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लोकाट फल की खेती कैसे करें, जानिए जलवायु, भूमि, किस्में, देखभाल, पैदावार

Posted on December 11, 2020 By User No Comments on लोकाट फल की खेती कैसे करें, जानिए जलवायु, भूमि, किस्में, देखभाल, पैदावार

फल खाना हमेशा से स्वास्थ्य के लिए लाभकारी ही रहा है। देसी फलों के अलावा आजकल भारत में अनेक विदेशी फल भी उपजाए और खाए जाने लगे हैं। ऐसा ही एक फल लोकाट (loquat fruit) है। भारत में लोकाट को लुकाट या लुगाठ के नाम से भी जाना जाता है। सच यह है कि लोकाट केवल एक फल नहीं बल्कि उत्तम गुण वाली औषधि भी है। लोकाट के फायदे से अनेक रोगों को ठीक किया जा सकता है। खांसी, पेट के रोग, लिवर विकार आदि में भी लोकाट से लाभ मिलता है।लोकाट के फल और पत्ते स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होते हैं। लोकाट के पत्ते कफ निकालने वाले और उल्टी कराने वाले होते हैं। इसके फल खट्टे-मीठे, शरीर का पोषण करने वाले होते हैं। इसके अलावा लोकाट के फायदे और भी हैं। आइए जानते हैं कि आप लोकाट से क्या-क्या लाभ ले सकते हैं।

बागपत। जापान के लोकाट को सहेजने में बागपत के किसान विफल साबित हो गए। मेहनत के अनुरूप लाभ न मिलने के कारण जिले से लोकाट फल का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। विरासत में मिले इस फल को ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी बचाने के भरसक प्रयास किए थे। नतीजतन, आज देश में इसकी फसल सहारनपुर और जम्मू-कश्मीर के अलावा एक-दो और स्थानों पर पाई जाती है।

बताया जाता है कि लोकाट फल की खोज जापान ने की है। 1700 ईष्वी के आसपास यह भारत में आया। शुरुआती दौर में देश में इस फल के पेड़ लगाए गए। जिले के सैकड़ों किसानों ने भी लोकाट का उत्पादन किया। लंबे समय तक लोकाट का फल लिया गया, लेकिन धीरे-धीरे लागत अधिक होने के कारण किसानों ने इसका उत्पादन बंद करना शुरू कर दिया। देश में आई ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे बचाने के लिए प्रयास शुरू किए। बागपत में भी कंपनी के हुक्मरानों ने किसानों को जागरूक किया, परंतु बात न बन सकी। सन 1930 के आसपास जनपद समेत अधिकतर जगहों पर इसका उत्पादन बंद हो गया। वर्तमान में यह फल सहारनपुर मंडल समेत जम्मू-कश्मीर और एक-दो स्थानों पर ही होता है।

प्रभारी जिला उद्यान आरएस सोलंकी ने बताया कि लोकाट खत्म होने के जिम्मेदार यहां के किसान हैं। यह बलुई और दोमट मिट्टी में होता है। कमी यह है कि पौधा लगाने के पांच से छह वर्ष बाद फल आता है। इसलिए किसान इसमें रुचि नहीं रखते हैं।लोकाट की मुख्य दो वैरायटी ही वर्तमान में हो रही हैं। नताशा और गोल्डन येलो नाम की ये वैरायटियां उत्पादन में भी अच्छी हैं। प्रभारी जिला उद्यान अधिकारी ने बताया कि इसके पौधरोपण का समय जुलाई और अगस्त होता है। छह मीटर की दूरी पर इसका प्लांटेशन किया जाता है। बीज से इसका पौधा उगाया जाता है और थोड़ा सा बड़ा होने पर इसके ऊपर कलमी पौधे की कलम चढ़ाई जाती है। पौधे की लंबाई 12 से 14 फुट तक हो जाती है। पत्तियों का आकार 25 सेमी. और रंग गहरा हरा होता है।जून से सितंबर तक का महीना लोकाट की बिजाई के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है. यह एक सदाबहार वृक्ष है जो कि 5-6 मीटर तक लम्बा हो सकता है. भारत में लोकाट की खेती के लिए दिल्ली, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य प्रसिद्ध हैं. हालांकि इसकी खेती महाराष्ट्र, आसाम, और उत्तर प्रदेशों आदि राज्यों में भी बड़े स्तर पर की जाती है.

मांग

लोकाट की मांग कई कारणों से बाजार में वर्ष भर बनी रहती है. इसको स्वास्थ्य के लिए अति लाभकारी माना गया है. त्वचा के लिए बनने वाले उत्पादों में अधिकतर इसका उपयोग होता ही है. इसके अलावा आंखों की नज़र, भार को कम करने एवं ब्लड प्रैशर को नियंत्रित करने के लिए इसका उपयोग होता है. यह दांतों और हड्डियों के लिए भी फायदेमंह है.

मिट्टी

लोकाट की खेती के लिए रेतली दोमट मिट्टी का होना सबसे अधिक फायदेमंद है. इसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में होते हैं, जो इस वृक्ष के विकास में सहायक हैं.

खेती की तैयारी

इसकी खेती के लिए सबसे पहले खेतों की जतोई करते हुए उन्हें समतल बना दें. मिट्टी के भुरभुरा होने तक 2-3 गहरी जोताई करना सही है.

बिजाई

जून से सितबंर के महीनों के बीज पौधे से पौधों की दूरी 6-7 मीटर रखते हुए बिजाई करें. बीजों को 1 मीटर की गहराई में रोपाना सही है. बिजाई के लिए प्रजनन विधि का प्रयोग सबसे अधिक फायदेमंद है.

सिंचाई

जरूरत को देखते हुए आप इसकी सिंचाई कर सकते हैं. बरसात के मौसम में इसको अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती. तुड़ाई के वक्त 3 से 4 सिंचाई करें.

तुड़ाई

रोपाई के तीसरे वर्ष बाद फल आने शुरू हो जाते हैं. फलों के पूरी तरह पकने पर तीखे यंत्र से तुड़ाई करना बेहतर है. तुड़ाई के बाद छंटाई करें.

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