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चेरी की खेती करने का तरीका

Posted on December 17, 2020December 17, 2020 By User No Comments on चेरी की खेती करने का तरीका

चेरी फल का वनस्पतिक नाम ड्रूप्प है (स्टोन फल तथा अष्ठीफल) के नाम से भी जानते है. चेरी का वैज्ञानिक नाम प्रूनस एविनयम ;(Prunus Avium) .अपनउद्ध है,. चेरी फल का सेवन पूरे विश्व में किया जाता है. चेरी सबसे अधिक यूरोप और एशिया, अमेरिका, तुर्की आदि देशों में पैदा किया जाता है. जबकि भारत में चेरी की खेती उत्तरपूर्वी राज्यो और हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, उत्तराखंड आदि राज्यों में किया जाता है. चेरी फल स्वस्थ के लिये अच्छा माना जाता है. इसमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते है. जैसे- विटामिन6, विटामिन ए, नायसिन, थायमिन, राइबोफ्लैविन पोटेशियम, मैगनिज, काॅपर, आयरन तथा फस्फोरस प्रचूर मात्रा में पाया जाता है.चेरी फल में एंटीआॅक्सीडेट अधिक मात्रा में होता है जो स्वास्थ के लिये अधिक अच्छा माना जाता है. भारत में इसका उत्पादन 26 प्रतिशत किया जाता है. चूंकि यह फल ठंड के लिय उपयुक्त माना जाता. चेरी फल के स्वास्थ्य लाभ- चेरी फल विटामिंस सी का अच्छा स्रोत माना जाता है. इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर तथा पोषक तत्व होता है. चेरी फल के फायदे- चेरी फल मस्तिष्क दक्षता को सुधारता है तथा आंखो की रोशनी के लिये बहुत फायदें मंद होता है. यह इम्यूनिटि सिस्टम, कब्ज, त्वचा रोग, अनिद्रा रोग, कैंसर रोग, हदय रोग, गठियां दर्द मधुमेह, के अति लाभकारी है. भारत में चेरी फलों के स्थानीय नाम – चेरी (हिन्दी), चेरी (तेलगू), चेरीपजाम (मलयालम) चेरी फल की किस्में- चेरी 100 से अधिक किस्में पाई जाती है और जिन्हें बिगररेउ और हार्ट समूहों में बांटा गया है- बिगररेउ समूह – इस समूह का चेरी सामान्यतः इसका आकार गोलाकार तथा आमतौर पर फल का रंग अंधेरे से हल्के लाल भिन्न होता है. इसमें संकर किस्में जैसे- लैपिंस, सिखर सम्मेलन, सनबर्ट, सैम और स्टेला आदि है. हार्ट समूह- इस समूह के तहत चेरी फल दिल का आकार का होता है तथा फल का रंग हल्का लाल तथा रेडिस रंग का होता है. भारत में चेरी के किस्में- हिमाचल प्रदेश – वाइट हार्ट, स्टैला, लैम्बर्ट, पींक अर्ली, तरतरियन, अर्ली रिवर और ब्लैंक रिबलन आदि है. जम्मू कश्मीर – बिगरेयस नायर ग्रास, अर्ली परर्पिल, गुनेपोर, ब्लैक हार्ट, उत्तर प्रदेश – गर्वेनश वुड, बेडफोर्ड, ब्लैक हार्ट जलवायु की आवश्यकता – जैसे के हम सभी जानते है कि ठंडी जलवायु परिस्थितियों में चेरी अच्छी तरह से बढ़ती है. इसलिये इसे सर्दी मौसम में लगभग 1200-1500 घंटे चिलिंग की आवश्यकता होती है. यह समुद्री स्तर लगभग 2500 मी. उंचाई पर चेरी फलों का पैदावार अच्छा होता है. इसकी खेती भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तर प्रदेश में व्यवसायिक रूप से किया जाता है. मिट्टी की आवश्यकता- इसे विभिन्न प्रकार की भूमि में इसको लगाया जा सकता है. परन्तु इसके लिये रेतीली-टोमट मिट्टी इसके लिये अच्छा माना जाता है. रेतीले टोमट मिट्टी की पी.