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चीकू की खेती कैसे करें, जानिए उपयुक्त जलवायु, भूमि, किस्में, देखभाल, पैदावार

Posted on December 17, 2020December 17, 2020 By User No Comments on चीकू की खेती कैसे करें, जानिए उपयुक्त जलवायु, भूमि, किस्में, देखभाल, पैदावार

भारत में सपोटा या चीकू (मनीलकारा आचरस) एक लोकप्रिय फल है| इसका जन्म स्थान मेक्सिको और मध्य अमेरिका माना जाता है| इसका फल खाने में सुपाच्य, कार्बोहाइड्रेट (14 से 21 प्रतिशत), प्रोटीन, वसा, फाइबर, खनिज लवण, कैल्शियम और आयरन का एक अच्छा स्रोत माना जाता है और इसका प्रयोग खाने के साथ-साथ जैम व जैली आदि बनाने में किया जाता है| चीकू को मैदानी क्षेत्रों, घाटियों और निचले पवर्तीय क्षेत्रों में उगाया जा सकता है|

भारत में चीकू मुख्यत: कर्नाटक, तामिलनाडू, केरला, आंध्रा प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात में उगाया जाता है| कृषकों को इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए, ताकि इसकी फसल से अधिकतम और गुणवत्ता युक्त उत्पादन प्राप्त किया जा सके| इस लेख में चीकू की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है|

उपयुक्त जलवायु

चीकू उष्ण कटिबन्धीय फल है तथा 800 मीटर की ऊंचाई तक इसे व्यापारिक स्तर पर उगाया जा सकता है| गर्म जलवायु और 125 से 250 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र इसके लिए अत्यन्त उपयुक्त हैं अर्थात फल के बेहतर विकास और चीकू की खेती के लिए 11 से 38 डिग्री सेल्सियस तापमान और 70 प्रतिशत आर एच आर्द्रता वाली जलवायु अच्छी मानी जाती है|इस तरह की जलवायु में इसकी फलत साल में दो बार होती है| जब कि शुष्क जलवायु में, यह पूरे साल भर में केवल एक ही फसल देता है| यह पाले के प्रति अधिक संवेदनशील है, इसलिए आरम्भ के वर्षों में सर्दियों में पौधों को ठण्ड और पाले से बचाना जरूरी होता है|

भूमि का चयन

चीकू की खेती कुछ हद तक लवणीयता एवं क्षारीयता सहन कर सकती है| इसके उचित विकास के लिए 6 से 8 पीएच अच्छा माना जाता है| चीकू की खेती से अधिक उत्पादन लेने के लिए गहरी उपजाऊ तथा बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है| पौधों के उचित विकास के लिए खेत में जल निकास का अच्छा प्रवंधन होना चाहिए|

उन्नत किस्में

देश में चीकू की 41 किस्में हैं, जिसमें काली पट्टी, पीली पट्टी, भूरी पट्टी, झूमकिया, ढोला दीवानी, बारामासी और क्रिकेट वाल आदि किस्में अधिक उगाई जाती है| क्रिकेट वाल एक आहार उद्देश्शीय किस्म है, इसके फल आकार बड़ा, गोल, गूदा मीठा और दानेदार होता है| काली पट्टी भी अधिकतर क्षेत्रों में उगाई जाती है|

काली पट्टी लोकप्रिय आहार उद्देश्य किस्म है, पत्ते बड़े तथा फल आयताकार या गोल होते है| इसकी मुख्य फलत सर्दियों के मौसम में आती है, उपज 350 से 400 फल प्रति पेड होती है| बारामासी यह किस्म उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है, इसके फल गोल और मध्यम होते हैं, यह 12 महीने उपज देने वाली किस्म है|

प्रवर्धन की विधि

चीकू का प्रवर्धन बीज, इनारचिंग, वायु लेयरिंग और सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग द्वारा किया जा सकता है| इसकी व्यवसायिक खेती के लिए चीकू को इनारचिंग द्वारा लगाते है, जिसके लिए खिरनी (रायन) मूल वृन्त का उपयोग किया जाता है| क्योंकि रायन पौधे की शक्ति, उत्पादकता और दीर्घायु के लिए सबसे माना जाता है|

