अखरोट की खेती या बागवानी भारत देश में मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रो में की जाती है| इसका अधिकतम उपयोग मिष्ठान उद्योग में किया जाता है| मस्तिष्क रुपी अखरोट दिमाग की सेहत के लिए अत्यंत लाभदायक होता है| अखरोट की खेती के लिए अंग्रेजी या फारसी किस्में ही व्यावसायिक स्तर पर महत्वपूर्ण है| यह उत्तर-पश्चिमी हिमालय का फल है और इसके पौधे समुद्रतल से 1200 से 2150 मीटर की ऊँचाई तक उगते हैं|
अखरोट प्रोटीन, वसा और खनिज लवणों का मुख्य स्रोत है| अन्य गिरीदार फलों की अपेक्षा इसमें विटामिन बी- 6 पायी जाती है| अखरोट के अधपके फल तथा हरे नट एसकोर्बिक अम्ल का मुख्य स्रोत है| अखरोट की गिरी में 14.8 ग्राम प्रोटीन, 64 ग्राम वसा, 15.80 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.1 ग्राम रेशा, 1.9 ग्राम राख, 99 मिलीग्राम कैल्शियम, 380 मिलीग्राम फासफोरस, 450 मिलीग्राम पोटैशियम प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है| अखरोट के अधपके फलों का प्रयोग अचार, चटनी, मार्मेलेड, जूस तथा सीरप बनाने में प्रयोग किये जाते है| अखरोट का तेल खाने, वार्निश तथा साबुन बनाने में प्रयोग किया जाता है| अच्छी खुशबू के कारण इसके सूखें फलों को खाने में प्रयोग किया जाता है|
इस लेख में जागरूक किसानों के लिए अखरोट की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी कैसे करें, उसके लिए उपयुक्त जलवायु, किस्में, रोग रोकथाम, पैदावार आदि की जानकारी दी गई है, जिसको उपयोग में लाकर अखरोट की खेती से उत्तम पैदावार प्राप्त की जा सकती है|
उपयुक्त जलवायु
अखरोट की खेती के लिए ऐसे स्थान जहां पाला पड़ता हो, अधिक गर्मी पड़ती हो और सर्दियों में शीतन घंटे कम हो, अखरोट उत्पादन के लिए अनुकूल नहीं होते| सर्दियों के शुरू में पाला पड़ने पर नई शाखाओं को नुकसान पहुँचता है, जिससे अगली बसन्त ऋतु में उन पर पत्ते नहीं आते| यदि गर्मियों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो और नमी कम हो तो फलों को सूरज की जलन से नुकसान होता है| यदि यह प्रकोप गर्मियों के शुरू में हो तो फलों में गिरी नहीं बनती और यदि बाद में हो तो गिरी झुर्सदार, गहरे काले रंग की और छिलके के साथ चिपकी होती है|
भूमि का चयन
अखरोट की बागवानी लगाने के लिए उचित जल निकासी जिसमें जल का स्तर घटता बढ़ता न रहे वाली, 2 से 3 मीटर गहरी तथा काफी जैविक पदार्थ वाली गादभरी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है| रेतीली और सख्त सतह वाली मिट्टी अखरोट के लिए ठीक नहीं होती है| क्षारीय गुणों वाली मिट्टी के प्रति अखरोट अत्याधिक संवेदनशील होता है अतः क्षारीय मिट्टी में इसे नहीं लगाना चाहिए|
उन्नत किस्में
अखरोट की खेती हेतु उन्नत किस्मों में गोबिन्द, काश्मीर बडिड, यूरेका, प्लेसैन्टिया, विलसन, फ्रेन्क्वेट, प्रताप, सोलडिंग सलैक्शन व कोटखाई सलैक्शन आदि मुख्य हैं| जिनका उपयोग व्यवसायिक बागवानी के तौर पर अधिकतर किया जाता है|
गोबिन्द- मध्यम परिमाण वाला पेड़, किन्नौर जिला जैसी जलवायु परिस्थितियों के लिए उपयुक्त, सितम्बर महीने के अन्त तक पक कर तैयार, फल मध्यम आकार का, गिरी का गुण उत्तम, अच्छी भरी गिरी, छिलका कागजी, गिरी निकालना अति आसान होता है|
सोलडिंग स्लैक्शन- फल मध्यम आकार के औसत वजन 17 ग्राम, गोलाकार, छिलका मध्यम कठोर व समतल, हल्के रंग की गिरी 40 प्रतिशत, गिरी में वसा 49 प्रतिशत व प्रोटीन 21 प्रतिशत, अच्छी गुणवत्ता व स्वाद वाली गिरी, पौधे ओजस्वी, नियमित एवं मध्यम पैदावार वाले होते है|
प्रताप- कोटखाई क्षेत्र से चुनी हुई किस्म, फल आयताकार, फल करीब 24 ग्राम व लम्बूतरा, छिलका साफ और हल्के अम्बर रंग वाला, तोड़ने में थोड़ा कठोर, हल्का पतला छिलका 1.6 मिलीमीटर मोटा, गिरी अच्छी प्रतिशत, स्वादिष्ट, पौधे बड़े, विशाल और अधिक फल देने वाले होते है|
