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रजनीगंधा फूल की वैज्ञानिक खेती

Posted on December 11, 2020 By User No Comments on रजनीगंधा फूल की वैज्ञानिक खेती


यह बहुउपयोगी पुष्प है, जिस कारण व्यावसायिक दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण है। फूल सफेद एवं सुगन्धित होते हैं जो कि सभी के मन को मुग्ध कर लेते हैं। रजनीगंधा के डंठलयुक्त पुष्प/कटे फूल गुलदस्ता बनाने तथा मेज एवं भीतरी पुष्प सज्जा के लिए मुख्य रूप से प्रयोग किये जाते हैं इसके अलावा बिना डंठल का पुष्प को माला, गजरा, लरी एवं वेनी बनाने तथा सुगंधित तेल तैयार करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके फूल तथा फूल से बने सुगंधित तेल की खाड़ी देशों में बहुत अधिक माँग है। अत: यदि इसकी खेती वैज्ञानिक ढंग से करके फूल एवं तेल का निर्यात किया जाय तो विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है।

पत्तियाँ पतली, लम्बी तथा भूमि की तरु झुकी हुई धनुषाकार आकृति की होती हैं। स्पाइक 90-100 सेमी. लम्बी होती है। प्रत्येक स्पाइक में 12-20 जोड़े तक फूल रहते हैं। फूल का आकार कुप्पी की तरह होता है।

प्रवर्धन
यह कन्द से तैयार किया जाने वाला पौधा है ।

रजनीगंधा की किस्म
फूल के आकार-प्रकार तथा संरचना एवं पती के रंग के अनुसार रजनीगंधा की किस्में को चार वर्गों में विभाजित किया गया है।

  1. एकहरा – फूल सफेद रंग के होते हैं तथा पंखुड़ियाँ केवल एक ही पंक्ति में होती है।

किस्म-श्रृंगार, प्रज्जवल, लोकल ।

  1. डबल – इसके फूल भी सफेद रंग के ही होते हैं परन्तु पंखुड़ियों का ऊपरी शिरा हल्का गुलाबी रंगयुक्त होता है। पंखुड़ियाँ कई पंक्ति में सजी होती हैं जिससे फूल का केन्द्र बिन्दु दिखाई नहीं देता है।

किस्म-सुवासिनी, वैभव, लोकल ।

  1. अर्थ डबल – इस वर्ग के फूल में पंखुड़ियाँ एक से अधिक पंक्ति में होती हैं परन्तु फूल का केन्द्र बिन्दु दिखाई देता है। लोकल किस्में।
  2. धारीदार – इस किस्म के पुष्प सिंगल या डबल होते हैं परन्तु पत्तियों का किनारा सुनहरा या सफेद होता है। पत्तियों के आकर्षक रंगों एवं विभिन्नता के आधार पर स्वर्ण रेखा एवं रजत रेखा नामक दो किस्में विकसित की गयी हैं ।

रजनीगंधा की अच्छी फसल के लिए भूमि
रजनीगंधा की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए भूमि का चुनाव करते समय दो बातों पर सबसे पहले ध्यान देना चाहिए। पहला खेत छायादार जगह में न हो अर्थात सूर्य का पूर्ण प्रकाश मिलता हो, दूसरा जल निकास का उचित प्रबन्ध हो। यद्यपि इसे लगभग हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है परन्तु बलुआर दोमट, दोमट या मटियार दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।

खेत को तैयारी
खेत का चुनाव करने के बाद उसे समतल कर लें फिर एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 बार देशी हल से जुताई करके पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। चूँकि यह कन्द वाली फसल है इसलिए कन्द के समुचित विकास हैतो खेत की तैयारी ठीक ढंग से होनी चाहिए। खेल को खर-पतवार रहित रखें तथा निकाई करते समय सावधानी बरतें क्योंकि इसमें कन्द बहुत अधिक संख्या में निकलते हैं।

कन्द की रोपाई
कन्द रोपने का उपयुक्त समय मार्च-अप्रैल होता है। 2 सेमी. व्यास या इससे बड़े आकार वाले कन्द का चुनाव रोपने के लिए करना चाहिए। किस्म तथा फसल की अवधि (एक, दो या तीन वर्ष) के अनुसार 1-2 कन्द को प्रत्येक स्थान पर लगाना चाहिए। सिंगल किस्मों के कन्दों को 15-20 सेमी. पौधे से पौधा तथा 20-30 सेमी लाइन से लाइन की दूरी पर जबकि डबल किस्म को 20-25 सेमी की दूरी पर तथा 5 सेमी. की गहराई पर रोपना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक
एक वर्गमीटर की क्यारी में 3-3.5 कि.ग्रा. सड़ा हुआ कम्पोस्ट, 20-30 ग्राम नाइट्रोजन, 15-20 ग्राम फास्फोरस तथा 10-20 ग्राम पोटाश देना लाभदायक होता है। नाइट्रोजन तीन बार में बराबर-बराबर मात्रा में देना चाहिए। एक तो रोपने के पहले, दूसरा 60 दिन के बाद (3–4 पत्ती होने पर) तथा तीसरी मात्रा फूल निकलने पर देनी चाहिए। कम्पोस्ट, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा को केन्द्र रोपने के पहले ही व्यवहार करना चाहिए।

