हिमाचली पुष्प उत्पादकों द्वारा उगाए जा रहा कारनेशन (गुलनार) फूल का अब पेटेंट किया जाएगा। डा. वाईएस परमार विश्वविद्यालय नौणी द्वारा इस दिशा में गाइडलाइन तैयार की जा रही है। यह पहला मौका है जब कारनेशन के फूल का पेटेंट पुष्प उत्पादक करवा सकेंगे। विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई गाइडलाइन पूरे देश में लागू होंगी। प्रदेश में हर साल करोड़ों रुपए का फूलों का उत्पादन किया जाता है। प्रदेश के फूल देश के विभिन्न राज्यों में सप्लाई होते हैं। कुल उत्पादन का 30 प्रतिशत उत्पादन कारनेशन का होता है। भारत में पहली बार कारनेशन (गुलनार) के फूलों के लिए दिशा-निर्देश बनाये जा रहे हैं, जिसे बाद में देश भर के किसानों और ब्रीडरों को उनकी इजाद की गई गुलनार फूल पर रायल्टी दी जाएगी डा. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विवि नौणी को यह दिशा-निर्देश बनाने का जिम्मा सौंपा गया है। राष्ट्रीय स्तर पर यह दिशा-निर्देश बनाने का कार्य नौणी विवि को साैंपा गया है, जिसके अंतर्गत कारनेशन के फूलों की खेती करने वाले किसानों और ब्रीडरों को उनकी इजाद की गई गुलनार फूल की नई ब्रीड पर रायल्टी दी जाएगी पेटेंट होने के बाद कारनेशन के फूल पर किसी तरह का प्रयोग नई किस्मों पर बिना अनुमति के नहीं कर पाएगा। भारत में इस समय इस पुष्प की लगभग 71 से भी अधिक किस्मों की खेती देश भर के विभिन्न हिस्सों में की जा रही है। पीपीवी एंड एफआरए के नोडल अधिकारी डा. एसआर धीमान ने बताया कि नौणी विवि में 26 जून को प्रोटेशन ऑफ प्लांट वैरायटी एंड फारमर्ज राइट अथारिटी के अध्यक्ष डा. आरआर हिंचनल, रजिस्ट्रार डा. रवि प्रकाश और इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ हार्टिकल्चर रिसर्च बंगलूर के डा. एमवी धनंजय गाइड लाइन की जांच करने के बाद मान्यता प्रदान करेंगे। गाइड लाइन कमेटी के अध्यक्ष डा. वाईसी गुप्ता ने बताया कि विदेशों से आने वाली फूलों की किस्मों के साथ-साथ देसी फूलों की किस्मों को पंजीकृत कर किसानों और ब्रीडरों को उनका उचित मूल्य दिलाने के लिए यह बेहद जरूरी कदम है।