गमलो में तैयार पेंसिल की मोटाई के दो वर्ष पुराने खिरनी मूलवृन्त पौधों का उपयोग कलम बांधने के लिए किया जाता है| इसको लगाने के लिए दिसंबर से जनवरी का महीना उपयुक्त माना जाता है| पौधे खेत में रोपाई हेतु अगले वर्ष जून से जुलाई तक तैयार हो जाते हैं|

 

पौध रोपण

रेतीली मिट्टी में 60 x 60 x 60 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे और भारी मिट्टी में 100 x 100 x 100 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे अप्रैल से मई में बनाते है और गड्ढे में 10 किलोग्राम गोबर की खाद, 3 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 1.5 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश और 10 ग्राम फोरेट धूल अथवा नीम की खली (1 किलोग्राम) भरते है| गड्डे भरने के एक महीने बाद मानसून के प्रारंभ (जुलाई) मैं पोधों की रोपाई कर देते हैं|

रोपाई की दूरी

रोपाई की दूरी पौधों के विकास पर निर्भर करती है| सामान्यतय: पौधों से पौधों की दूरी 8 मीटर एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 8 मीटर रखनी चाहिए| सघन घनत्व रोपण लिए 8 x 4 मीटर (312 पौधों प्रति हेक्टेयर) दूरी पर रखते है|

अंन्तर फसल

चीकू के साथ अन्तर फसल के रूप में केला, पपीता, टमाटर, बैंगन, गोभी, फूलगोभी, दलहनी और कददू बर्गीय फसलें चीकू लगाने के प्रारंभिक वर्ष के दौरान ली जा सकती है| अन्तर फसल को लेने से अतिरिक्त आय और दलहनी फसलो के द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थरीकरण से मिट्टी की उर्वरता शक्ति में भी वृधि होती है|

कटाई-छंटाई

बीज से अंकुरित पौधे में कटाई-छटाई की कोई जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन इनार्किंग से तैयार किये पौधे को कटाई छटाई कर के एक आकार में देने की आवश्यकता होती है| पौधे की मृत और रोग ग्रस्त शाखाओं को हटाने और पौधे को आकार देने के लिए पेड़ की हल्की कटाई-छंटाई की जाती है|

खाद एवं उर्वरक

अधिक उपज प्राप्त करने हेतु 50 किलोग्राम गोबर की खाद, 1000 ग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फोरस और 500 ग्राम पोटाश की मात्रा प्रतिवर्ष प्रति पौधा आवश्यक होती है| जैविक खाद और रासायनिक उर्वरकों की कुल मात्रा में से आधी मात्रा मानसून के शुरुआत में गड्ढ़ों में डाल देना चाहिए और शेष आधी मात्रा सितंबर से अक्टूबर में डालनी चाहिए| अरंडी की खली का उपयोग उच्च गुणवत्ता फसल उत्पादन के लिए फायदेमंद होता है|

सिंचाई प्रबन्धन

पौधा रोपाई के तुरंत बाद और तीसरे दिन पौधों की सिंचाई करना चाहिए और इसके बाद पौधे के स्थापित होने तक 10 से 15 दिनों के अंतर से सिचाई करते रहना चाहिए तत्पश्चात सर्दियों के मौसम में 30 दिन के अंतराल से और गर्मियों के मौसम में 15 दिन के अंतराल से सिचाई करते रहना चाहिए है|ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग इसके लिए फायदेमंद होता है| इसको अपनाने से 40 प्रतिशत पानी की बचत है और 70 से 75 प्रतिशत अधिक शुद्ध आय प्राप्त होती है| इस प्रणाली में प्रारम्भिक 2 वर्षों के दौरान पेड़ से 50 सेंटीमीटर दूरी पर 2 ड्रिपर्स रखते है तथा 5 साल तक एक पेड़ से 1 मीटर के दूरी पर 4 ड्रिपर्स रखते है|इसको 4 लीटर प्रति घंटा की ड्रिपर्स निर्वहन दर के साथ सेट करते हैं तथा क्रमशः इसको गर्मियों के दौरान 7 घंटा और सर्दी के दौरान 4 घंटा के लिए एक दिन छोड़कर ड्रिप सिस्टम संचालित किया जाना चाहिए| पानी की कम आपूर्ति में, ड्रिप सिस्टम 3 घंटा 30 मिनट सर्दियों के समय में और गर्मियों में 5 घंटा 40 मिनट तक चलाते हैं|

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