कर देश के किसानों की आय को दोगुना करने का संकल्प लिया है। इस सपने को साकार करने के लिए सरकार के कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय को इस बार बजट में हर साल से अधिक 35,984 करोड़ रुपए आवंटित किए गए क्योंकि सरकार का इरादा मूलभूत सुविधाओं की दीर्घकालिक उपलब्धता के लिए संसाधनों का उचित इस्तेमाल करना है. उदाहरण के तौर पर, जल संसाधनों के प्रभावशाली व् फलोत्पादक उपयोग के उपाय करना, सिंचाई के लिए नए आधारभूत ढांचे का निर्माण करने, उर्वरक के संतुलित मात्रा में उपयोग के साथ मिटटी की उर्वरता को संरक्षित करने एवं कृषि से बाजार तक संपर्क मुहैया कराने का ज़िम्मा सरकार ने लिया है.

हर खेत में सिंचाई के उचित प्रबंध के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कई भाषणों में दो नारे दिए. पहला “हर खेत को पानी” और दूसरा “पर ड्राप मोर क्राप”. इन नारों को हकीक़त में बदलने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जिसमे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना महत्वपूर्ण है. देश में आजादी के छ: दशक के पश्चात भी 46 प्रतिशत कृषि भूमि ही सिंचाई योग्‍य है. अतः देश की ग्रामीण एवं कृषि व्यवस्था को पूर्णतया सुखाग्रस्त की समस्या से निजात दिलाने हेतु जन अभियान के रुप में “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना” को शुरु किया गया है. आंकड़ो के मुताबिक़, अभी तक भारत देश में 141 मिलियन हेक्‍टेयर शुद्ध खेती वाले क्षेत्रों में से केवल 65 मिलियन हेक्‍टेयर ही सिंचित हैं। सरकार ने अपनी नयी ‘प्रधानमंत्री सिंचाई योजना’ के तहत लगभग 28.5 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र को सिंचाई के अन्दर लाने के लिए मिशन मोड में कार्य को क्रियान्वित किया है. वर्ष 2015-16 में सरककर ने इस योजना के लिए बजट में 1550 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था जबकि अगले वित् वर्ष यानी 2016-17 में कुल आवंटन 51% बढाकर कुल 2340 करोड़ कर दिया गया जो इस बात को दर्शाता है की सरकार जल्द ही ज्यादा से ज्यादा हिस्से को पानी की सुविधा पहुचाना चाहती है. दीर्घ काल में सिंचाई की समस्या से निजात आने के लिए उचित आधारभूत संरचना व् ढांचे के निर्माण के लिए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक के अंतर्गत प्रारंभ में 20000 करोड़ के सिंचाई कोष का गठन किया गया है. इसके साथ ही मनरेगा के तहत सरकार ने वर्षा सिंचित इलाकों में 5 लाख तालाब व् कुँए खोदने का निर्णय लिया जिससे की पानी का संचय कर उसका सही इस्तेमाल किया जा सके और मनरेगा में होने वाले काम का सही और उपयोगी लाभ भी उठाया जा सके.

सरकार जैविक खेती के लिए 5 लाख एकड़ वर्षा सिंचित क्षेत्रों में “परंपरागत कृषि विकास योजना” पर भी जोरो शोरो से कार्य कर रही है. पूर्वोत्‍तर के क्षेत्रों में ‘जैव मूल्‍य श्रृंखला विकास योजना’ भी प्रारंभ की गयी है जिससे कि उन खेतों से पैदा होने वाले जैव उत्‍पादों को घरेलू बाज़ार व् साथ ही साथ निर्यात बाजार भी प्राप्‍त हो सके.

मोदी सरकार ने जल्दी खराब हो जाने वाले कृषि उत्पादों के भंडारण लिए युद्ध स्तर पर काम करना शुरू किया है ताकि किसान अपनी फसल को सुरक्षित रखने के साथ साथ बेहतर मार्केटिंग कर अपनी आय बढ़ा सकें. भारत ने विश्‍व में सबसे अधिक लगभग 32 मिलियन टन के शीत भंडारण की क्षमता को स्‍थापित किया है. पिछले दो वर्षों के दौरान 1 मिलियन क्षमता से भी अधिक की लगभग 250 परियोजनाएं शामिल की गई हैं।

पिछले वर्ष में भारत डेयरी राष्‍ट्रों के बीच एक लीडर के रूप मे उभर रहा है. देश मे 2015-16 के दौरान हमारे देश के किसानों ने 160.35 मिलियन टन दूध का उतादन किया जिसकी कीमत लगभग 4 लाख करोड़ रुपये है. पहली बार 10 वर्षों के औसत उत्पादन में वार्षिक वृद्धि दर भारत में 4.6 % और विश्व कि 2.24% है.

इन अब नीतिगत क़दमों के अलावा मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए किसानो को दिए जाने वाले यूरिया पर नीम की पर्त चढ़ाना शुरु कर दिया और सरकार के इस कदम से लगभग यूरिया की मांग में 15% तक की कमी आई जो की इस बात का सूचक है की यह कहीं न कही ये यूरिया बिचौलियों की पाकेट भरने में बर्बाद हो जाता था.

ग्रामीण भारत और विशेषकर किसानों के मजबूत विकास की नींव पर ही हमारे भारत देश की प्रगति का रास्ता तय किया जा सकता है। भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस सपने को पूरा करने के लिए सुनियोजित तरीके से मजबूती के साथ कदम आगे बढाया है। सभी योजनायें दो साल के कम समय अंतराल में ग्रामीण जीवन में अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं. अच्छे दिनों की आहाट महसूस की जा सकती है. हालांकि किसानों के जीवन में पूर्ण रूपं से परिवर्तन आने के लिए हमे कुछ और इंतज़ार करना होगा.

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