कृषि-आधारित उद्योग ग्रामीण इलाकों में रोजगार के साथ-साथ औद्योगिक संस्कृति को बढ़ावा देने में भी मददगार हैं। साथ ही, खाद्य प्रसंस्करण और इससे मिलते-जुलते अन्य उद्योगों में निर्यात जबर्दस्त सम्भावना है। ये उद्योग सहकारिता प्रणाली से संचालित होते हैं। लिहाजा, विकास की प्रक्रिया में ज्यादा से ज्यादा लोगों की सहभागिता सुनिश्चित हो पाती है।
कृषि क्षेत्र में सुस्ती और उतार-चढ़ाव जैसी स्थिति है। इस क्षेत्र की वृद्धि दर के आंकड़े उत्साहजनक नहीं हैं। अगर इस चुनौती से नहीं निपटा गया, तो कृषि पर निर्भर देश की बड़ी आबादी के लिए इसके गम्भीर परिणाम होंगे। खासतौर पर विनिर्माण क्षेत्र को भी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। विनिर्माण क्षेत्र काफी हद तक कृषि क्षेत्र के साथ भी जुड़ा हुआ है। खाद्य विनिर्माण से जुड़े कई क्षेत्र और कृषि से सम्बन्धित कारोबार कृषि क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
कृषि क्षेत्र से मिलने वाले कच्चे माल को प्रसंस्कृत कर बाजार में बिकने लायक और उपयोगी उत्पाद तैयार किए जाते हैं। साथ ही, इन उत्पादों को तैयार करने वाली इकाइयों को लाभ और अतिरिक्त आय भी होती है। अगर भारत के सन्दर्भ में बात की जाए, तो कहा जा सकता है कि कृषि-आधारित उद्योगों का महत्व बढ़ाने में कई पहलुओं की भूमिका रही। उदाहरण के तौर पर इन उद्योगों को लगाना अपेक्षाकृत आसान है और ग्रामीण इलाकों में कम निवेश से इन उद्योगों के जरिए आय हासिल की जा सकती है। साथ ही, ऐसे उद्योगों में कच्चे माल के अधिकतम उपयोग की गुंजाइश होती है। कृषि-आधारित उद्योग ग्रामीण इलाकों में औद्योगिक संस्कृति को बढ़ावा देने में भी मददगार हैं। खाद्य प्रसंस्करण और इससे मिलते-जुलते अन्य उद्योगों में निर्यात की जबर्दस्त सम्भावना है। ये उद्योग सहकारिता प्रणाली से संचालित होते हैं। लिहाजा, विकास की प्रक्रिया में ज्यादा-से-ज्यादा लोगों की सहभागिता सुनिश्चित हो पाती है।
कृषि और कृषि-आधारित उद्योगों के बीच सम्बन्ध
देश की तकरीबन दो-तिहाई आबादी कृषि और कृषि-आधारित उद्योगों पर निर्भर है। भारत में कृषि क्षेत्र में विरोधाभासी स्थितियां नजर आती हैं। इस क्षेत्र की वृद्धि दर में सुस्ती है और उत्पादन में स्थिरता जैसी स्थिति है, जबकि बड़ी आजादी को रोजगार मुहैया कराने में कृषि-आधारित उद्योगों की अहम भूमिका हो सकती है। भारतीय कृषि प्रणाली में कृषि वानिकी को किसानों की आय बढ़ाने का महज पूरक जरिया माना जाता है। कृषि वानिकी का मतलब खेती के तहत पेड़-पौधे और बाग-बगीचे लगाकर आय हासिल करना है। खेती की इस प्रणाली से कृषि का व्यावसायीकरण होता है और इसमें विविधता के लिए गुंजाइश बनती है। इस प्रणाली से न सिर्फ किसानों की आय बढ़ती हैं, बल्कि खाद्य पदार्थों का भंडार भी बढ़ता है। औद्योगिक विकास के सन्दर्भ में दुनियाभर में यह एक स्थापित तथ्य है कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का विकास होता है, कृषि क्षेत्र में कृषि-आधारित उद्योगों की भूमिका भी उसी अनुपात में बढ़ती जाती है। हमें इस बात पर जोर देना चाहिए कि खाद्य पदार्थ न सिर्फ उत्पाद हैं, बल्कि इसमें प्रसंस्कृत उत्पादों का व्यापक दायरा है। इस लिहाज से देखा जाए तो विकासशील देशों में तो कृषि-आधारित उद्योग विनिर्माण क्षेत्र का अहम हिस्सा है।
सम्भावनाएं
