मेथी एक पत्तेदार वाली फसल है. जिसकी खेती देशभर में की जाती है. इसकी गिनती मसालेदार फसलों में होती है, साथ ही इसका उपयोग दवाओं को बनाने में भी किया जाता है. मेथी काफी फायदेमंद होती है, इसलिए साल भर इसकी मांग रहती है. मेथी में प्रोटीन, सूक्ष्म तत्त्व विटामिन समेत विटामिन भी होता है. इसकी मांग आयुर्वेद में भी खूब की जाती है. खासतौर मेथी के बीज सब्जी और अचार बनाने में इस्तेमाल किए जाते हैं. अगर किसान मेथी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से अच्छी उपज हो सकती है. मेथी की अच्छी उपज के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता पड़ती है. इस फसल में कुछ हद तक पाला सहन करने की कूवत होती है. तो वहीं वातावरण में ज्यादा नमी होने या फिर बादलों के घिरे रहने से सफेद चूर्णी, चैंपा जैसे रोगों का खतरा रहता है. कई बीमारियों में मेथी खाने की सलाह दी जाती है. आइए आपको बताते है कि कैसे मेथी की खेती वैज्ञानिक तरीके से करें और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाए.
मेथी की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु
मेथी की अच्छी उपज के लिए कम तापमान और औसत बारिश वाले इलाके सही रहते हैं. यह पाले को दूसरी फसलों के मुकाबले ज्यादा बर्दाश्त कर लेती है, इसलिए पंजाब, राजस्थान, दिल्ली समेत तमाम उत्तरी राज्यों में इस की खेती की जाती है. इसी के साथ दक्षिण भारत में भी इसे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी खेती न ज्यादा बारिश वाले इलाकों में नहीं की जा सकती.
मेथी की रोपाई के लिए उपयुक्त भूमि
खास बात है कि मेथी की खेती सभी तरह की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन दोमट और बालू वाली मिट्टी इसके लिए ज्यादा उपयुक्त होती है. इसमें कार्बनिक पदार्थ पाया जाता है. इसकी पैदावार वहां ज्यादा होती है. जहां पीएच मान 6-7 के बीच होता है. जहां पानी के निकास के बेहतर इंतजाम होते हैं.
मेथी की खेती के लिए भूमि करें तैयार
सबसे पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. इसके 2-3 जुताईयाँ देशी हल या फिर हैरो से करें. अब मिट्टी को बारीक और एकसार करना चाहिए. बता दें कि बोआई के समय खेत में नमी होनी चाहिए, ताकि सही अंकुरण हो सके. ध्यान रखें, अगर खेती में दीमक की समस्या है, तो पाटा लगाने से पहले खेत में क्विनालफास (1.5 फीसदी) या मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी चूर्ण) 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए.
