जायद फसल मूंग की जानकारी
ट्रैक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का स्वागत है। सभी किसान भाई जानते हैं कि देश में इस समय रबी फसल की कटाई चल रही है। नवसवंत् से पहले सभी खेतों में रबी की फसल काटी जा चुकी होगी। रबी की फसल की कटाई के तुरंत बाद किसान भाई खेत में ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल उगाकर कमाई कर सकते हैं। रबी की फसल के तुरंत बाद खेत में दलहनी फसल मूंग की बुवाई करने से मिट्टी की उर्वरा क्षमता में वृद्धि होती है। इसकी जड़ों में स्थित ग्रंथियों में वातावरण से नाइट्रोजन को मृदा में स्थापित करने वाले सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। इस नाइट्रोजन का प्रयोग मूंग के बाद बोई जाने वाली फसल द्वारा किया जाता है।
भारत में मूंग (Moong) ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौषम की कम समय में पकने वाली अक मुख्य दलहनी फसल है| मूंग (Moong) का उपयोग मुख्य रूप से आहार में किया जाता है, जिसमें 24 से 26 प्रतिशत प्रोटीन, 55 से 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 1.3 प्रतिशत वसा होती है| यह दलहनी फसल होने के कारण इसके तने में नाइट्रोजन की गाठें पाई जाती है| जिसे इस फसल के खेत को 35 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है| ग्रीष्म मूंग की खेती चना, मटर, गेहूं, सरसों, आलू, जौ, अलसी आदि फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जा सकती है|
पंजाब, हरियाणा उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान प्रमुख ग्रीष्म मूंग उत्पादक राज्य हैं| धान-गेहूं फसल चक्र वाले क्षेत्रों में जायद मूंग की खेती द्वारा मिटटी उर्वरता को उच्च स्तर पर बनाये रखा जा सकता है| लेकिन अच्छी तकनीकी न होने के कारण जितने क्षेत्र में इसकी फसल उगाई जाती है उसके अनुपात में पैदावार अच्छी नही मिलती है| इस लेख में मूंग की उन्नत खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है|
मूंग हेतु जलवायु
मूंग की फसल हर प्रकार के मौसम में उगाई जा सकती है| उत्तर भारत में इसे ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में उगाते हैं| दक्षिण भारत में इसे रबी में भी उगाते हैं| ऐसे क्षेत्र जहां 60 से 75 सेंटीमीटर वर्षा होती है, मूंग के लिए उपयुक्त होते हैं| फली बनते और पकते समय वर्षा होने से दाने सड़ जाते हैं एवं काफी हानि होती है| उत्तरी भारत में मूंग को वसंत ऋतु (जायद) में भी उगाते हैं| अच्छे अंकुरण और समुचित बढ़वार हेतु क्रमशः 25 डिग्री तथा 20 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है|
उपयुक्त भूमि
दोमट भूमि सबसे अधिक उपयुक्त होती है| इसकी खेती मटियार एवं बलुई दोमट में भी की जा सकती है, जिनका पी एच 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम हैं| खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिये|
उन्नत किस्में
टाइप 44- इस मूंग की किस्म का पौधा बौना होता है| तना अर्धविस्तारी तथा पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं| फूल पीले, बीज गहरे हरे रंग के एवं मध्यम आकार के होते हैं| फसल पकने में 60 से 70 दिन का समय लेती है| यह सभी मौसमों में उगाई जा सकती है|
मूंग एस 8- पौधा मध्यम ऊंचाई का तथा सीधे बढ़ने वाला होता है| तना विस्तारी, फूल हल्के पीले रंग के, फलियां 6 से 8 सेंटीमीटर लम्बी, चिकनी व काली होती हैं| एक फली में 10 से 12 तक हरे चमकदार बीज, फसल तैयार होने में 75 से 80 दिन लेती है| इसमें पीले मोजैक रोग का प्रकोप कम होता है| यह खरीफ ऋतु में उगाई जा सकती है|
पूसा विशाल- उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र हेतु बसंत और ग्रीष्म मौसम में बुवाई के लिए उपयुक्त, यह विषाणु जनित पीली चित्ती रोग की प्रतिरोधी, एक साथ पकने वाली है जो बसंत के मौसम में 65 से 70 दिनों में और ग्रीष्म में 60 से 65 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| पैदावार 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पूसा रतना- मुंग की यह किस्म उत्तर क्षेत्र में खरीफ मौसम में बुवाई के लिए उपयुक्त, एक साथ पकने वाली, 65 से 70 दिनों में पककर तैयार, विषाणु जनित पीली चित्ती रोग की सहिष्णु है| पैदावार 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पूसा 0672- यह किस्म उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र, खरीफ मौसम में बुवाई के लिए उपयुक्त, मूंग के विषाणु जनित पीली चित्ती रोग व अन्य रोगों की सहिष्णु, दाना चमकदार हरा, आकर्षक और मध्यम आकार का होता है| पैदावार 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पूसा 9531- उत्तर पश्चिम क्षेत्र में खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त यह, 60 से 65 दिनों में पककर तैयार, विषाणु जनित पीली चित्ती रोग एवं कीटों की सहिष्णु, औसत पैदावार 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
मूग जवाहर 45- इसका पौधा लम्बा व सीधा, पत्तियां हरी, फूल पीले, बीज चमकदार व हरे रंग के, पकने का समय 80 दिन, खरीफ के लिए उपयुक्त है|
पी एस 16- पत्तियां पीलापन लिए हुए हरे रंग की, फूल पीले, बीज चमकदार हरे रंग के, तैयार होने से 60 से 70 दिन का समय लगता है| यह खरीफ और ग्रीष्म, दोनों ऋतुओं के लिए उपयुक्त है|