कृषि क्षेत्र में गिरावट और उतार-चढ़ाव जैसी स्थिति के कारण इस क्षेत्र में बढ़ोत्तरी के आंकड़े उत्साहजनक नहीं हैं। अगर इस चुनौती से नहीं निपटा गया, तो कृषि पर निर्भर देश की बड़ी आबादी के लिए इसके गम्भीर परिणाम होंगे। खासतौर पर विनिर्माण क्षेत्र को भी परेशानी का सामना करना पड़ेगा जिसका कृषि के साथ काफी जुड़ाव है। खाद्य विनिर्माण से जुड़े कई क्षेत्र और कृषि से सम्बन्धित कारोबार कृषि क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कृषि-आधारित विभिन्न उद्योगों में से खाद्य विनिर्माण के क्षेत्र में ज्यादा सामग्री की जरूरत होती है। ऐसे में कृषि क्षेत्र के विकास और कृषि उत्पादन के व्यावसायीकरण और विविधीकरण में खाद्य विनिर्माण क्षेत्र की बड़ी भूमिका हो सकती है। इसके अलावा, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में निवेश करने वाले लागत कम करने के लिए अक्सर वैसी जगह पर उद्योग लगाते हैं, जहाँ से कच्चे माल की उपलब्धता बिल्कुल नजदीक हो। अतः नीतियों में अहम बदलाव के तहत कृषि-प्रसंस्करण के व्यावसायीकरण और विविधीकरण के जरिए कृषि विकास को रफ्तार देने की जरूरत है।
अर्थव्यवस्था में अब तक इन उद्योगों, खासतौर पर खाद्य-विनिर्माण क्षेत्र की पूरी सम्भावनाओं का दोहन नहीं हो पाया है। आय में लगातार बढ़ोत्तरी, बढ़ते शहरीकरण, मध्य वर्ग के लोगों की आय में तेजी से वृद्धि और कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी, एकल परिवार के बढ़ते प्रचलन, साक्षरता में बढ़ोत्तरी और पश्चिमी खाद्य पदार्थों के बढ़ते चलन के कारण प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और कृषि-आधारित अन्य उद्योगों की मांग बढ़ रही है। खाने-पीने के बाजार में पिछले तीन दशकों से प्रसंस्कृत खाद्य-पदार्थों की हिस्सेदारी में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। आय में वृद्धि के साथ-साथ प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की मांग भी बढ़ रही है और किसी भी अन्य खाद्य के मुकाबले इसमे बढ़ोत्तरी की सम्भावना सबसे ज्यादा है। वर्ष 2020 तक खाद्य क्षेत्र में प्रसंस्कृत खाद्य-पदार्थों और पेय पदार्थों की हिस्सेदारी बढ़कर 15 फीसदी तक पहुँच जाने की सम्भावना है। इन चीजों की बढ़ती मांग, माल ढुलाई, रसद, संचार, तकनीकी नवाचार में बेहतरी व कृषि प्रसंस्करण आधारित उद्योगों के अनुकूल आर्थिक नीतियों के कारण प्रसंस्करण उद्योग में विकास की जबर्दस्त सम्भावनाएं दिख रही हैं। इससे जुड़ा घरेलू और अन्तरराष्ट्रीय बाजार काफी बड़ा है। अगर आधुनिक तकनीक और जोरदार मार्केटिंग (विपणन) के साथ बड़े पैमाने पर इस उद्योग से जुड़ी वस्तुओं का उत्पादन किया जाए, तभी घरेलू और निर्यात सम्बन्धी बाजार की सम्भावनाओं का पूरा-पूरा दोहन किया जा सकेगा। कृषि उद्योग के विकास से खेती और इससे सम्बन्धित उद्योग-कारोबार को ज्यादा आकर्षक बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही, उत्पादन और मार्केटिंग, दोनों स्तरों पर रोजगार के बड़े मौके उपलब्ध कराए जा सकेंगे। भारत में खाद्य-प्रसंस्करण क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने और रोजगार पैदा करने की अच्छी सम्भावना है। कृषि उत्पादों के व्यापक विकास से भारत की सामाजिक व भौतिक, दोनों तरह की आधारभूत संरचनाओं को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
एग्रीबिजनेस
एग्रीबिजनेस यानि कृषि-कारोबार का मतलब खेत से लेकर संयंत्र तक की व्यावसायिक गतिविधियों से है। कृषि-कारोबार पूरी दुनिया में रोजगार और आय पैदा करने का प्रमुख माध्यम है। कृषि-कारोबार में वैसा कच्चा माल शामिल है, जो आमतौर पर जल्द खराब हो जाता है और आमतौर पर उपलब्ध नहीं होता। इस क्षेत्र में उपभोक्ता सुरक्षा, उत्पाद की गुणवत्ता और पर्यावरण सम्बन्धी संरक्षण को लेकर सख्त नियम है। उत्पादन और वितरण के पारम्परिक तरीकों की जगह अब कृषि-कारोबार से जुड़ी फर्मों, किसानों, खुदरा व्यापारियों और अन्य की बेहतर और समन्वित आपूर्ति श्रृंखला देखने को मिल रही है।
