शकरकंद की खेती के लिए हमें एक हैक्टर खेत के लिए 84,000 लताओं के टुकड़ों (कटिंग) की आवश्यकता होती है| एक कटिंग की लम्बाई 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए तथा एक साथ 2 से 3 कटिंग खेत में लगानी चाहिए| कटिंग लता के मध्य व ऊपरी भाग से लेनी चाहिए| अगर कन्द का प्रयोग कर रहे हैं, तो दो नर्सरी तैयार करनी पड़ती है, जो इस प्रकार है, जैसे-
प्राथमिक नर्सरी
मुख्य खेत में लगाने के दो महीने पहले ही प्राथमिक नर्सरी को तैयार कर लेना चाहिए| एक हैक्टर क्षेत्र की बुआई के लिए प्राथमिक नर्सरी 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है, जिससे एक हैक्टर खेत की नर्सरी तैयार हो जाती है| स्वस्थ कन्द जो पूरी तरह कीट और रोग मुक्त हो 60 X 60 सेंटीमीटर मेड़ से मेड़ की दूरी और 20 X 20 सेंटीमीटर कन्द से कन्द की दूरी पर लगाना चाहिए| इस तरह 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के लिए 100 किलोग्राम कन्द की आवश्यकता पड़ती है|
कन्द बुआई के समय 1.5 किलोग्राम यूरिया का नाली में छिड़काव करना चाहिए| आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर पानी की उपलब्धता बनाये रखनी पड़ती है| इस तरह से 40 से 45 दिन में पहली नर्सरी तैयार हो जाती है| तैयार लताओं को 20 से 25 सेंटीमीटर की लंबाई में काट दिया जाता है|
द्वितीय नर्सरी
द्वितीय नर्सरी के लिए हमें 500 वर्गमीटर क्षेत्रफल की आवश्यकता पड़ती हैं| मेड़ों से मेड़ों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए| नर्सरी लगाने के 15 व 30 दिन बाद 5 किलोग्राम यूरिया का छिड़काव अवश्य करें तथा नमी की समुचित व्यवस्था बनाये रखनी चाहिये| इस तरह से 45 दिनों में दूसरी नर्सरी तैयार हो जाती है| नर्सरी तैयार हो जाने के बाद 20 से 25 सेंटीमीटर लम्बी लताएं शीर्ष व मध्यम भाग की कटिंग कर ली जाती है| यह मुख्य खेत में लगाने के लिए उपयुक्त होती है|
लताओं का चुनाव
शकरकंद की खेती में लताओं का चुनाव करते समय कभी भी लताओं को नीचे के भाग से नहीं लेना चाहिए| मध्य तथा शीर्ष वाला भाग ही हमेशा प्रयोग करना चाहिए|
लताओं को लगाने से पूर्व की तैयारी
नर्सरी से लताओं को काटने के बाद उसको दो दिनों तक छाया में रखा जाये, जिससे उनमें जड़ों का विकास अच्छा होता है| लताओं को बोरेक्स या मानोक्रोटोफास दवा 0.05 प्रतिशत के घोल में 10 मिनट तक डुबोना चाहिए| उसके बाद मुख्य खेत में लता लगाने के लिए उपयुक्त रहती हैं|
लता लगाने की विधि
शकरकंद तीन तरह से लगाई जाती है, टीला विधि, मेड़ व नाली विधि और समतल विधि द्वारा वैसे इन तीनों विधियों का अपना अलग-अलग महत्व है| टीला विधि, जहां जल जमाव की समस्या रहती है और दूसरी मेड़ व नाली विधि ढलाव वाले भूमि के लिए संस्तुति की जाती है तथा समतल विधि हर जगह के लिए उपयुक्त है, किन्तु एक माह बाद जड़ों पर मिट्टी चढ़ाकर मंड बनाना आवश्यक होता हैं|
लता रोपण
लताओं को लगाते समय नीचे वाले भाग सहित मध्य भाग तक मिट्टी से दबा देना चाहिए, जिससे लताएं ज्यादा जीवित रहें व उनमें जड़ का विकास तीव्र गति से हो| हमेशा लताओं की कटिंग तीन गांठ से ऊपर होनी चाहिए, इनके बने कन्द गुणवत्ता में अच्छे होते हैं|
खरपतवार नियंत्रण
