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जानिए गाजर की खेती की पूरी जानकारी गाजर की उन्नत खेती कैसे करें !

Posted on December 10, 2020 By User No Comments on जानिए गाजर की खेती की पूरी जानकारी गाजर की उन्नत खेती कैसे करें !


गाजर एक महत्वपूर्ण जड़ वाली स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी है| इसकी खेती पूरे देश में की जाती है| इसकी जड़े, सब्जी, सलाद, अचार, मुरब्बा और हलवा आदि में प्रयोग होती है| अच्छे गुणों वाली मोटी, लम्बी, लाल या नारंगी रंग की जड़ों वाली गाजर अच्छी मानी जाती है| इसकी मुलायम पत्तियों का सब्जी के लिए प्रयोग किया जाता है| इसमें औषधीय गुण पाये जाते है| इससे भूख बढ़ती है तथा यह गुर्दे के लिए लाभदायक है| नारंगी रंग वाली किस्मों में विटामिन ए (कैरोटिन) की मात्रा अधिक होती है| गाजर की अच्छी पैदावार के लिए वैज्ञानिक खेती करना आवश्यक जिसका संक्षिप्त वर्णन इस लेख में किया गया है
उपयुक्त जलवायु
गाजर ठण्डे मौसम की फसल है| गाजर के रंग और आकार पर तापक्रम का बहुत असर पड़ता है| अच्छे आकार व आकर्षक रंग के लिए तापमान 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त रहता है|
भूमि का चुनाव एवं तैयारी

गाजर की अच्छी पैदावार के लिए गहरी भूरभूरी, हल्की दोमट भूमि, जिसका पी एच 6.5 के लगभग हो, उपयुक्त होती है| भूमि में पानी का निकास अच्छा होना आवश्यक है| खेत को बिजाई से पहले समतल करें व 2 से 3 गहरी जुताई करें| प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाऐं ताकि ढेले टूट जाएं| गोबर की खाद को भी खेत तैयार करते समय अच्छी तरह मिला दें|

उन्नतशील किस्में
अच्छे गुणों वाली मोटी, लम्बी, लाल या नारंगी रंग की जड़ों वाली गाजर अच्छी मानी जाती है| गाजर के जड़ के बीच का कठोर भाग कम और गूदा अच्छा होना चाहिए| गाजर की किस्मों को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा जा सकता है, जो इस प्रकार है, जैसे-

यूरोपियन किस्में- इसकी जड़े सिलैंडरीकल, मध्यम लम्बी, पुंछनुमा सिरेवाली और गहरे संतरी रंग की होती है| इनकी औसत उपज 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है| इन किस्मों को ठण्डे तापमान की आवश्यकता होती है| यह किस्में गर्मी सहन नहीं कर पाती है| इसकी प्रमुख किस्में- नैन्टीज, पूसा यमदागिनी, चैन्टने आदि है|

एशियाई किस्में- यह किस्में अधिक तापमान सहन कर लेती है, जो इस प्रकार है, जैसे- पूसा मेघाली, गाजर नं- 29, पूसा केशर, हिसार गेरिक, हिसार रसीली, हिसार मधुर, चयन नं- 223, पूसा रुधिर, पूसा आंसिता और पूसा जमदग्नि प्रमुख है| इनकी अगेती बुवाई अगस्त से सितम्बर में की जाती है| हालाँकि इसकी बुवाई अक्टूबर तक की जा सकती है|
बुवाई का समय व बीज दर

एशियन किस्मों की बुवाई अगस्त से सितम्बर और यूरोपियन किस्मों की बुवाई अक्टूबर से नवम्बर तक करनी चाहिए| प्रति हैक्टेयर 10 से 12 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है|
बुवाई की विधि
अच्छी पैदावार व जड़ों की गुणवत्ता के लिए बिजाई हल्की डोलियों पर करनी चाहिए| डोलियों के बीच का फासला 30 से 45 सेंटीमीटर व पौधों का परस्पर फासला 6 से 8 सेंटीमीटर होना चाहिए| डोलियों की चोटी पर 2 से 3 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाकर बीज बोना चाहिए|

खाद एवं उर्वरक

औसत दर्जे की जमीन में लगभग 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हैक्टेयर जुताई करते समय डालें| 20 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश की मात्रा बिजाई के समय प्रति हैक्टेयर के खेत में डालें| 20 किलोग्राम नाइट्रोजन लगभग 3 से 4 सप्ताह बाद खड़ी फसल में लगाकर मिट्टी चढ़ा से दें|

सिंचाई प्रबंधन

गाजर में 5 से 6 बार सिंचाई करने की आवश्यकता होती है| अगर खेत में बिजाई करते समय नमी कम हो तो पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करनी चाहिए| ध्यान रहे पानी की डोलियों से ऊपर ना जाए बल्कि 3/4 भाग तक ही रहें, बाद की सिंचाईयां मौसम व भूमि की नमी के अनुसार 15 से 20 दिन के अन्तर पर करें|
पौध संरक्षण

गाजर में मुख्यतः एक बीमारी अल्टरनेरिया ब्लाइट जिसमें पत्तियों पर अनेक पीले भूरे रंग के धब्बे बनते है, जिनमें कभी-कभी धारियां भी साफ दिखाई देती है का प्रकोप होता है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम हेतु खेत की सफाई रखें और हीरनखुरी व सांठी खेत में ना रहने दें| फसल पर 10 से 12 दिन के अंतराल पर 0.2 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैंकोजेब का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें| इस फसल पर कीड़ों का प्रकोप बहुत कम होता है|

जड़ों की खुदाई

जड़ों की खुदाई करने की अवस्था किस्म पर निर्भर करती है| जड़ों की मुलायम अवस्था में खुदाई करनी चाहिये| प्रायः एशियन किस्मों की खुदाई 100 से 130 दिनों में तथा यूरोपियन किस्मों की खुदाई 60 से 70 दिनों में करनी चाहिए|

पैदावार
उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से गाजर की पैदावार और गुणवत्ता किस्म, बुवाई के समय, भूमि के प्रकार, आदि पर निर्भर करती है| इसकी अगेती फसल अगस्त में बुवाई से औसतन लगभग 20 से 25, मध्यम फसल सितम्बर से अक्टूबर में बुवाई से 30 से 40 और देर वाली फसल नवम्बर में बुवाई से 28 से 32 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त होता है|

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