एच. 6.0 से 7.5 होनी चाहिए. इस मिट्टी में नमी के साथ अच्छी तरह से सूखा हुआ उपजाऊ मिट्टी होनी चाहिए. चेरी की खेती के लिए सबसे अच्छा है तथा इसके फूलों व फलों को पाले से बचाना जरूरी है, इस फल के उत्पादन विभिन्न प्रकार के जलवायु में किया जा सकता है. चेरी फलों की खेती- बीज के माध्यम से या जड़ कटाई द्वारा किया जाता है. मुख्य रूप से ग्राफ्टिंग पद्धति के माध्यम से चेरी पौधों को लगाया जा सकता है. आमतौर पर बीज अंकुरण के लिए शीतल उपचार की आवश्यकता होती है. आमतौर पर चेरी के बीज पूरी तरह से पके फल से निकाले जाते हैं. इन बीज को सूखे और ठंडे स्थान पर संग्रहीत किया जाना चाहिए. लगभग एक दिन के लिए चेरी के बीज में भिगोये 500 पी.पी.एम से 3ए तक जाने चाहिए. पौधे ऊपर उठी क्यारियों में लगाए जाते हैं. इन क्यारियों की चैड़ाई 105-110 से.मी व ऊँचाई लगभग 25 से.मी. रखनी चाहिए. दो क्यारियों के बीच में 55 से.मी का अन्तर रखा जाना चाहिए. क्यारियों में पौधों को चार पंक्तियों के बीच में 25 से.मी की दूरी व पौधे की आपसी दूरी से.मी रखना आवश्यक है. पौधों की रोपाई दिन के ठंडे समय में की जानी चाहिए. सिंचाई- भारत में कम वर्षा वाले राज्यों में भी इसकी खेती की जा सकती है तथा इसके बेहतर विकास और गुणवत्ता के पेडों को साप्ताहिक अंतराल पर पेड़ों को सिंचित किया जाना चाहिए. गर्म जलवायु मौसम जलप्रबंधन के लिये ड्रिप सिंचाई पद्धति अपना चाहिए. चेरी फलों की खेती में खरपतवार नियंत्रण- खरपतवार नियंत्रण के लिये डायूरोन 4 कि.ग्रा प्रति हेक्. दर से पूर्व में छिड़काव करे. विकास को नियंत्रित करने के लिये पैराक्वाट 0.5 प्रतिश का छिड़काव कर सकते है. 5 से 6 महीनों के लिए घास की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए से घास नियंत्रित करने के लिए. मिट्टी की उर्वरता में सुधार करने के लिए कोई भी हरी फसल उगाई जा सकती है. खेती की छटाई और कटाई – आमतौर चेरी के पेड़ के लिए संशोधित की आवश्यकता होती है . प्रशिक्षण प्रणाली के रूप में इस प्रणाली में पौधों को रोपण के समय 70-80 सें.मी. होनी चाहिए. 3 से 5 शाखाओं चैड़े कोण जो 25 से.मी से अधिक नहीं होनी चाहिए. चयनित पहली छंटाई के लिए 3 से 4 साल बाद होनी चाहिए. चेरी फलों के पेड़ों को पेड़ के केंद्र को रखने के लिए कुछ प्रकार की छंटाई की आवश्यकता होती है. मृत और बीमार और इंटरक्रासिंग शाखाएं को छंटाई दौरान हटा देना चाहिए. खाद एवं उर्वरक- गुणवत्ता वाले फलों के लिए चेरी पौधों को अच्छे कार्बनिक और उर्वरकों की आवश्यकता होती है. जैसे- पौधे की उम्र एफ.वाई.एम उर्वरक (कि.ग्रा.)कैल्शियम अमोनिया

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