शकरकंद में खरपतवार की समस्या अधिक नहीं होती है, वैसे खरपतवारों की समस्याएं शुरू के ही समय आती हैं, जब लताएं पूरे खेत में फैली नहीं रहती हैं| शकरकंद की लताएं पूरे खेत में फैल जाती हैं, तो खरपतवार का जमाव नहीं हो पाता है| अगर खेत में कुछ खरपतवार उगे तो मिट्टी चढ़ाते समय निकाल देना चाहिए|
खाद और उर्वरक
शकरकंद की खेती में कार्बनिक खाद् पर्याप्त मात्रा में डालनी चाहिए, जिससे मिटटी की उत्पादकता सही व स्थिर रहती है| केन्द्रीय कन्द अनुसंधान संस्थान द्वारा संस्तुति की गई रिपोर्ट के मुताबिक 5 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद खेत की पहली जुताई के समय ही भूमि में मिला देनी चाहिए| रासायनिक उर्वरकों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन व 25 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करनी चाहिए| नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा शुरू में लता लगाते समय ही जड़ों में देनी चाहिए|
शेष नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बांटकर एक हिस्सा 15 दिन में दूसरा हिस्सा 45 दिन टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिए| अधिक अम्लीय भूमि में 500 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दूर से चूने का प्रयोग कंद विकास के लिए अच्छा रहता हैं| इनके अलावा मैगनीशियम सल्फेट, जिंकसल्फेट और बोरॉन 25:15:10 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करने पर कन्द फटने की समस्या नहीं आती हैं व एक समान व आकार के कन्द लगते हैं|
तापमान का प्रभाव
कंद के वृद्धि व उत्पादन पर वातावरणीय कारकों का भी प्रभाव पड़ता है| रात्रि में चलने वाली हवाओं से होने वाले तापमान परिवर्तन से शकरकंद में कुछ प्रभाव देखा गया है| शकरकन्द में शर्करा स्थानांतरण तने से कन्द में इसी समय होता है| रात्रि की ठण्डी हवाएं और दो या तीन सिंचाई से सार्थक परिणाम सामने आये हैं, जिससे कन्द बनने की संख्या में वृद्धि देखी गई है| 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान कन्द निर्माण में व लताओं के विकास में अच्छी वृद्धि देखी गई हैं| 25 से 27 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर जड़ों के कन्द में बदलाव अच्छा देखा गया है|
20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर शकरकंद में शुक्रोज की मात्रा जड़ व तने में कम बनती हैं व उच्च तापमान 30 डिग्री सेल्सियस पर सुक्रोज की मात्रा घटने लगती है| इस तरह से 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर शकरकंद में वृद्धि व विकास तथा कन्द की गुणवत्ता अच्छी रहती हैं| 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर पौधे की बढ़वार तो होती है, किन्तु कन्द नहीं बनते या कम बनते है|
पानी की कमी का प्रभाव
शकरकंद के अच्छे उत्पादन के लिए खेत में 25 प्रतिशत से कम व 50 प्रतिशत से अधिक नमीं पर उपज में कमी आने लगती है| 50 प्रतिशत से ज्यादा नमी रहने पर पौधों में वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया तेज हो जाती है, जिससे पैदावार में कमी आने लगती हैं|
जल जमाव
बहुत ज्यादा वर्षा हो जाने व जल निकास की सुविधा नहीं रहने से जल जमाव की समस्या आ जाती है, जिससे पौधे के जड़ क्षेत्र के पास ऑक्सीजन की कमी आ जाती है तथा पौधे अपनी जीवन प्रक्रिया सही रूप से नहीं चला पाते हैं| इससे पैदावार में कमी आने लगती है तथा शकरकंद में कन्दों के बनने की संख्या व कन्द का आकार में कमी आने लगती हैं|
