मक्का भारत की मुख्य फसलों में से एक है. इसका उपयोग मानव आहार, पशुओं को खिलाने वाले दाने एवं भूसा के रूप में होता है इसके अतिरिक्त औद्योगिक महत्व की वस्तुएं बनाई जाती है. भारत में साधारण रूप से मक्का की फसल खरीफ मौसम में उगाई जाती है लेकिन रबी मौसम में मक्का के अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है. यह फसल कम और अधिक जल दोनों के प्रति संवेदनशील होती है, जिसके कारण देश में इसका कम उत्पादन होता है. अधिक बारिश से फसल को खराब होने से बचाने के लिए रबी (Winter) मौसम श्रेष्ठ है, क्योंकि दूसरी ओर फसल पर कीटों, और रोगों का आक्रमण कम होता है.
शीतकालीन मक्का की खेती के लिए जलवायु (Climate for Maize Farming)
इसकी खेती शीतोष्ण, समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है. इसे खरीफ, रबी और जायद मौसम में की जाती है.
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शीतकालीन मक्का की खेती कैसे करें?
07 December, 2020 5:50 PM IST By: हेमन्त वर्मा
Maize
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मक्का भारत की मुख्य फसलों में से एक है. इसका उपयोग मानव आहार, पशुओं को खिलाने वाले दाने एवं भूसा के रूप में होता है इसके अतिरिक्त औद्योगिक महत्व की वस्तुएं बनाई जाती है. भारत में साधारण रूप से मक्का की फसल खरीफ मौसम में उगाई जाती है लेकिन रबी मौसम में मक्का के अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है. यह फसल कम और अधिक जल दोनों के प्रति संवेदनशील होती है, जिसके कारण देश में इसका कम उत्पादन होता है. अधिक बारिश से फसल को खराब होने से बचाने के लिए रबी (Winter) मौसम श्रेष्ठ है, क्योंकि दूसरी ओर फसल पर कीटों, और रोगों का आक्रमण कम होता है.
शीतकालीन मक्का की खेती के लिए जलवायु (Climate for Maize Farming)
इसकी खेती शीतोष्ण, समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है. इसे खरीफ, रबी और जायद मौसम में की जाती है.
मक्का की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव (Selection of soil for Maize cultivation)
शीतकालीन मक्का की खेती रेतीली से मटियारी तक की विभिन्न प्रकार की मृदाओं में के जा सकती है. लेकिन मक्का की अच्छी बढ़वार और उत्पादकता के लिए बलुई दोमट मृदा एवं मध्यम से भारी मिट्टी जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश और उचित जल निकास हो , उपयुक्त रहती है. लवणीय तथा क्षारीय भूमियां (Alkaline & acidic soil) मक्का की खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती है.
मक्का की किस्में (Varieties of Maize)
इसकी हाइब्रीड क़िस्मों (Hybrid varieties) में गंगा-5, गंगा-11, डेक्कन-101, गंगा सफेद-2, बायो– 9637, एच.क्यू.पी.एम.-1, पूसा संकर-1, पूसा संकर-2, पूसा विवेक, और पूसा एचएम 4 उन्नत संकर किस्म मानी जाती है. संकुल क़िस्मों में विजय, किसान, विक्रम, अगेती-76, तरुण, प्रभात, नवजोत, मंजरी,सुवन कम्पोजीट आदि प्रमुख है. अन्य रबी मक्का (Rabi maize) की उन्नत किस्में हाई स्टार्च कम्पोजिट, लक्ष्मी कम्पोजिट, हेमंत, गंगा-21 है.
खेत की तैयारी और बुवाई (Field preparation and sowing)
खेत की 15 सेमी तक गहरी जुताई कर मृदा को भूरभूरी बना देनी चाहिए. इसके पश्चात कम से कम तीन चार जुताई हेरो से कर देनी चाहिए. खेत की तैयारी के समय जल निकास का विशेष ध्यान रखना चाहिए. सामान्यतया अक्टूबर के अंत तक बुआई पूरी कर लें, अधिक देरी होने से तापमान में तेजी से गिरावट आती है, जिसके परिणामस्वरूप अंकुरण (germination) में देरी होती है और पौधे की बढ़वार में कमी आती है.
बुआई के लिए शुद्ध एवं प्रमाणित बीजों का उपयोग ही करना चाहिए. बीजों को बीज-जनित रोगों से बचाने के लिए कैप्टन, थायरम या कार्बेन्डाजिम (carbendazim) से उपचारित करने की बाद ही बुवाई करनी चाहिए. संकुल बीज को 3-4 वर्ष तक ही बुआई के काम में लेना चाहिए. इसके बाद बदल लेना चाहिए. बीज की गहराई 3 से 5 सेंटीमीटर रख कर कतार से कतार की दूरी 45 सेमी तथा पौधो के बीच की दूरी 20-30 सेमी रखे. एक एकड़ भूमि के लिए संकर किस्म के बीज की मात्रा 810 किलो तथा संकुल किस्म के बीजों की मात्रा 6-8 किलो होनी चाहिए. बीज की गहराई 4-6 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए. बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है. एक एकड़ भूमि में पौधों की संख्या लगभग 30,364 होनी चाहिए.
मक्का में पौध संरक्षण (Plant protection of Maize)
मक्का में विभिन्न प्रकार के रोग व कीट (disease & pest) लगते हैं. जो फसल के लिए बेहद हानिकारक होते हैं.
रोग नियंत्रण: मक्का की फसल में बीजों एवं मृदाजनित रोगों मे रस्ट, पिथियम रोग, जीवाणु रोग (Bacterial disease) एवं तना गलन (Stem rot) रोग प्रमुख है. इनकी रोकथाम के लिए बीजों को बुआई से पूर्व थायरम, या कार्बेन्डाजिम से 2 ग्राम प्रति किलो की दर से बीज उपचारित (seed treatment) कर देना चाहिए.
फसल में अंगमारी, मक्का का भूरा मृदुरोगिल, पिथियम गलन रोग, बीज गलन आदि रोगों के लक्षण दिखाई देने पर 15-20 दिनों के अन्तराल में 2-3 छिड़काव कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP या कार्बेण्डाजिम 50 WP की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर में मिलाकर घोल का छिड़काव करने से इन रोगों की रोकथाम आसानी से हो सकती है.
कीट नियंत्रण (Insect control): इसमें तना छेदक कीट (stem borer) की सून्डियाँ पौधों में घुस कर अन्दर तने को खोखला करती है इससे तना कमजोर हो जाता है तथा पौधे उपर से टूट जाते है और लीफ रोलर कीट, तना मक्खी का भी प्रकोप रहता है. इन कीटों की रोकथाम के लिए प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिलीग्राम/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करे. आवश्यकतानुसार स्प्रे दवा बदलकर दोहराएं. कट वर्म (Cut worm) कीट का आक्रमण पौधों के अंकुरण के साथ-साथ ही आरम्भ हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए फोरेट का उपयोग उचित माना गया है.
