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सेम की खेती कैसे करें ( sem ki kheti kaise kare )

Posted on December 11, 2020 By User No Comments on सेम की खेती कैसे करें ( sem ki kheti kaise kare )


भाइयों भारत में सब्ज़ियों की खेती में सेम उत्पादन का एक अलग स्थान है। इसकी खेती भारत के विभिन्न राज्यों जैसे – उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र व तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर की जाती है। इसकी इसकी हरी फलियाँ लोग सब्ज़ी बनाकर बड़े चाव से खाते हैं । साथ ही हरी फलियों से अचार भी बनाया जाता है। सेम की लताये पशु चारे के रूप में प्रयोग की जाती हैं। गाँवो व शहरों में इसे लोग अपनी गृह वाटिका में लगाते हैं। पश्चिमी देशों में इसे बोनाविशिष्ट के नाम से जाना जाता है ।
जलवायु व तापमान –
पाला अधिक पड़ने वाले स्थानों को छोड़कर लगभग सभी ठंडी जलवायु वाले स्थानों में सेम सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसके पौधों का समुचित वृधि छोटे अवधि वाले दिनों में अधिक होता है। सेम की फ़सल को पाले से बहुत नुक़सान होता है क्योंकि इसकी फ़सल पाला बिलकुल भी नही सह पाती है ।

भूमि का चयन –
beans ki kheti kaise kare- सेम की फ़सल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु उचित भूमि का चयन करना बेहद आवश्यक है। भूमि उचित जल निकास वाली हो,भूमि क्षारीय व अम्लीय ना हो,भूमि का पीएच मान 5.3 – 6.0 होना चाहिए । दोमट मृदा के अलावा सेम की खेती चिकनी व रेतीली भूमि में होती देखी गयी है ।

बुवाई का समय –
फ़रवरी – मार्च

जून – जुलाई

बीज की मात्रा –
सेम की खेती के लिए 5-7 kg प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है। वहीं मिश्रित या मिलवाँ फ़सलोत्पादन में बीज की मात्रा 2- 3 kg की आवश्यकता होती है।

बोने की विधि –
सेम की बुवाई हेतु खेत की तैयारी करने के बाद खेत में लगभग 1.5 मीटर की चौड़ी क्यारियाँ बना लें। क्यारियों के दोनों किनारों पर क़रीब 1.5 – 2.0 फ़ीट की दूरी व २ से ३ सेंटीमीटर की गहराई में २-३ बीजों की बुवाई करें । बीजों को रोग रक्षा हेतु किसी भी कवकनाशी से उपचारित अवश्य करें । एक सप्ताह के अंदर बीज अंकुरित हो जाएँगे। जब पौधों की बढ़वार लगभग 15-20 सेंटीमीटर हो जाए एक स्थान में सिर्फ़ एक स्वस्थ पौधा छोड़कर बाक़ी के पौधे उखाड़ दें। पौधे के बाँस की बल्लियों से सहारा देकर चढ़ाने से पौधों की अच्छी बढ़वार होती है। पौधों का विकास अच्छा होता है।

सिंचाई व जल निकास प्रबंधन –
सेम की फ़सल में सिंचाई मृदा के प्रकारों, व मृदा के जल धारण क्षमता पर निर्भर होती है । दोमट मृदा में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। जबकि बलुई व चिकनी मृदा में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। यह हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि फ़रवरी मार्च के समय बोयी गयी फ़सल में सप्ताह में एक बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। वर्षा क़ालीन फ़सल यानी जून-जुलाई की फ़सल में जब अधिक समय तक बारिश ना हो तभी सिंचाई करें।

पादप पोषण प्रबन्धन – खाद व उर्वरक –
सेम की फ़सल में मृदा परीक्षण के पश्चात प्राप्त मृदा रिपोर्ट कार्ड के आधार कर खाद व उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। वैसे देखा जाय तो वानस्पतिक दृष्टि से सेम की फ़सल दलहनी होने के कारण इसकी जड़ ग्रंथियाँ नत्रजन का स्थिरीकरण कर लेती हैं। इसलिए इसे नत्रजन की कोई ज़रूरत नही पड़ती है। किन्ही कारणवश मृदा परीक्षण ना हुआ तो तो बुवाई से पूर्व खेत की तैयारी के समय 150 – 200 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट मिट्टी में मिला दें। इसके पश्चात N : P : K 20 : 40 : 40 (नाइट्रोजन : फ़ोस्फोरस : पोटाश ) खेत की अंतिम जुताई के दौरान खेत में मिला दें।

पादप सुरक्षा प्रबंधन – फ़सल सुरक्षा
हमारी फ़सल को मुख्य रूप से तीन घटक ही नुक़सान पहुँचाते हैं –

खरपतवार,कीट व रोग । इसके नियंत्रण के उपाय नीचे दिए जा रहे हैं इसके अनुसार ही सेम की फ़सल पर लगे ब्याधियों से बचाव करें।

खरपतवार नियंत्रण –
मुख्य फ़सल के अतिरिक्त उग आए सभी पौधों को उखाड़ कर बाहर कर दें। इन खरपतवारो के कारण पौधे को भोजन,पानी,व पोषण के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ता है अतः निराई कर इनके अवश्य निकाल दें । साथ ही निराई – गुड़ाई के दौरान निकली मिट्टी को पौधों की जड़ों पर चढ़ा दें।

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