
फसल चक्र का महत्व :- वर्तमान समय में खेती में उत्पादन एवं उत्पादकता में ठहराव या कमी आने के कारणों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाए तो निश्चित ही ज्ञात होता है कि इसमें फसल चक्र सिद्धान्त का न अपनाया जाना भी एक महत्वपूर्ण कारण है क्योंकि फसल चक्र सिद्धान्त न अपनाने से उपजाऊ भूमि का क्षरण, जीवांश की मात्रा में कमी, भूमि से लाभदायक सूक्ष्म जीवों की कमी, मित्र जीवों की संख्या में कमी, हानिकारक कीट पतंगों का बढ़ाव, खरपतवार की समस्या में बढ़ोत्तरी, जलधारण क्षमता में कमी, भूमि के भौतिक, रासायनिक गुणों में परिवर्तन, क्षारीयता में बढ़ोत्तरी, भूमिगत जल का प्रदूषण, कीटनाशकों का अधिक प्रयोग तथा नाशीजीवों में उनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास, हमारे प्रदेश की सबसे लोकप्रिय फसल उत्पादक प्रणाली धान-गेहूँ, मृदा-उर्वरता के टिकाऊपन के खतरे बढ़ गये हैं ।
आज न तो केवल उत्पाद वृद्धि रूक गयी है बल्कि एक निश्चित मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए पहले की अपेक्षा न बहुत अधिक मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना पड़ रहा है क्योंकि भूमि में उर्वरक क्षमता उपयोग का हृास बढ़ गया है । इन सब विनाशकारी अनुभवों से बचने के लिए हमें फसल चक्र, फसल सघनता, के सिद्धान्तों को दृष्टिगत रखते हुए फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश जरूरी हो जायेगा क्योंकि दलहनी फसलों से एक टिकाऊ फसल उत्पादन प्रक्रिया विकसित होती है ।
फसल चक्र के सिद्धान्त
फसल चक्र के निर्धारण में कुछ मूलभूत सिद्धान्तों को ध्यान में रखना जरूरी होता है जैसे:-
1.अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद चाहने वाली फसलों का उत्पादन ।
2.अधिक पानी चाहने वाली फसल के बाद कम पानी चाहने वाली फसल उगाना ।
3.अधिक निराई गुड़ाई चाहने वाली फसल के बाद कम निराई गुड़ाई चाहने वाली फसल ।
- धान्य फसलों के बाद दलहनी फसलों का उत्पादन ।
5.अधिक मात्रा में पोषक तत्व शोषण करने वाली फसल के बाद खेत को परती रखना । - एक ही नाशी जीवों से प्रभावित होने वाली फसलों को लगातार नहीं उगाना ।
7.फसलों का समावेश स्थानीय बाजार की माँग के अनुरूप रखना चाहिए । - फसल का समावेश जलवायु तथा किसान की आर्थिक क्षमता के अनुरूप करना चाहिए ।
9.उथली जड़ वाली फसल के बाद गहरी जड़ वाली फसल को उगाना चाहिए ।
फसल चक्र अपनाने का तरीका
फसल चक्र में सामान्य रूप से फसलों को अदल बदलकर बोया जाता है. इन्हें बोने के दौरान फसल चक्र निर्धारित करने के कुछ मूल सिद्धान्त हैं. जिन्हें किसान भाइयों को अपनाने चाहिए.
अधिक पौषक तत्व ग्रहण करने वाली फसलों की खेती के बाद खेत को एक बार खाली छोड़ देना चाहिए.
किसी भी विशेष रोग के लगने पर उस फसल को लगातार खेत में नही उगाना चाहिए.
जिन फसलों की जड़ें अधिक गहराई में जाती हैं उन फसलों के बाद जिन फसलों की जड़ें कम गहराई में जाती हैं, उन्हें उगाना चाहिए.
अनाज फसलों को उगाने के बाद दो से तीन साल में एक बार दलहनी फसल को जरुर उगाना चाहिए.
अधिक गुड़ाई वाली फसलों के बाद कम गुड़ाई की जरूरत वाली फसलों को उगाना चाहिए.
अधिक सिंचाई वाली धान जैसी फसलों के बाद कम सिंचाई की जरूरत वाली फसलों को उगाना चाहिए.
अधिक उर्वरक लेने वाली फसलों के बाद जिन फसलों के लिए उर्वरक की काफी कम आवश्यकता होती है उन्हें उगाना चाहिए !
