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कृषिवैज्ञानिकों का मानना है कि खेती में नुकसान होना वाकई में किसी भी किसान के लिए बेहद दुख की बात होती है, लेकिन यदि किसान इस क्षेत्र में रही नई तकनीक को अपनाये तो यह क्षेत्र कहीं अधिक मुनाफा दे सकता है। इसके लिए किसानों इस क्षेत्र में रहे बदलावों को समझना होगा और खासकर युवा जो खेती जैसे काम से दूर होते जा रहे हैं। यदि वे नई तकनीक को समझ लें और वैज्ञानिक तौर तरीके से खेती करें तो अ’छा खास बिजनेस शुरु कर सकते हैं। ये वैज्ञानिक गुरुवार को कृषि वैज्ञानिक केंद्र में जुटे थे। जहां सभी ने अपने-अपने विचार रखे। पिछले कुछ समय से जिले में अनेक लोगों ने कृषि में नवीनतम तकनीक को अपनाया है जबकि बेमौसम की बरसात से अनेक किसानों को नुकसान भी हुआ है। ऐसे में दैनिक भास्कर ने इन वैज्ञानिकों से बात की और जाना कि कैसे एक किसान उन्नति कर सकता है। अपने खेतों को सोना उगलने वाला बना सकता है।
औरसिरोही में भविष्य की संभावना
– वैज्ञानिकों के अनुसार सिरोही की जलवायु जैतून के अनुकूल है। इसलिए यहां के किसान जैतून की खेती अपना सकते हैं।
– इजराइल सरकार और राजस्थान सरकार के संयुक्त प्रयासों से जयपुर के पास बस्सी में जैतुन के पौधे तैयार किए जा रहे हैं।
– आरंभिक तौर पर किसान अपनी बोई गई फसलों के साथ मेडबंदी पर यह पौधे लगा सकता है। जैतुन के पौधे से खाद्य तेल निकलता है, जिसकी मार्केट में अ’छी कीमत मिलती है। यह पौधा कम पानी में भी तैयार हो सकता है।
खेती के साथ पशुपालन भी हो
^किसानोंको समन्वित एप्रोच यानि खेती के साथ-साथ चारा, सब्जी की पैदावार और पशुपालन भी करना चाहिए, ताकि यदि फसल में नुकसान भी हो तो अन्य स्त्रोतों से उसकी भरपाई हो सकेगी। देशभर में बकरी की 22 स्वीकृत नस्लें है, जिसमें से एक सिरोही नस्ल भी है। बकरी पालन भी किया जा सकता है। यहां कांकरेज नस्ल की गाय पालन भी किया जा सकता है। पशुपालन से किसान को अतिरिक्त आय होगी। खेत में जब फसल नहीं होती तो वह चारा उगा सकता है। पशु अ’छी नस्ल के होंगे तो उनके उत्पादों से डेयरी उद्योग समेत अन्य काम विकसित किया जा सकता है। डॉ.पंकज लवाणिया, कृषिवैज्ञानिक, सिरोही
कम पानी वाली हो फसल
^खेतीमें सबसे अधिक जरुरत पानी की होती है। यदि खेत में पानी नहीं है। समय पर बरसात नहीं होती तो किसान मायूस हो जाता है। इसमें मायूसी की जरुरत नहीं है। हमारे पास ऐसी तकनीक है कि कम पानी में भी अ’छी पैदावार कर सकें। इसके लिए सूक्ष्म सिंचाई पद्धति, बूंद-बूंद सिंचाई और फव्वारा सिस्टम आदि को अपनाया जा सकता है। बारिश के पानी को रोकने के लिए खेतों पर मेडबंदी की जानी चाहिए। खेत के आसपास चेकडेम बनाने चाहिए। फार्म पौंड करके भी बरसात के पानी को रोका जा सकता है। जितना हो सके बारिश के पानी को रोककर खेती के काम में लिया जाना चाहिए। डॉ.ईश्वर सिंह, प्रसारशिक्षा निदेशक, कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर
एक ही समय में दो या तीन फसल
^आजके युग में न्यूट्री फार्मिंग (कीचन गार्डन) घर के आंगन में फल सब्जी की पैदावार करनी चाहिए। खेती में इंटर क्रॉपिंग (छोटी-बड़ी ऊंचाई की फसल)की तकनीक भी अपनानी चाहिए। जैसे पीपते की बुवाई के दौरान बीच में छूटी जगह पर दूसरी फसल तैयार की जा सकती है। इसके साथ ही मल्टी स्टरिंग यानि बदलते चक्र में खेती करने से भूमि उपजाऊ बनी रहती है। किसानों को मिट्टी की जांच कराए बगैर रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। पशुओं के मलमूत्र से जैविक खाद तैयार करके उसका प्रयोग करना चाहिए। एक ही समय में दो या इससे अधिक फसल प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक पद्धति अपनाई जानी चाहिए। इसके लिए किसान वैज्ञानिकों से सलाह ले सकते हैं। डॉ.एम. एल मीणा, कृषिवैज्ञानिक, जालोर
मौसम की हो जानकारी
^किसानोंपर सबसे अधिक मार मौसम की पड़ती है। इससे बचने का तरीका यह है कि किसान को मौसम पूर्वानुमान जानने के बाद ही फसलों की बुवाई करनी चाहिए। कृषि अनुसंधान केंद्रों से किसान मौसम का पूर्वानुमान पता कर सकता है। फसल बोने से पहले एक बार अपने निकटतम विज्ञान केंद्र पर जाकर वह इसकी जानकारी ले सकता है। अब मान लीजिए कि गेहूं के पकने का मौसम नहीं बन रहा है तो हमारे पास अब ऐसी किस्मे हैं जो कम तापमान पर पकती हैं। जरुरी है कि किसान इसकी जानकारी रखे। इसके साथ ही किसानों को कीटनाशक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए, क्योंकि इससे भूमि की उर्वरकता कम हो जाती है। डॉ.पी.पी. रोहिल्ला, क्षेत्रीयपरियोजना निदेशक, कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली
{ आबूरोड के निकट एक फार्म हाउस में बबूल की जड़ों पर अंगूर की बेल लगाई है। क्योंकि क्षेत्र की जलवायु तो अंगूर के अनुकूल है, लेकिन भूगर्भ में पानी नहीं है। इसलिए नई तकनीक यह अपनाई कि कम पानी वाले बबूल की कलम पर अंगूर की बेल विकसित कर दी गई। नतीजा, अब यहां एक्सपोर्ट क्वालिटी के अंगूर पैदा होते हैं।
{ सिरोही के निकट एक फार्म हाउस पर खरबूजे की खेती की जा रही है। वह भी उन्नत किस्म का खरबूजा। इसके लिए इजराइल की प्लास्टिक मलचिंग तकनीक अपनाई गई। इस तकनीक से जल संरक्षण भी हुआ और खरपतवार से भी निजात मिली।
{ सरुपगंज के निकट एक किसान ने अनार की खेती शुरु की। इसके लिए अ’छी किस्म के पौधे लिए। जो महाराष्ट्र से खरीदे गये। साथ ही वैज्ञानिक तकनीक अपनाई। कम पानी के लिए फव्वारा पद्धति और बिजली बचत के लिए सौर उर्जा अपनाई। नतीजा अनार की जोरदार पैदावार।