सिंचाई
गर्मी में एक-एक सप्ताह के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। बरसात में वर्षा नहीं होने पर तथा अन्य मौसम में नमी को देखते हुए आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। सही मात्रा में एवं सही समय पर सिंचाई करने से फूल की ऊपज में संतोषजनक वृद्धि होती है।

अन्य देख-रेख
खाद एवं उर्वरक का उपयोग रजनीगंधा के पौधे सही ढंग से कर सके, इसके लिए आवश्यक है कि खेत में खर-पतवार दिखाई देते ही निकाई करें। निकाई करने से मिट्टी भी ढ़ीली हो जाती है जिससे वायु संचार ठीक होता है तथा कन्द एवं जड़ों का विकास भी सही रूप में होता है। प्रत्येक कन्द से 1-3 स्पाइक तक प्राप्त होती है। तीन वर्ष के बाद प्रत्येक पौधे से 25-30 कन्द छोटे-बड़े आकार के प्राप्त होते हैं। स्पाइक को यदि काटा ना जाय तो 18-22 दिन तक खेत में पुष्प खिलते रहते हैं। ऐसा देखा गया है कि सिंगल किस्म के फूल लगभग सभी मौसम में पूर्णतः खिल जाते हैं। फलस्वरूप सुगंध भी मिलती रहती है जबकि डबल किस्म के फूल के पूर्णतः न खिलने के कारण सुगंध बहुत कम या नहीं के बराबर रहती है। व्यावसायिक दृष्टि से उत्पादन करने हैतो सिंगल किस्म ही अधिक उपयुक्त पायी गयी है।

फूल को चुनना/तोड़ना एवं स्पाइक की कटाई
फूल को यदि माला, गजरा, वेनी आदि बनाने के लिए तोड़ना है तो सुबह या सायंकाल का समय उपयुक्त रहता है। कटे फूल के रूप में 50 या 100 स्पाइक के बण्डल बनाकर बाजार में आपूर्ति किया जाता है। यदि दूर भेजना है तो स्पाइक का सबसे नीचे वाला फूल खिलने के पहले ही काट लें परन्तु नजदीक की बाजार है तो 2-3 फूल खिलने पर काटें। स्पाइक लम्बी होने पर मूल्य अधिक मिलता है इसलिए यथासम्भव भूमि के नजदीक से तेज चाकू द्वारा डंठल काटकर प्लास्टिक के बकेट जिसमें 3-4 पानी हो, में रखना चाहिए।

ऊपज
ताजा फूल प्रति है क्टेयर लगभग 80–100 क्विंटल/वर्ष प्राप्त होता है जबकि सुगंधित द्रव्य के रूप में ककरीट 27.5 कि.ग्रा. प्रति है क्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है जिससे 5.500 कि.ग्रा. ऐबसोल्युट (शुद्ध) सुगंधित द्रव्य प्राप्त होता है।

कीड़े एवं बीमारियाँ
इस फूल में बीमारी का प्रकोप तो नहीं पाया जाता है परन्तु पानी लगने वाले स्थान पर फफूंद की बीमारी लगती है जो कि पत्ती व फूल को प्रभावित करती है। इससे बचाव के लिए ब्रैसीकाल का छिड़काव (2 ग्राम प्रति लीटर में पानी में घोलकर) करें।

कीड़ों में मुख्य रूप से थ्रिप्स (बहुत छोटा कीड़ा) तथा माइट का आक्रमण होता है जो कि पत्ती तथा फूल दोनों को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। ध्रिप्स से फसल की रक्षा है तो नूवान 0.05 प्रतिशत या सेविन 0.3 प्रतिशत का छिड़काव 10-15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए। माइट के लिए केलथेन (डाइकोफाल) नामक दवा का 0.2 प्रतिशत की दर से छिड़काव लाभकारी होता है। कभी-कभी कैटरपिलर पत्तियों एवं फूल को खाकर नुकसान पहुँचाते हैं। अत: इनके आक्रमण होने पर नुवान या रोगर का छिड़काव करें।

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