कहते हैं कि इंसान की सेहत ही सब कुछ होती है. यदि इंसान स्वस्थ रहता है तो सभी काम आसानी से कर सकता है. सब्जियां कुदरत की ऐसी देन है जिसकी हमें हर हाल में जरूरत है. ये हमारे शरीर को उर्जा प्रदान करती है, ऐसी ही एक सब्जी है मूली. इसको हम सलाद के रूप में अचार, दवा आदि के लिए इस्तेमाल करते हैं. शहरों के बड़े-बड़े होटलों में जैविक मूली को सलाद के रूप में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जी है.
मूली कई तरीके से किसानों को अच्छे पैसे कमाने का मौका देती है. यह एक ऐसी फसल है जिससे किसान को कम समय में अधिक कमाई हो सकती है. भारत में मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असम, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में इसकी खेती की जाती है. इसके अलावा और भी कई राज्यों में मूली की खेती की जाती है. अच्छी पैदावार लेने के लिए मूली खेती को सही तरीके से करना अनिवार्य है. जलवायु
शुरुआत में मूली की खेती करने के लिए यह जानना आवश्यक है कि इसके लिए कौन सी जलवायु उपयुक्त है. मूली की बुवाई करने के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता पड़ती है वैसे यह पूरे साल उगाई जाती है लेकिन यह ठंडे मौसम की फसल है इसके बढ़वार हेतु 10 से 15 डिग्री सेल्सियस अच्छा तापक्रम होता है अधिक तापक्रम पर इसकी जड़े कड़ी तथा कड़वी हो जाती हैं.
भूमि
मूली वैसे तो मैदानी और पहाड़ी दोनों इलाको में बोई जाती है. मैदानी क्षेत्रों में मूली की बुवाई सितम्बर से जनवरी तक की जाती है. जबकि पहाड़ी इलाकों में यह अगस्त तक बोई जाती है. मूली का अच्छा उत्पादन लेने के लिए जीवांशयुक्त दोमट या बलुई दोमट मिटटी अच्छी होती है. इसकी बुवाई के लिए मिटटी का पी.एच. मान 6.5 के निकट अच्छा होता है.
खेत की तैयारी
मूली की बुवाई करने से पहले खेत की 5-6 जुताई कर तैयार किया जाना अनिवार्य है. मूली के लिए गहरी जुताई कि आवश्यकता होती है क्योंकि इसकी जड़ें भूमि में गहरी जाती है गहरी जुताई के लिए ट्रैक्टर या मिटटी पलटने वाले हल से जुताई करें . इसके बाद दो बार कल्टीवेटर चलाकर जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाए.
पोषण प्रबंधन
मूली की अच्छी पैदावार लेने के लिए 200 से 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी करते समय देनी चाहिए. इसी के साथ ही 80 किलोग्राम नाईट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए. नाईट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले तथा नाईट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में खड़ी फसल में देना चाहिए. जिसमे नाईट्रोजन 1/4 मात्रा शुरू की पौधों की बढ़वार पर तथा 1/4 नाईट्रोजन की मात्रा जड़ों की बढ़वार के समय देना चाहिए.
