फसल चक्र क्या होता है ।
प्राचीन काल से ही मनुष्य अपने पोषण के लिए विभिन्न प्रकार की फसलें उगाता आ रहा है । ये उगाई जाने वाली फसलें मौसम के अनुसार भिन्न.भिन्न होती हैं । शुरू से ही किसी खेत में एक ही फसल न उगा कर फसलें बदल.बदल कर उगाने की परम्परा चली आ रही है । परन्तु यह परम्परा विशेष वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर न आधारित हो कर सामान्य आवश्यकता के अनुसार चलती आ रही थी ।
परन्तु आज नये.नये अनुभव एवं अनुसंधानों के आधार पर यह जान लिया गया है कि लगातार एक ही फसल को उगाने से उत्पादन में कमी आ जाती है । इस उत्पादकता को बनाये रखने के लिए फसल चक्र सिद्धान्त बनाया गया है ।
फसल चक्र :- हम सभी जानते है, कि पृथ्वी पर किसी भी जीव को जीवित रहनें के लिए आवश्यक आवश्यकताओं के अंतर्गत भोजन की आवश्यकता होती है| हालाँकि प्राचीन काल में मानव को कृषि के बारें में कोई जानकारी नहीं थी और वह आपनी खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वयं से उगी हुई वनस्पतियों एवं पेड़ – पौधों से भोजन प्राप्त करता था। धीरे-धीरे जनसँख्या में वृद्धि होनें लगी और मानव सभ्यता का विकास हुआ| मनुष्य नें आपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करनें के लिए कृषि कार्य करना प्रारंभ कर दिया|
समय के साथ-साथ मानव का मानसिक विकास हुआ और जनसंख्या में वृद्धि होनें लगी| जिसके कारण मनुष्य की भोजन सम्बन्धी आवश्यकतायें बढ़नें लगी और अपनी इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए मानव नें एक निश्चित समयबद्ध कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न प्रकार की फसलों को उगानें पर ध्यान केन्द्रित किया| मनुष्य अपनें भोजन की आवश्यकता को पूर करनें के लिए एक योजना के अनुसार जिन पेड़ पौधों का उत्पादन करता है, उसे फसल कहते है|
फसल चक्र की परिभाषा :- किसी निश्चित क्षेत्रफल पर निश्चित अवधि के लिए भूमि की उर्वरता को बनाये रखने के उद्देश्य से फसलों का अदल.बदल कर उगाने की प्रक्रिया को फसल चक्र कहा जाता है । अर्थात किसी निश्चित क्षेत्र में एक नियत अवधि में फसलों का इस क्रम में उगाया जाना कि भूमि की उर्वरा शक्ति का कम से कम हास्र हो फसल चक्र कहलाता है ।
दूसरे शब्दो : मे किसी निश्चित भूमि में निश्चित समय वाली फसलों को लगातार अदल बदलकर बोना ही फसल चक्र कहलाता है फसल चक्र का मुख्य उद्देश्य किसी भी तरह के पौधों के लिए भूमि में मौजूद पोषक तत्वों के सदुपयोग से भूमि की भौतिक और जैविक स्थिति में संतुलन बनाए रखना हैं लगातार फसल चक्र अपनाने से किसान भाई को फसल में आने वाली कई तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है फसल चक्र का इस्तेमाल कर किसान भाई अपनी भूमि से लगातार अच्छी फसल ले सकते हैं और इसके अपनाने से खेत की उर्वरक क्षमता भी बनी रहती है
जबकि एक ही फसल को लगातार उगाने से किसान भाइयों को फसल की कम उपज मिलती है और एक ही फसल को खेत में लगातार लगाने से मिट्टी में बीज जनित और मृदा जनित रोग भी बढ़ जाते हैं जिसके कारण भूमि में विषैले गुण आ जाते है भूमि के अंदर विषैले गुण उत्पन्न हो जाने पर भूमि में पाए जाने वाली छोटे उपयोगी मित्र किट नष्ट हो जाते हैं भूमि धीरे धीरे बंजर रूप धारण करने लगती है ।
उत्तर प्रदेश में कुछ प्रचलित फसल चक्र इस प्रकार हैं –
परती पर आधारित फसल चक्र:
परती-गेहूँ, परती-आलू, परती-सरसों, धान-परती आदि ।
हरी खाद पर आधारित फसल चक्र:
इसमें फसल उगाने के लिए हरी खाद का प्रयोग किया जाता है । जैसे हरी खाद – गेहूँ, हरी खाद – धान, हरी खाद – केला, हरी खाद – आलू, हरी खाद – गन्ना आदि ।
दलहनी फसलों पर आधारित फसल चक्र:
मूंग – गेहूँ, धान-चना, कपास-मटर-गेहूँ, ज्वार-चना, बाजरा-चना, मूंगफली-अरहर, मूंग-गेहूँ, धान-चना, कपास-मटर- गेहूँ, ज्वार-चना, बाजरा-चना, धान-मटर, धान-मटर-गन्ना, मूंगफली-अरहर-गन्ना, मसूर-मेंथा, मटर-मेंथा ।
अन्न की फसलों पर आधारित फसल चक्र:
मक्का- गेहूँ, धान- गेहूँ, ज्वार- गेहूँ, बाजरा- गेहूँ, गन्ना- गेहूँ, धान-गन्ना-पेड़ी, मक्का-जौ, धान-बरसीम, चना- गेहूँ, मक्का-उर्द- गेहूँ, आदि ।
सब्जी आधारित फसल चक्र:
भिण्डी-मटर, पालक-टमाटर, फूलगोभी, मूली-बन्दगोभी, मूली, बैंगऩ लौकी, टिण्डा-आलू-मूली, करेला, भिण्डी-मूली-गोभी-तराई, घुईयां-शलजम-भिण्डी-गाजर, धान-आलू-टमाटर, धान-लहसुन-मिर्च, धान-आलू़ लौकी इत्यादि हैं ।


