परिशुद्ध खेती के तहत डिजिटल कृषि प्रौद्योगिकियो का उपयोग करके फसल की उत्पादकता में वृद्धि करने का प्रयास किया जाता है। परिशुद्ध खेती को सैटेलाइट फार्मिंग या विशिष्ट फसल प्रबंधन (specific crop management) के रूप में भी जाना जाता है।
परिशुद्ध खेती का आशय डिजिटल कृषि प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके फसल की उत्पादकता में वृद्धि करने तथा उसके उपज को अधिकतम बनाने के लिए उचित समय पर सटीक और उपयुक्त मात्रा में जल, उर्वरक, कीटनाशक आदि आदतों का अनुप्रयोग है। इसे सूचना एवं संचार तकनीक, wireless sensor network, robotics, drone, variable rate, technology, geo special methods और automated positioning system के माध्यम से कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है। जैसे सिंसरों युक्त ट्रैक्टर फसलों हेतु अनुकूल गहराई तक भूमि की जुताई करने में सहायक हो सकते हैं। कीटों के हमलों का सटीक रूप से पता करने के लिए सेंसर का उपयोग किया जा सकता है।
परिशुद्ध खेती के क्षेत्र में भारत में मुख्य चुनौतियां:
- अधिक लागत- परिशुद्ध खेती के तहत विभिन्न उपकरणों का प्रयोग किया जाता है जोकि लगभग ₹2 लाख प्रति हेक्टेयर अनुमानित है। एक साधारण गरीब किसान के लिए इसे अपनाना एक बड़ी चुनौती है।
- आधारिक संरचना (infrastructure) – आज भी भारत के गांवों में पक्की सड़कों का अभाव है ऐसी परिस्थिति में जीपीएस, GIS जैसे आधुनिक तकनीकों की स्थापना एवं प्रयोग बहुत मुश्किल प्रतीत होता है।
- ग्रामीण भारत की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति- भारत में ग्रामीण समाज की लगभग 90% अशिक्षित आबादी है और आर्थिक रूप से किसी भी बड़े कृषि तकनीक को अपनाने में सक्षम नहीं है।
- बेरोजगारी- भारत के लगभग 60% जनसंख्या कृषि क्षेत्र में कार्यरत है। परिशुद्ध खेती के परिणाम स्वरूप कृषि का लगभग दो तिहाई काम ऑटोमेटिक मशीनों और सेटेलाइट से ही हो जाएगा जिससे कृषि मजदूरों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ सकता है।
- अशिक्षित किसान- परिशुद्ध खेती की प्रक्रिया में जटिल उपकरणों का प्रयोग किया जाता है जो एक साधारण अशिक्षित किसान को समझने एवं समझाने में काफी मुश्किल हो सकती है।
- GNSS signal में सुधार की आवश्यकता
- मिट्टी माप की दक्षता में सुधार की आवश्यकता
- विभिन्न फार्मो में डेटा विश्लेषण प्रक्रिया की जटिलता

