उर्वरीकरण की कोई भी विधि प्रयोग करने से पहले, आपको मिट्टी के अर्द्धवार्षिक या वार्षिक परीक्षण के माध्यम से अपने खेत की मिट्टी की स्थिति पर विचार कर लेना चाहिए। कोई भी दो खेत एक जैसे नहीं होते, न ही कोई भी आपके खेत की मिट्टी के परीक्षण डेटा, ऊतक विश्लेषण और फसल इतिहास पर विचार किये बिना आपको उर्वरीकरण की विधियों की सलाह दे सकता है। फिर भी, हमने यहाँ उन ज्यादातर उर्वरीकरण विधियों की सूची दी है, जिन्हें आमतौर पर किसान इस्तेमाल करते हैं।
आमतौर पर, पौधों की रोपाई से लेकर फसल की कटाई तक, 2 से 3 महीने की सम्पूर्ण अवधि के दौरान किसान 0 से 10 बार तक खाद डालते हैं। कई किसान, पौधों की रोपाई और मिट्टी के कीटाणुशोधन से लगभग दो महीने पहले, पंक्तियों में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद (प्रति हेक्टेयर 30-40 टन) डालते हैं। इसके अलावा, वे कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट: 600-800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, और पोटैशियम सल्फेट: 500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर डाल सकते हैं।
हालाँकि, फर्टिगेशन मिर्च और शिमला मिर्च के खेत में खाद डालने की सबसे आम विधि है। यह शब्द उर्वरीकरण (फर्टिलाइजेशन) और सिंचाई (इरीगेशन) को मिलाकर बना है। इसमें किसान ड्रिप सिंचाई प्रणाली के अंदर पानी में घुलनशील उर्वरकों मिला देते हैं। इस तरह, पोषक तत्व मिट्टी में धीरे-धीरे मिलते हैं और इससे पौधे को उन्हें अवशोषित करने का उचित समय मिलता है। वे पौधे लगाने के कुछ दिन बाद फर्टिगेशन शुरू करते हैं। उस समय, वो नाइट्रोजन-फॉस्फोरस-पोटैशियम (स्टार्टर) 13-40-13 या 15-30-15 उर्वरक डालते हैं, जो ट्रेस तत्वों (सूक्ष्म पोषक तत्व) से भरपूर होता है। शुरुआती चरणों में फॉस्फोरस का उच्च स्तर मजबूत जड़ प्रणाली विकसित करने में पौधों की मदद करेगा। इसके अलावा, सूक्ष्म पोषक तत्व रोपाई की वजह से होने वाली किसी भी तनाव की स्थिति को दूर करने में पौधों की मदद करते हैं। वे एक बार फिर ट्रेस तत्वों से भरपूर नाइट्रोजन-फॉस्फोरस-पोटैशियम 20-20-20 या 15-15-15 के संतुलित उर्वरक का प्रयोग करके, फूल खिलने तक खाद डालना जारी रखते हैं। कुछ मामलों में, वे इस समय फॉस्फोरस की मात्रा अधिक करके फूल बढ़ा सकते हैं। जब पौधे पर फल लगने का समय करीब आता है तो वे इस अनुपात को एक बार फिर 15-5-30 या 10-15-20 में बदल देते हैं। इस समय, वे पोटैशियम का स्तर बढ़ा देते हैं क्योंकि अच्छे आकार के फल बनाने के लिए पौधों को इस तत्व की बहुत ज़रूरत होती है। इस चरण पर, पौधे की कैल्शियम की ज़रूरत भी बढ़ जाती है। कैल्शियम की कमी होने पर फलों में ब्लॉसम एन्ड रॉट नामक विकार दिखाई देता है, जिसकी वजह से मिर्च के निचले और किनारे वाले भाग सड़ जाते हैं। कुछ किसान फल लगने के दौरान पत्तियों पर कैल्शियम उर्वरक डालते हैं और 15 दिन बाद दोबारा इसे दोहराते हैं।
मिर्च के विकास को तीन अवधियों में बांटा जा सकता है।
वनस्पति विकास। रोपाई से 1 से 20 दिन
फूल और फल लगना। रोपाई से 21 से 55 दिन
फल बड़ा होना और कटाई। 56वें दिन से कटाई तक
पहली अवधि के दौरान, वे प्रति दिन प्रति हेक्टेयर 2 किलोग्राम नाइट्रोजन, 1 किलोग्राम P2O5 और 3 किलोग्राम K2O डालते हैं (फर्टिगेशन के माध्यम से)।
दूसरी अवधि के दौरान, किसान उर्वरीकरण की दर बढ़ाते हैं और प्रति दिन प्रति हेक्टेयर 4 किलोग्राम नाइट्रोजन, 1 किलोग्राम P2O5, और 5 किलोग्राम K2O प्रति हेक्टेयर लगाते हैं (फर्टिगेशन के माध्यम से)।
तीसरी अवधि के दौरान, ये दरें कम होती हैं, और किसान पहली अवधि के समान उर्वरक डालते हैं (फर्टिगेशन के माध्यम से)।
चूँकि, कुछ मिर्च की किस्में रोपाई के 55 दिन बाद और दूसरी किस्में रोपाई के 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार होती हैं, इसलिए आप यह समझ सकते हैं कि उपरोक्त वर्णित अवधियों की सीमाएं केवल औसत में बताई गयी हैं, और किसी को भी अपना खुद का शोध किये बिना इन निर्देशों का पालन नहीं करना चाहिए। ये बस कुछ सामान्य कार्यप्रणालियां हैं। मिर्च की किस्म, मिट्टी की स्थिति, अन्य स्थानीय कारकों को ध्यान में रखे बिना किसी को इनका पालन नहीं करना चाहिए। हर खेत और इसकी ज़रूरतें अलग होती हैं। कोई भी उर्वरीकरण विधि लागू करने से पहले मिट्टी की स्थिति और पीएच स्तर की जांच करना ज़रूरी है। आप अपने स्थानीय लाइसेंस प्राप्त कृषि विज्ञानी से इसपर परामर्श ले सकते हैं।
