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किसानों के जीवन में ये फसल घोल सकती है भरपूर मिठास

Posted on December 15, 2020December 15, 2020 By User No Comments on किसानों के जीवन में ये फसल घोल सकती है भरपूर मिठास

दुनिया भर में मधुमेह रोगियों का बढ़ना भले ही एक अच्छी खबर न हो लेकिन किसानों के लिए यह आय बढ़ाने का एक बेहतर मौका हो सकता है. मधुमेह के उपचार के लिए मधुपत्र, मधुपर्णी, हनी प्लांट या मीठी तुलसी (स्टीविया) की पत्तियों की मांग बढ़ रही है. इसका मतलब यह है कि किसान मधुपत्र की खेती करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं.

2022 तक स्टीविया के बाजार में करीब 1000 करोड़ रुपए की और बढ़ोतरी होने का अनुमान है. इसे देखते हुए नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड (एनएमपीबी) ने किसानों को स्टीविया की खेती पर 20 फीसदी सब्सिडी देने की घोषणा की है.

भारतीय कृषि-विश्वविद्यालय के शोध में ये बात सामने आयी है कि मधुपत्र की पत्तियों में प्रोटीन और फाइबर अधिक मात्रा में होता है. कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होने के साथ इन पत्तियों में कई तरह के खनिज भी होते हैं. इसलिए इनका उपयोग मधुमेह रोगियों के लिए किया जाता है. इसके अलावा मछलियों के भोजन तथा सौंदर्य प्रसाधन व दवा कंपनियों में बड़े पैमाने पर इन पत्तियों की मांग होती है.

चीन के बाद भारत में सबसे मधुमेह के मरीज है. चीन में मधुमेह से पीड़ितों की संख्या 11 करोड़ तो वहीं भारत में ये संख्या 7 करोड़ के आसपास है. सबसे तेजी से बढ़ने वाली बीमारियों में से एक है मधुमेह. भारत में छोटे और बड़े व्यापारियों ने इंडियन स्टीविया एसोसिएशन की भी स्थापना की है. जिसमें लगभग 600 उपक्रम शामिल हैं. एसोसिएशन स्टीविया की खेती को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टीविया की कीमत 5.5-6.5 लाख प्रति 100 किलो है.

मधुमेह पीड़ितों के लिए बेकरी उत्पाद, सॉफ्ट ड्रिंक और मिठाइयों में भी मधुपत्र की सूखी हुई पत्तियों का उपयोग होता है. मधुपत्र की पत्तियों की कीमत थोक में करीब 250 रुपए किलो तथा खुदरा में यह 400-500 रुपए प्रति किलो तक होती है. मधुपत्र के पौधों से हर तुड़ाई में प्रति एकड़ 2500 से 2700 किलो सूखी पत्तियां मिल जाती हैं. यह देखते हुए किसान इनको उगाकर खासी कमाई कर सकते हैं.

भारतीय किसानों द्वारा स्टीविया को मीठी तुलसी कहा जाता है. इसकी मिठास चीनी से 300 गुना अधिक होती है. ये स्टेवियोल ग्लाइकोसाइड नामक यौगिकों के एक वर्ग से होती है. चीनी की तरह यह कार्बन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन से मिश्रित है. हमारा शरीर इसे पचा नहीं सकता लेकिन जब इसे खाने के रूप में जोड़ा जाता है तो यह कैलोरी में नहीं जोड़ता है, बस स्वाद देता है.

अब इसके अर्थशास्त्र पर नजर डालते हैं. इसके बारे में धर्मबीर कंबोज बताते हैं “इसकी खेती में अच्छी बात ये है कि इसके पौधे को गन्ने की अपेक्षा 5 फीसदी कम पानी की जरूरत पड़ती है. लेकिन बुरी बात ये है कि एक एकड़ की खेती के लिए आपको कम से कम 40000 पौधे लगाने होंगे. इसमें लगभग एक लाख रुपए का खर्च आएगा. गन्ने की अपेक्षा एक किसान स्टीविया की खेती से 40 गुना ज्यादा कमा सकता है. एक पौधे से आप 2 डॉलर या कहें 125 रुपए तक की कमाई एक बार में आसानी से हो सकती है. एक बार लगाने के बाद कम से कम पांच साल आप इसकी खेती से बढ़िया लाभ कमा सकते हैं.”

कंबोज आगे बताते हैं कि उन्होंने स्टीविया के बारे में नौनी विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश में सुना था. ये बात 1998 की है. इसके 10 साल बाद अमेरिका फूड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने स्टीविया को मंजूरी दी. इसके दो साल बाद मैंने केरला के नर्सरी से पौधा लाए और इसकी खेती शुरू की.”

बढ़ रही मांग

भारतीय बाजार में ही इस समय स्टीविया से निर्मित 100 से प्रोडक्ट मौजूद हैं. अमूल, मदर डेयरी, पेप्सीको, कोका कोला (फंटा) जैसी कंपनियां बड़ी मात्रा में स्टीविया की खरीदारी कर रही हैं. मलेशिया की कंपनी प्योर सर्कल स्टीविया की पर काम करती है. कंपनी ने भारत में पिछले पांच वर्षों में 1200 करोड़ का कारोबार डाबर के साथ मिलकर किया है. फ्रूटी और हल्दीराम स्टीविया बेस्ड प्रोडक्ट बाजार में उतार चुका है. स्टीविया का ग्लोबल मार्केट इस समय लगभग 5000 करोड़ रुपए का है. (इंडस्ट्री एआरसी के अनुसार)

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